कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा तक़रीबन 78 साल के होने के बावजूद अपने पद पर बने हुए हैं क्योंकि लिंगायत समाज उनके साथ खड़ा है. उन्हें हटाने की कोशिश उनके विरोधी लगातार करते रहते हैं. ऐसे में अब येदियुरप्पा ने एक नई चाल चली है. अपने गढ़ को मजबूत करने की. एक लिंगायत और दूसरा मराठी डेवलपमेंट बोर्ड बनाकर.
कोरोना संक्रमण की वजह से सरकार की आमदनी भले ही कम हो लेकिन सवाल अपने वजूद को बनाये रखने का है ऐसे में मुख्यमंत्री येदियुरप्पा ने दो बोर्ड बनाने का एलान किया. लिंगायत डेवलपमेंट बोर्ड और मराठी डेवलपमेंट बोर्ड. कर्नाटक की महाराष्ट्र की सीमा वाले इलाक़ो को महाराष्ट्र से मिलने की मांग और इससे होने वाले संघर्ष को रोकने में जहां ये दोनों बोर्ड मददगार होंगे वहीं उत्तर कर्नाटक का ये इलाका शांत होगा जो कि लिंगायतों का गढ़ माना जाता है.
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उप मुख्यमंत्री डॉ अश्वत्थ नारायण ने कहा, 'इन निगमों का गठन मराठी और लिंगायतों की अपेक्षाओं के अनुरूप है. लंबे अरसे से उनकी मांग को मुख्यमंत्री ने पूरा किया है.' मराठी और लिंगायतों के लिए निगमों का ऐलान हुआ तो जैन समुदाय ने भी अपने लिए एक अलग निगम बनाने की मांग कर दी. जनगणना से पहले जैन समाज जल्दी अपने तौर पर जैनियों के लिए जनगणना करने जा रहा है ताकि इस समुदाय की संख्या सही से पता चल सके.
जैन संघ के अध्यक्ष बी प्रसन्ना ने बताया, 'बेलगावी और हुबली धारवाड़ जैसे इलाकों में आप देखें कि वहां जैन समुदाय के लोग मजदूरी और कृषि के कामों में लगे हैं. वह संपन्न नहीं हैं. ऐसे में हम भी एक निगम चाहते हैं. ब्राह्मणों के लिए भी इसकी व्यवस्था की गई है.'
इन सबके बीच इस बात को लेकर भी विवाद शुरू हो गया है की लिंगायत के विकास के लिए उन्हें आरक्षण देना चाहिए. सिर्फ निगम बना देने से उनका भला नहीं होगा. वहीं एक गुट ऐसा भी है जो चाहता है की लिंगायतों को अलग धर्म का दर्जा दिया जाए.
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