विज्ञापन
This Article is From Sep 09, 2018

समलैंगिक मामलों में पीड़ित के नाबालिग होने पर कोर्ट से राहत की संभावना नहीं

अधिकारी ने कहा कि वयस्कों के बीच सहमति वाले मामले में सुनवाई कर रहे न्यायाधीश के समक्ष न्यायालय के इस आदेश का उल्लेख करने से सुनवाई रद्द की जा सकती है.

समलैंगिक मामलों में पीड़ित के नाबालिग होने पर कोर्ट से राहत की संभावना नहीं
फाइल फोटो
नई दिल्ली: समलैंगिक मामलों में पीड़ित के नाबालिग होने पर कोर्ट से राहत की संभावना नहीं  है. हाल में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक संबंध को अपराध मानने वाली धारा 377 को निरस्त कर दिया है. लेकिन आदेश में साफ कहा है कि नाबालिग और पशुओं के साथ ऐसा काम अपराध माना जाएगा.  भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 के तहत समलैंगिक यौन संबंध को लेकर दर्ज मामलों की संख्या के लिहाज से उत्तर प्रदेश सबसे आगे है और उसके बाद केरल का स्थान है. सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते इस कानून को आंशिक रूप से निरस्त कर दिया था. धारा 377 के तहत 2014 से 2016 के बीच कुल 4,690 मामले दर्ज किए गए. राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार, 2016 में धारा 377 के तहत समलैंगिक यौन संबंधों के 2,195 मामले दर्ज किए गए जबकि 2015 में 1,347 और 2014 में 1,148 मामले दर्ज किए गए.    2016 में सबसे ज्यादा 999 ऐसे मामले उत्तर प्रदेश में सामने आए. इसके बाद केरल (207) का स्थान था. दिल्ली में धारा 377 के तहत 183 मामले दर्ज किए गए जबकि महाराष्ट्र में ऐसे 170 मामले दर्ज किए गए. ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार 2015 में धारा 377 के तहत सबसे ज्यादा 239 मामले उत्तर प्रदेश में दर्ज किए गए. 2015 में, केरल और महाराष्ट्र में 159-159 मामले दर्ज किए गए. हरियाणा में 111 मामले सामने आए जबकि पंजाब में 81 ऐसे मामले दर्ज किए गए.    

धारा 377 पर फैसला कोर्ट के विवेक पर छोड़ने के लिये सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस चंद्रचूड़़ ने सरकार की आलोचना की

2015 में देश में पंजीकृत 1,347 मामलों में से 814 मामलों में पीड़ित बच्चे थे. इन 814 मामलों में से 179 उत्तर प्रदेश में, 142 केरल में, 116 महाराष्ट्र में और 63 हरियाणा से थे. गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि सहमति से समलैंगिक यौन संबंध के आरोपियों को जो मुकदमों का सामना कर रहे हैं या जिनकी याचिकाएं समीक्षाधीन हैं, उन्हें सुप्रीम कोर्ट के छह सितंबर के फैसले से अब राहत मिल सकेगी. हालांकि, जिन मामलों में पीड़ित नाबालिग हैं, उनमें आसानी से राहत मिलने की संभावना नहीं है.    उन्होंने कहा कि सहमति से समलैंगिक संबंध मामलों में, सुप्रीम कोर्ट का फैसला आरोपियों के लिए एक बड़ी जीत है क्योंकि वे अब आदेश का हवाला देकर अदालत से राहत प्राप्त कर सकते हैं. 

Section 377 खत्म होने के बाद इस शख्स ने मनाई ऐसी खुशी, माता-पिता बोले- अब हमारा बेटा अपराधी नहीं

अधिकारी ने कहा कि वयस्कों के बीच सहमति वाले मामले में सुनवाई कर रहे न्यायाधीश के समक्ष न्यायालय के इस आदेश का उल्लेख करने से सुनवाई रद्द की जा सकती है.

समलैंगिक संबंधों को सुप्रीम कोर्ट ने दी मंजूरी



(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com