यह ख़बर 22 सितंबर, 2013 को प्रकाशित हुई थी

गुजरात और मुजफ्फरनगर के दंगों में फर्क नहीं : महमूद मदनी

महमूद मदनी का फाइल फोटो

खास बातें

  • देश के प्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने मुजफ्फरनगर और आसपास के इलाकों में पिछले दिनों भड़की सांप्रदायिक हिंसा को 2002 के गुजरात दंगों जैसा करार देते हुए कहा है कि उत्तर प्रदेश में आम जनता अखिलेश यादव सरकार से नाराज है और आने वाले लोकसभा चुनाव के
नई दिल्ली:

देश के प्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने मुजफ्फरनगर और आसपास के इलाकों में पिछले दिनों भड़की सांप्रदायिक हिंसा को 2002 के गुजरात दंगों जैसा करार देते हुए कहा है कि उत्तर प्रदेश में आम जनता अखिलेश यादव सरकार से नाराज है और आने वाले लोकसभा चुनाव के नतीजों पर इसका असर देखने को मिलेगा।

जमीयत के महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने एक साक्षात्कार में कहा, ‘देखिए, जिस तरह से मुजफ्फरनगर में दंगों को ‘प्लांट’ किया गया है, उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि इसमें और गुजरात के दंगों में कोई फर्क नहीं है।’

मदनी ने हालांकि कहा कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के दंगों से निपटने के रवैये में फर्क है।

उन्होंने कहा, ‘अगर अखिलेश यादव और नरेंद्र मोदी की तुलना करें तो उसमें फर्क दिखता है। अखिलेश को लापरवाह और गैर-जिम्मेदार कहा जा सकता है, लेकिन उनके (मोदी) के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने दंगाइयों को खुली छूट दे दी थी।’

मदनी ने कहा, ‘अखिलेश दंगों को रोकने में पूरी तरह नाकाम रहे हैं। आज के समय में उन्हें सांप्रदायिक कहना ठीक नहीं होगा, लेकिन वह एक विफल मुख्यमंत्री जरूर हैं।’

मुजफ्फरनगर और आस-पास के इलाकों में पिछले दिनों भड़की सांप्रदायिक हिंसा में 45 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी और हजारों की संख्या में लोग विस्थापित हो गए।

जमीयत के महासचिव मदनी ने उत्तर प्रदेश में आगामी लोकसभा चुनाव के नतीजों पर दंगों को रोकने में राज्य सरकार की कथित विफलता का असर पड़ने का दावा करते हुए कहा, ‘उत्तर प्रदेश में सिर्फ मुस्लिम समुदाय ही नहीं, बल्कि तमाम जनता इनसे (सरकार से) नाराज है। आने वाले चुनाव के नतीजों पर इसका असर देखने को मिलेगा।’

भाजपा की ओर से मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने के बारे में उन्होंने कहा, ‘इसके पीछे धुव्रीकरण का एजेंडा है। इसकी कोशिश हो रही है।’

सांप्रदायिक हिंसा विरोधी विधेयक को लेकर केंद्र सरकार पर संजीदा नहीं होने का आरोप लगाते हुए मदनी ने कहा, ‘केंद्र की सरकार इस पर बिल्कुल गंभीर नहीं है। 10 साल पहले उन्होंने इस विधेयक को पारित करने का वादा किया था, लेकिन अब तक उन्होंने इसे पूरा नहीं किया है। सरकार को अपने इस वादे को पूरा करना चाहिए।’

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उन्होंने आगाह किया कि अगर देश में इसी तरह दंगे होते रहे तो भ्रष्टाचार और महंगाई का मुद्दा पीछे छूट जाएगा, आगामी लोकसभा चुनाव का मुख्य मुद्दा ‘सांप्रदायिकता बनाम धर्मनिरनेक्षपता’ हो जाएगा।