छाया शर्मा की टीम ने अपराध होने के 18 घंटो के अंदर आरोपी बस ड्राइवर रामसिंह को गिरफ़्तार कर लिया था..
नई दिल्ली:
"जिन लोगों ने मेरे साथ ये गंदा काम किया है उन्हें छोड़ना मत " ये वाक्य डीसीपी साउथ छाया शर्मा को निर्भया ने तब कहे थे जब छाया उससे पहली बार सफ़दरजंग अस्पताल में मिलने गई थी. आज यानी शुक्रवार को जब सप्रीम कोर्ट ने जब सभी दोषियों को मौत की सज़ा सुनाई तब छाया ने मन ही मन निर्भया को याद किया और उसका धन्यवाद किया. धन्यवाद इसलिए क्यूंकि वो कभी अपने बयान से पलटी नहीं. इन दिनों छाया राष्ट्रीय मानवाधिकार कमीशन में बतौर डीआईजी तैनात हैं. छाया ने एनडीटीवी इंडिया से बात करते हुए कहा. "दिल्ली पुलिस ने जो सबूत पेश किए है वो एकदम ठोस है," सप्रीम कोर्ट के तीन जजों ने फ़ैसला देते हुए कहा. "इन सभी आरोपियों को सज़ा निर्भया के कारण ही मिली है. वो अपने बयान पर निरंतर क़ायम रही "
उन्हें आज भी वो दिन याद है जब वो 23 साल की निर्भया से वह पहली बार मिली थीं. "उसकी हालत बहुत ख़राब थी. उससे बोला नहीं जा रहा था लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी,". सप्रीम कोर्ट ने भी फ़ैसला देते हुए माना कि जो कुछ निर्भया के साथ हुआ वो बहुत भयानक था. "अक्सर देखा है कि बलात्कार पीड़ित घबरा जाते हैं. सच नहीं बताते या पूरा सच याद नहीं कर पाते लेकिन इस लड़की का रवैया बड़ा पॉज़िटिव था," छाया आज भी उसके हौसले की दाद देती है.
निर्भया ने पहला अपना बयान अस्पताल के डॉक्टर को दिया फिर एसडीएम और फिर जज के सामने. तीनों बार वो अपने बयान पर क़ायम रही. उसने ऐसी छोटी-छोटी बातें अपने बयान में बोली जो आख़िर कर पुलिस के लिए बहुत अहम साबित हुई. निर्भया की मौत के पहले के इन बयानों को डाइइंग डिक्लेरेशन माना गया. निर्भया की मौत हादसे के 13 दिन बाद सिंगापुर में हुई.
छाया के मुताबिक़ जब ये मामला दर्ज हुआ था तब पुलिस के आगे सबसे बड़ी चुनौती आरोपियों तक पहुंचना थी. अक्सर बलात्कार के मामलों में आरोपी पीड़ित को जानता है लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं था. "हमारा काम इसलिए बहुत मुश्किल था कि हमें शुरुआत से मामले में तफ्तीश करनी पड़ी," 1999 बैच की आईपीएस अफ़सर का कहना है कि जांच में सबसे पहला अहम सुराग़ पुलिस को तब मिला जब पता चला कि जिस बस में रेप हुआ उसकी सीट लाल रंग की थी और परदे पीले.
"अब ऐसी बस को ढूंढना आसान नहीं था. हमने 300 बस की लिस्ट बनाई और हमारी टीम सबकी पहचान करने लगी,". छाया की टीम में क़रीब 100 पुलिसकर्मी थे. सबका काम बांट दिया गया. "मेरी टीम बहुत मेहनती थी. आपस में बैठकर फ़ैसले लेती थी. हम सब इस नतीजे पर पहुंचे कि जिस बेरहमी से आरोपियों ने और जिस निडरता से उन्होंने अपराध किया उस से साबित होता है कि वो उस इलाक़े को अच्छी तरह से वाक़िफ़ थे."
छाया ने बताया, पुलिस ने CCTV फुटेज खंगाले पर इससे ज़्यादा मदद नहीं मिली. लेकिन हिम्मत नहीं छोड़ी. बार-बार फुटेज देखने से सामने आया कि बस पर यादव लिखा हुआ था. इससे पुलिस की सर्च का दायरा और कम हो गया. "ड्राइवर या फिर क्लीनर को उस इलाक़े का ही होना चाहिए था ये सोचकर हमने जांच आगे बढ़ाई. फिर क्या था एक-एक सभी आरोपी गिरफ़्तार होते चले गए."
अपराध होने के 18 घंटो के अंदर पहले आरोपी बस ड्राइवर रामसिंह को गिरफ़्तार किया. "पूछताछ के बाद सभी आरोपी गिरफ़्तार कर लिए गए,". आज जब सप्रीम कोर्ट ने पुलिस की जांच पर मुहर लगते हुए आरोपियों को सज़ा सुनाई तब जो पुलिस वाले इस तफ्तीश से जुड़े थे उनके चेहरों से परेशानी कुछ समय के लिए ग़ायब हो गई. सब अपनी की हुई तफ़तीश पर फक्र करने लगे. "हमने इस मामलेमें आरोप पत्र सिर्फ़ 18 दिन में कोर्ट में पेश किया था. वो आरोप पत्र इतना पक्का था कि तीन अदालतों ने उस को सही ठहराया. अगर उसमें कोई ख़ामी होती तो सप्रीम कोर्ट आज हमें ही टांग देती."
उन्हें आज भी वो दिन याद है जब वो 23 साल की निर्भया से वह पहली बार मिली थीं. "उसकी हालत बहुत ख़राब थी. उससे बोला नहीं जा रहा था लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी,". सप्रीम कोर्ट ने भी फ़ैसला देते हुए माना कि जो कुछ निर्भया के साथ हुआ वो बहुत भयानक था. "अक्सर देखा है कि बलात्कार पीड़ित घबरा जाते हैं. सच नहीं बताते या पूरा सच याद नहीं कर पाते लेकिन इस लड़की का रवैया बड़ा पॉज़िटिव था," छाया आज भी उसके हौसले की दाद देती है.
निर्भया ने पहला अपना बयान अस्पताल के डॉक्टर को दिया फिर एसडीएम और फिर जज के सामने. तीनों बार वो अपने बयान पर क़ायम रही. उसने ऐसी छोटी-छोटी बातें अपने बयान में बोली जो आख़िर कर पुलिस के लिए बहुत अहम साबित हुई. निर्भया की मौत के पहले के इन बयानों को डाइइंग डिक्लेरेशन माना गया. निर्भया की मौत हादसे के 13 दिन बाद सिंगापुर में हुई.
छाया के मुताबिक़ जब ये मामला दर्ज हुआ था तब पुलिस के आगे सबसे बड़ी चुनौती आरोपियों तक पहुंचना थी. अक्सर बलात्कार के मामलों में आरोपी पीड़ित को जानता है लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं था. "हमारा काम इसलिए बहुत मुश्किल था कि हमें शुरुआत से मामले में तफ्तीश करनी पड़ी," 1999 बैच की आईपीएस अफ़सर का कहना है कि जांच में सबसे पहला अहम सुराग़ पुलिस को तब मिला जब पता चला कि जिस बस में रेप हुआ उसकी सीट लाल रंग की थी और परदे पीले.
"अब ऐसी बस को ढूंढना आसान नहीं था. हमने 300 बस की लिस्ट बनाई और हमारी टीम सबकी पहचान करने लगी,". छाया की टीम में क़रीब 100 पुलिसकर्मी थे. सबका काम बांट दिया गया. "मेरी टीम बहुत मेहनती थी. आपस में बैठकर फ़ैसले लेती थी. हम सब इस नतीजे पर पहुंचे कि जिस बेरहमी से आरोपियों ने और जिस निडरता से उन्होंने अपराध किया उस से साबित होता है कि वो उस इलाक़े को अच्छी तरह से वाक़िफ़ थे."
छाया ने बताया, पुलिस ने CCTV फुटेज खंगाले पर इससे ज़्यादा मदद नहीं मिली. लेकिन हिम्मत नहीं छोड़ी. बार-बार फुटेज देखने से सामने आया कि बस पर यादव लिखा हुआ था. इससे पुलिस की सर्च का दायरा और कम हो गया. "ड्राइवर या फिर क्लीनर को उस इलाक़े का ही होना चाहिए था ये सोचकर हमने जांच आगे बढ़ाई. फिर क्या था एक-एक सभी आरोपी गिरफ़्तार होते चले गए."
अपराध होने के 18 घंटो के अंदर पहले आरोपी बस ड्राइवर रामसिंह को गिरफ़्तार किया. "पूछताछ के बाद सभी आरोपी गिरफ़्तार कर लिए गए,". आज जब सप्रीम कोर्ट ने पुलिस की जांच पर मुहर लगते हुए आरोपियों को सज़ा सुनाई तब जो पुलिस वाले इस तफ्तीश से जुड़े थे उनके चेहरों से परेशानी कुछ समय के लिए ग़ायब हो गई. सब अपनी की हुई तफ़तीश पर फक्र करने लगे. "हमने इस मामलेमें आरोप पत्र सिर्फ़ 18 दिन में कोर्ट में पेश किया था. वो आरोप पत्र इतना पक्का था कि तीन अदालतों ने उस को सही ठहराया. अगर उसमें कोई ख़ामी होती तो सप्रीम कोर्ट आज हमें ही टांग देती."
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