यह ख़बर 21 अक्टूबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

निहाल किदवई की कलम से : हुदहुद की यादें-3

हुदहुद के दौरान सड़क पर गिरा पेड़

बेंगलुरु:

मैं, अपने कैमरा सहयोगी गोविन्द के साथ आर के बीच पहुंचा। बारिश काफी तेज़ हो चुकी थी और हवा की रफ्तार भी इतनी तेज़ थी कि कई बार खड़े होने में कदम डगमगा जाते। रिपोर्ट रिकॉर्ड करना मुश्किल हो रहा था। बारिश के पानी की फुहार कभी लेंस पर पड़ती तो कभी मुझ पर या गोविंद की आंखों में। जैसे तैसे पनडुब्बी मुय्सियम के पास हमने रिपोर्ट रिकॉर्ड की और अपलिंक के लिए निकल पड़े।

रास्ते में कई और बिजली के पोल और कलेक्टर के दफ्तर के सामने की मूर्ति सड़क पर गिरी हुई मिली। दिल की धड़कन और तेज़ हो गई जब मोबाइल टावर्स अपनी जगह से गायब मिले। शहर के हालात लगातार खराब हो रहे थे, इसके बावजूद हमें रास्ते में हल्ला गुल्ला करते कई लोग दिखे। उनकी नज़र दुकानों पर थी। इस बीच होर्डिंग या दूसरा सामान जो भी उनके हाथ लगा उसे लेकर वे भाग रहे थे।

हवा और बारिश की रफ़्तार लगातार बढ़ रही थी। कैमरामैन गोविन्द की हिम्मत की दाद देनी होगी कि जोखिम के बावजूद वह थोड़ा भी विचलित नहीं दिखे। ऐसे हालात में बड़े-बड़े सूरमाओं की हिम्मत डोल जाती है। जिस इनोवा कार में हम सफ़र कर रहे थे उसका ड्राइवर काफी डरा हुआ था। उसने कहा की 50 साल की उसकी उम्र है और उसने ऐसे हालात का सामना कभी नहीं किया था। वह वापस घर जाना चाहता था, लेकिन हमने उसे किसी तरह समझाया। अपलिंकिंग स्पॉट पर पहुंचे और सुब कुछ अपलिंक किया। फिर हृदयेश और उमा सुधीर के साथ मिलकर लाइव शो किया और कुछ नई तस्वीरों की तलाश में निकल पडे़।

अब दिन के 12 बज चुके थे। तकरीबन 32 किलोमीटर के वृत में फैला हुदहुद का किनारा विशाखापत्तनम से टकरा चुका था। ज्यादातर मोबाइल टावर्स खराब हो चुके थे। बिजली कटे हुए चार घंटे से ज्यादा हो चुका था। पुलिस का वायरलेस नेटवर्क अपने अधिकारियों की बेबसी पर आंसू भी नहीं बहा सकता क्योंकि कई बार काम करता और कई बार नहीं।

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तभी तकरीबन 1 बजे अचानक मौसम ठीक हो गया। हवा की रफ्तार लगभग सामान्य हो गई। बारिश रुक गई। हालांकि, सड़कों की हालत बदतर थी। रुकावटें हर जगह थी।