राजस्थान के निकाय चुनावों में जीत का जश्न मनाते बीजेपी कार्यकर्ता (फाइल फोटो)
अजमेर:
राजस्थान में हुए निकाय चुनावों में अजमेर नगर निगम बीजेपी के हाथ से निकलते निकलते बची है। बीजेपी यहां के 60 निगम सीटों में से 31 पर जीत दर्ज कर आगे थी। वहीं कांग्रेस को 22 सीट मिले थे और सात सीट निर्दलीय के हाथों गई।
इन नतीजों से इस प्रतिष्ठित निगम में बीजेपी का बोर्ड बनना तय था, लेकिन फिर एक नया ड्रामा देखने को मिला। बीजेपी के एक पार्षद सुरेंद्र सिंह उर्फ लाला बना ने पार्टी उम्मेदवार के सामने मेयर के लिए नामांकन भर दिया।
बीजेपी ने सभी पार्षदों को एक दिन पहले पुष्कर के एक होटल में बंद करके रखा था, लेकिन जैसे ही पार्षद अपना मेयर चुनने निकले, तो लाला बना सबको चकमा देकर दूसरी गाड़ी में बैठ वहां से निकल गए।
ज़ाहिर है इसे देख बीजेपी नेताओं में हड़कंप मच गया। अजमेर नगर निगम चुनाव के प्रभारी विराम सिंह रावत बोले कि सुरेंद्र सिंह जी अचानक गायब हो गए, उन्होंने कांग्रेस के साथ मिलके परचा भरा, पार्टी उन्हें कभी माफ़ नहीं करेगी।'
इसी अफरा-तफरी के बीच बीजेपी के लोग भी नगर निगम में भागते हुए पहुंचे। उनके उम्मीदवार धर्मेंद्र गेहलोत को कुछ कार्यकर्ता पकड़ के लाए और उनसे नामांकन भरवाया।
शायद उन्हें अंदेशा था कि कहीं वह भी भाग ना जाए।
पार्टी ने सुरेंद्र सिंह को बाहर का रास्ता दिखा दिया, लेकिन फिर भी क्रॉस वोटिंग को नहीं रोक पाई। नतीजा ये हुआ की बीजेपी के बहुमत में रहने के बावजूद, बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियों को 30-30 वोट मिले। ऐसे हालात में लॉटरी निकाली गई, जिसमें पहले तो बागी सुरेंद्र सिंह को मेयर घोषित कर दिया। लेकिन फिर एक वोट को निरस्त करके दुबारा वोटों के गिनती हुई और बीजेपी के उम्मीदवार को आखिरकार मेयर घोषित कर दिया गया।
इन नतीजों से इस प्रतिष्ठित निगम में बीजेपी का बोर्ड बनना तय था, लेकिन फिर एक नया ड्रामा देखने को मिला। बीजेपी के एक पार्षद सुरेंद्र सिंह उर्फ लाला बना ने पार्टी उम्मेदवार के सामने मेयर के लिए नामांकन भर दिया।
बीजेपी ने सभी पार्षदों को एक दिन पहले पुष्कर के एक होटल में बंद करके रखा था, लेकिन जैसे ही पार्षद अपना मेयर चुनने निकले, तो लाला बना सबको चकमा देकर दूसरी गाड़ी में बैठ वहां से निकल गए।
ज़ाहिर है इसे देख बीजेपी नेताओं में हड़कंप मच गया। अजमेर नगर निगम चुनाव के प्रभारी विराम सिंह रावत बोले कि सुरेंद्र सिंह जी अचानक गायब हो गए, उन्होंने कांग्रेस के साथ मिलके परचा भरा, पार्टी उन्हें कभी माफ़ नहीं करेगी।'
इसी अफरा-तफरी के बीच बीजेपी के लोग भी नगर निगम में भागते हुए पहुंचे। उनके उम्मीदवार धर्मेंद्र गेहलोत को कुछ कार्यकर्ता पकड़ के लाए और उनसे नामांकन भरवाया।
शायद उन्हें अंदेशा था कि कहीं वह भी भाग ना जाए।
पार्टी ने सुरेंद्र सिंह को बाहर का रास्ता दिखा दिया, लेकिन फिर भी क्रॉस वोटिंग को नहीं रोक पाई। नतीजा ये हुआ की बीजेपी के बहुमत में रहने के बावजूद, बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियों को 30-30 वोट मिले। ऐसे हालात में लॉटरी निकाली गई, जिसमें पहले तो बागी सुरेंद्र सिंह को मेयर घोषित कर दिया। लेकिन फिर एक वोट को निरस्त करके दुबारा वोटों के गिनती हुई और बीजेपी के उम्मीदवार को आखिरकार मेयर घोषित कर दिया गया।
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