विज्ञापन
This Article is From Jun 20, 2016

'भारतीय समयानुसार' नहीं चलना चाहते उत्तरपूर्वी राज्य, अलग 'टाइम ज़ोन' की मांग

'भारतीय समयानुसार' नहीं चलना चाहते उत्तरपूर्वी राज्य, अलग 'टाइम ज़ोन' की मांग
गुवाहाटी: जब भारत के बाकी हिस्सों में साल के सबसे लंबे दिन का सूरज उगता है तब यहां के उत्तर पूर्वी हिस्से का काफी दिन गुज़र चुका होता है। देश के इस हिस्से में सूरज काफी जल्दी उग आता है लेकिन इनकी दिनचर्या भारत के बाकी हिस्से की तरह ही चलती है यानि दफ्तर 10 बजे ही खुलते हैं, स्कूल 8 बजे ही खुलते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि दिल्ली में रहने वाला व्यक्ति तरोताज़ा होकर ऑफिस पहुंचता है, वहीं उत्तर पूर्वी राज्यों में रहने वाले शख्स का दिन दफ्तर पहुंचने तक काफी कुछ गुज़र चुका होता है। वह काम से लौटते हुए नहीं, जाते वक्त भी थका हुआ होता है।

100 करोड़ से ज्यादा की जनसंख्या वाले भारत में एक ही टाइम ज़ोन है जो ठेठ पूर्व से लेकर पश्चिमी अरब सागर तक फैले इलाके के लिए एक जैसा ही है। पूरे भारत का वक्त उत्तरप्रदेश के एक शहर के हिसाब से पंक्तिबद्ध किया जा चुका है जो देशांतर रेखा के काफी करीब है। समय-निर्धारण की यह नीति आज़ादी के वक्त तय की गई थी लेकिन अब उत्तरपूर्व के मंत्रियों का कहना है कि इंडियन स्टैंडर्ड टाइम (IST) से उनके राज्यों का कोई भला नहीं हो पा रहा है। यह इलाका ढाका के ज्यादा करीब है जो नई दिल्ली से 30 मिनट आगे चलता है। उत्तरपूर्व राज्यों की सीमाएं चीन, म्यांमार, भूटान और बांग्लादेश को छूती हैं।

उत्पादन क्षमता पर भी काफी असर
तीखी गर्मी में उत्तर पूर्व के अंतिम छोर में सुबह सवा चार बजे सूरज उग जाता है जबकि पश्चिमी किनारे पर इसके 90 मिनट बाद यानि सवा छह बजे उजाला होता है। कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि वक्त की इस हेरा-फेरी की वजह से ही यह इलाका पिछड़ा हुआ है और यहां की उत्पादन क्षमता पर भी काफी असर पड़ा है। अरुप कुमार दत्ता इस मुद्दे से जुड़े अभियान का हिस्सा हैं और उनके मुताबिक 'यकीनन इस टाइम ज़ोन की वजह से थकावट जल्दी होती है और काम करने के घंटे भी कम ही होते हैं।' दत्ता कहते हैं 'सुबह सब तरोताज़ा होते हैं लेकिन दस बजे दफ्तर जाने तक आधी ऊर्जा खत्म हो चुकी होती है।'
 

वहीं सामाजिक कार्यकर्ता जानू बरुआ को लगता है कि वैसे तो यह समय नीति स्वतंत्र भारत को एक करने के उद्देश्य से तैयार की गई थी लेकिन इससे तो उत्तरपूर्वी भारत के अलग थलग होने की भावना और पोषित हुई है। दशकों से अलग टाइम ज़ोन की मांग कर रहे अभियान की अगुवाई करने वाले बरुआ कहते हैं कि लोग बेवकूफ नहीं हैं। धीरे धीरे उन्हें भी बाकी दुनिया के बारे में पता चल रहा है और तब उन्हें एहसास होता है कि उन्हें अंधेरे में रखा गया। ऐसे में उनका विमुख होना जायज़ है।

टी गार्डन टाइम
असम के चाय बागानों में बरुआ की परवरिश हुई है जहां सुबह छह बजे अच्छे खासे उजाले के बीच काम शुरू हो जाता है। दिलचस्प बात यह है कि यहां ऐसे कई चाय के बागान है जिन्होंने अपना अलग टाइम ज़ोन बना रखा है जिसे कहते हैं - 'टी गार्डन टाइम' लेकिन बरुआ बताते हैं कि अब कई बागानों ने IST को अपना लिया है। यानि चाय बिनने का काम तब शुरू होता है जब सूरज अपने शिखर पर पहुंच जाता है। इतनी तपती धूप में यह काम काफी जल्दी थका देने वाला होता है।
 

गुवाहाटी विश्वविद्यालय में राजनीति पढ़ाने वाले प्रोफेसर अखिल रंजन दत्ता कहते हैं कि जब वह अपनी पढ़ाई के लिए गांव से शहर आए तब उन्हें इस परेशानी का सामना करना पड़ा। वह बताते हैं 'गांव में तो हम शाम सात बजे ही सो जाते थे और सुबह दो या तीन बजे उठ जाते थे। फिर मैं कॉलेज आया लेकिन मेरी आदतें नहीं बदली। मेरे सारे दोस्त मुझ पर हंसते थे। विशाल क्षेत्र में फैले भारत जैसे देश में आपका काम सिर्फ एक टाइम ज़ोन से नहीं चल सकता। इसे बदलना होगा।'

अलगाववाद आंदोलन की शुरूआत?
अमेरिका का उदाहरण लें तो पैसिफिक इलाके और अलास्का को छोड़कर वहां चार अलग अलग टाइम ज़ोन है, ऑस्ट्रेलिया में तीन और रूस में नौ ज़ोन है। हालांकि चीन में भी एक ही टाइम ज़ोन है। भारत में अलग अलग टाइम ज़ोन की मांग पहले भी की जा चुकी है जिस पर बहुत ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया है। 2006 में योजना आयोग ने कहा था कि दो टाइम ज़ोन के होने से देश की काफी उर्जा बचाई जा सकती है जहां बिजली की समस्या आए दिन खड़ी होती है। हालांकि केंद्र सरकार ने इस प्लान को नकार दिया था।

2007 में बेंगुलुरू की NIAS संस्था के वैज्ञानिक एक अध्ययन के तहत इस फैसले पर पहुंचे थे कि अलग अलग टाइम ज़ोन से काफी भ्रम की स्थिति पैदा हो सकती है। बेहतर होगा कि IST को तीस मिनट आगे बढ़ा दिया जाए। हालांकि असम में आई बीजेपी की नई सरकार से अब कुछ उम्मीदें बंधी हैं। बीजेपी के नेता हेमंत बिस्वा शर्मा का कहना है कि विधायक मिलकर इस मुद्दे को केंद्र तक पहुंचाएगें। उन्होंने कहा कि 'उत्तरपूर्व को एक अलग टाइम ज़ोन दिया जाना चाहिए क्योंकि ऐसा नहीं करने से काफी आर्थिक नुकसान हो रहा है। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि यह एक नए अलगाववाद आंदोलन की शुरूआत है। लेकिन मुझे लगता है भारत विकास कर रहा है, अब हम वैसे समाज में नहीं रह रहे हैं।'

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
भारतीय समयानुसार, इंडियन स्टैंडर्ड टाइम, उत्तरपूर्वी राज्य, असम, चाय के बागान, Indian Standard Time, Tea Garden, North East, Assam, Time Zone
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com