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This Article is From Sep 30, 2015

ईद के मौके पर, कश्मीर के इस गांव में जश्न नहीं, मातम मन रहा था

ईद के मौके पर, कश्मीर के इस गांव में जश्न नहीं, मातम मन रहा था
25 साल पहले कश्मीरी पंडित जब गमन कर रहे थे तब कौल परिवार यहीं रुका
पुलवामा, जम्मू-कश्मीर: कश्मीर के पुलवामा जिले के एक गांव में ईद का त्योहार खुशियां लेकर नहीं, मातम लेकर आया। मुस्लिम समुदाय के लोग अपने हिन्दू पड़ोसी रामाचंद कौल (जोकि कश्मीरी पंडित हैं) की मौत से बेहद दुखी थे। कौल ने 1990 के कठिन दौर में घाटी से गमन से इंकार कर दिया था।

रामाचंद कौल के बेटे हैं बेहद प्रभावित..
इस गांव के लोगों ने न सिर्फ अंतिम संस्कार से जुड़ी तैयारियों में मदद की बल्कि वह उन्हें अंत्येष्टि स्थल तक भी लेकर गए। रामाचंद कौल के बेटे विनोद का कहना है कि वह इस सबसे बेहद प्रभावित हैं। बोले, मैं इस सबकी उम्मीद नहीं कर रहा था क्योंकि ईद का मौका था और हर कोई बिजी था। लेकिन लोगों ने इस सबकी अनदेखी की और पिता के अंतिम संस्कार में मदद की।

रिश्तेदार को बुला रहे हैं गांव गाववाले...
25 साल पहले, कौल परिवार समेत वाहीबाग गांव के सातों पंडितों ने यह फैसला लिया कि वह हजारों अन्य कश्मीरी पंडितों की तरह घाटी छोड़कर नहीं जाएंगे। अब गांववालों ने दिल्ली जाकर बस चुके उनके रिश्तेदार लासा कौल से निवेदन किया है कि वह अंतिम संस्कार में शामिल हों और गांव में रहें। लासा कौल इस बारे में विचार कर रहे हैं। उन्होंने कहा- लोग कह रहे हैं कि वह घर फिर से बना-संवारकर.. बिस्तर, बर्तन भाड़े और हर चीज.. तैयार कर देंगे। शनिवार से हर कोई मुझे देखने आ रहा है।

दोनों समुदायों के बीच एक रिश्ता...
ईद से पहले, राज्य सरकार ने 3 दिन के लिए नेट बैन किया था ताकि किसी तरह का सांप्रदायिक दंगा न हो सके। दरअसल कोर्ट ऑर्डर के मुताबिक, पुलिस को बीफ बैन को इलाके में सख्ती से लागू करवाने का आदेश था। इससे राज्य में विरोध प्रदर्शन हो रहे थे। लेकिन लोगों का कहना है कि दोनों समुदायों के बीच सालों से साथ रहते हुए एक रिश्ता बन गया है जिसे तोड़ना मुश्किल है।

कौल के पड़ोसी गुलाम रसूल का कहना है- हम आतंकवाद के उस कठिन दौर में अपने पंडित भाइयों के साथ खड़े रहे और उन्हें अपने सगे भाइय़ों की तरह प्रोटेक्ट किया।

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