पाकिस्तान की ओर से जारी गोलाबारी के कारण अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास रहने वाले लोग खेती करने अपने खेतों में जाने से डर रहे हैं। लोगों को यह डर सता रहा है कि अगर ऐसी ही गोलाबारी जारी रही रही, तो इस बार खेती मुश्किल हो जाएगी।
उन्हें डर लग रहा है कि पता नहीं वो कहीं अगला निशाना नहीं बन जाए। डर की वजह से ही पाकिस्तान से लगी अंतरराष्ट्रीय सीमा से करीब एक डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर बसे पगरवाल इलाके के बलवाल भरत गांव के रहने वाले आकाश की मां की मौत हो गई। 15 जुलाई को उसके खेत के पास पाक की ओर से दागा गया एक बम गिरा और अकाश की मां पोली देवी की जान चली गई।
आकाश रात को सो नहीं पाता, क्योंकि मां के बगैर उसे सोने की आदत नहीं है। आकाश की मुसीबत है कि बचपन में ही उसके पिता ने उसके मां का साथ छोड़ दिया था और अब उसकी मां ने भी। सरकार की ओर से मुआवजा के नाम पर बस एक लाख रुपये दिए गए हैं।
आकाश की दादी नाराज होकर कहती हैं, मैं सरकार को एक लाख के बजाय छह लाख दूं, तो क्या वो मेरी बहु को वापस लेकर आएंगे। पाक की गोलाबारी की वजह से इसी इलाके में तीन और लोग घायल हुए थे। अब हालत ये है कि लोग डर के मारे अपने खेतों में नहीं जा पा रहे हैं। अंगरेज सिंह कहते हैं, हमलोग तो अपने खेतों में नहीं जा रहे..डर लग रहा है कि पता नहीं अगला बम किस पर गिरे।
पाक से लगी अंतरराष्ट्रीय सीमा पर हर जगह खेती होती है और ये मौसम धान की रोपाई का है। लेकिन कई जगहों पर खेत में धान नहीं लग पा रहे हैं। आज गोलाबारी का खौफ इस कदर है कि रोजी-रोटी की तलाश में बिहार से खेतों में काम करने आए मजदूर भी खेतों में काम करने नहीं जा रहे हैं। कई मजदूर तो काम छोड़कर वापस लौट गए हैं। उनका कहना है कि फायरिंग खत्म हो जाए, तभी फिर से वापस खेतों में जाएंगे।
ऐसा ही हाल अपने बासमती चावल के लिए दुनियाभर में मशहूर आरएसपुरा के खेतों का है। खेत में मजदूर नहीं दिख रहे और जिनकी खुद की खेती है, वही रोपाई का काम कर कर रहे हैं। तारा देवी कहती हैं कि अगर खेतों में काम नही करेंगे तो खाएंगे क्या।
हालत ये है कि अगर कहीं खेत में ट्रैक्टर चल रहा होता है, तो एक आदमी चारों ओर देखता है कि कहीं पाक की ओर से गोली तो नहीं आ रही है। लोगों को अंदेशा है कि अगर पाक की ओर से गोलाबारी बंद नहीं हुई, तो इस बार उनके खेत लहलहाते फसलों के बजाय वीरान ही रह जाएंगे।
उन्हें डर लग रहा है कि पता नहीं वो कहीं अगला निशाना नहीं बन जाए। डर की वजह से ही पाकिस्तान से लगी अंतरराष्ट्रीय सीमा से करीब एक डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर बसे पगरवाल इलाके के बलवाल भरत गांव के रहने वाले आकाश की मां की मौत हो गई। 15 जुलाई को उसके खेत के पास पाक की ओर से दागा गया एक बम गिरा और अकाश की मां पोली देवी की जान चली गई।
आकाश रात को सो नहीं पाता, क्योंकि मां के बगैर उसे सोने की आदत नहीं है। आकाश की मुसीबत है कि बचपन में ही उसके पिता ने उसके मां का साथ छोड़ दिया था और अब उसकी मां ने भी। सरकार की ओर से मुआवजा के नाम पर बस एक लाख रुपये दिए गए हैं।
आकाश की दादी नाराज होकर कहती हैं, मैं सरकार को एक लाख के बजाय छह लाख दूं, तो क्या वो मेरी बहु को वापस लेकर आएंगे। पाक की गोलाबारी की वजह से इसी इलाके में तीन और लोग घायल हुए थे। अब हालत ये है कि लोग डर के मारे अपने खेतों में नहीं जा पा रहे हैं। अंगरेज सिंह कहते हैं, हमलोग तो अपने खेतों में नहीं जा रहे..डर लग रहा है कि पता नहीं अगला बम किस पर गिरे।
पाक से लगी अंतरराष्ट्रीय सीमा पर हर जगह खेती होती है और ये मौसम धान की रोपाई का है। लेकिन कई जगहों पर खेत में धान नहीं लग पा रहे हैं। आज गोलाबारी का खौफ इस कदर है कि रोजी-रोटी की तलाश में बिहार से खेतों में काम करने आए मजदूर भी खेतों में काम करने नहीं जा रहे हैं। कई मजदूर तो काम छोड़कर वापस लौट गए हैं। उनका कहना है कि फायरिंग खत्म हो जाए, तभी फिर से वापस खेतों में जाएंगे।
ऐसा ही हाल अपने बासमती चावल के लिए दुनियाभर में मशहूर आरएसपुरा के खेतों का है। खेत में मजदूर नहीं दिख रहे और जिनकी खुद की खेती है, वही रोपाई का काम कर कर रहे हैं। तारा देवी कहती हैं कि अगर खेतों में काम नही करेंगे तो खाएंगे क्या।
हालत ये है कि अगर कहीं खेत में ट्रैक्टर चल रहा होता है, तो एक आदमी चारों ओर देखता है कि कहीं पाक की ओर से गोली तो नहीं आ रही है। लोगों को अंदेशा है कि अगर पाक की ओर से गोलाबारी बंद नहीं हुई, तो इस बार उनके खेत लहलहाते फसलों के बजाय वीरान ही रह जाएंगे।
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