इराक के मोसुल में अगवा हुए 40 भारतीयों को वापस लाने की कोशिशों में सरकार जुटी हुई है। विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने कहा है कि इराक में अगवा भारतीयों को छुड़ाने के लिए सभी प्रयास किए जा रहे हैं। सुषमा ने कहा, मैं प्रयासों की निजी तौर पर निगरानी कर रही हूं। हम अपने नागरिकों की रिहाई सुनिश्चित करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।
दरअसल, ये भारतीय इराक के मोसुल शहर में फंसे हुए थे और वहां से निकलने की कोशिश में थे, लेकिन इन्हें रास्ते में रोककर कहीं और ले जाया गया।
इराक के बिगड़ते हालात में फंसे भारतीयों में से एक धर्मेंद्र के परिवारवालों का कहना है कि उनके बेटे ने रविवार को फोन कर अपने अगवा होने की बात कही थी। गुरदासपुर के बटाला में रहने वाले इस परिवार का कहना है कि धर्मेंद्र ने बताया कि उसे कुछ हथियारबंद लोग एक जीप में ले गए।
इन लोगों ने धर्मेंद्र से कहा कि वे उसे दूसरी कंपनी में ले जा रहे हैं, लेकिन ये लोग उसे कहीं और लेकर गए और वहां बंद कर दिया। इसके बाद धर्मेंद्र का फोन तो लग रहा है, लेकिन कोई उठा नहीं रहा।
इनमें से एक जालंधर के रहने वाले गगनदीप भी हैं। गगनदीप उनमें शामिल नहीं हैं, जिन्हें अगवा किया गया है। उनके परिवार का कहना है कि गगनदीप ने फोन कर बताया कि वह एक कमरे में बंद हैं और बाहर लगातार फायरिंग चल रही है। गगनदीप के पास उनका पासपोर्ट नहीं है और पिछले कई महीनों से उन्हें वेतन भी नहीं मिला है, जिसकी वजह से वह भारत नहीं आ सकते हैं।
वहीं अगवा लोगों में से एक गोबिंदर भी हैं, जिनके परिवार का बुरा हाल है। पंजाब के कपूरथला के एक गांव मुरार के रहने वाले गोबिंदर के परिवार का कहना है कि उनका बेटा करीब दस महीने पहले इराक गया था और वह मोसुल शहर में काम करता था। यह वही शहर है जहां से 40 भारतीयों को अगवा किया गया है। परिवार का कहना है कि गोबिंदर का 15 तारीख के बाद से कुछ पता नहीं चल पाया।
इराक में फंसे भारतीयों में से एक हरसिमरनजीत सिंह भी है। उनकी मां का कहना है कि 15 जून से पहले उनकी बेटे से बात हुई थी, तब हरसिमरनजीत ने कहा थी कि उन्हें मोसुल से कहीं दूसरी जगह ले जाया जा रहा है। मगर उसके बाद से फोन बंद है और परिवार फिक्रमंद है। यह परिवार विदेशमंत्री सुषमा स्वराज से मिलने दिल्ली आ रहा है।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सैयद अकबरूद्दीन ने संवाददाताओं से कहा कि कामगारों में अधिकतर पंजाब एवं उत्तर भारत के अन्य इलाकों के हो सकते हैं और इराक के मोसुल शहर में वे एक निर्माण कम्पनी के लिए काम कर रहे थे।