काठमांडू:
काठमांडू के त्रिभुवन एयरपोर्ट पर बहुत ही भीड़ भाड़ का आलम है। भारत समेत दुनियाभर के राहतकर्मी यहां पहुंच रहे हैं। वे अपने साथ बड़ी मात्रा में खानेपीने की चीज़ें, दवाएं, टेंट, कंबल आदि लेकर आ रहे हैं। ये सब अलग-अलग देशों से आ रही सरकारी सहायता से अलग है।
लेकिन इनमें से भी ज़्यादातर राहत सामग्री एयरपोर्ट पर ही जमा करा ली जाती है। वो इसलिए कि सरकार इसे अपने सरकारी तंत्र के ज़रिए बांटना चाहती है। तर्क ये है कि इससे राहत सामग्री सही में ज़रूरतमंद लोगों तक पहुंचेगी। ये कुछ हाथों में ही सिमट कर नहीं रह जाएगी। इस सरकारी नियम के अपने फायदे हैं तो नुकसान भी।
सरकारी तंत्र इतना बड़ा और चुस्त नहीं कि भूकंप से तबाह हर सूदूरवर्ती इलाक़े तक पहुंच सके। लिहाज़ा एयरपोर्ट और सरकारी गोदामों में राहत सामग्री का अंबार लगने लगा है जबकि सूदूरवर्ती इलाक़ों के भूकंप पीड़ित राहत की राह देख रहे हैं।
कुछ विदेशी राहतकर्मी जो अपने रजिस्टर्ड बैगेज के रूप में राहत सामग्री लेकर आ रहे हैं वही उसे अपने साथ लेकर बाहर निकल पा रहे हैं। काठमांडू के स्थानीय लोगों ने हेल्पिंग हैंड नाम से एक स्वयंसेवी संस्था बनायी है जो इस तरह सीधे पहुंचे राहत सामग्री को दूरदराज़ के इलाक़ों में पहुंचाने में जुटे हैं।
ज़रूरत अधिक है और बाहर से सीधी सहायता ऐसी संस्थाओं तक नहीं पहुंच रही है। लिहाज़ा इन्होंने ख़ुद सामग्री इकट्ठा करना शुरू किया है। लोग बड़ी तादाद में मदद को आगे आ रहे हैं। ख़ासतौर पर नेपाल के व्यापारियों का तबका इसमें दिल खोल कर जुट गया है।
ऐसी कोशिशों की ख़बर जैसे-जैसे फैल रही है, लोग ख़ुद भी गाड़ियों में सामान लाद कर संस्था तक पहुंचा रहे हैं। संस्था से जुड़े एक स्वयंसेवक अपना नाम नहीं देना चाहते लेकिन कहते हैं कि सरकार को चाहिए कि वो हमारी मदद ले। हम हरेक दान और सामान का रिकॉर्ड रख रहे हैं। आने वाली राहत सामग्री और ज़रुरतमंदों तक उसे पहुंचाने की पूरी तस्वीर भी उतारी जा रही है।
सरकार चाहे तो अपने कुछ नियम तय कर दे लेकिन राहत सामग्री बांटने में हमारी मदद ले। हम उन इलाक़ों में भी मदद पहुंचा रहे हैं जहां गाड़ियों से जाना संभव नहीं। हम पैदल चल कर वहां पहुंच रहे हैं। देखना है नेपाल की सरकार इनके आग्रह को मान इनकी सहायता लेती है या फिर अपने तरीक़े से ही काम करती है।
लेकिन इनमें से भी ज़्यादातर राहत सामग्री एयरपोर्ट पर ही जमा करा ली जाती है। वो इसलिए कि सरकार इसे अपने सरकारी तंत्र के ज़रिए बांटना चाहती है। तर्क ये है कि इससे राहत सामग्री सही में ज़रूरतमंद लोगों तक पहुंचेगी। ये कुछ हाथों में ही सिमट कर नहीं रह जाएगी। इस सरकारी नियम के अपने फायदे हैं तो नुकसान भी।
सरकारी तंत्र इतना बड़ा और चुस्त नहीं कि भूकंप से तबाह हर सूदूरवर्ती इलाक़े तक पहुंच सके। लिहाज़ा एयरपोर्ट और सरकारी गोदामों में राहत सामग्री का अंबार लगने लगा है जबकि सूदूरवर्ती इलाक़ों के भूकंप पीड़ित राहत की राह देख रहे हैं।
कुछ विदेशी राहतकर्मी जो अपने रजिस्टर्ड बैगेज के रूप में राहत सामग्री लेकर आ रहे हैं वही उसे अपने साथ लेकर बाहर निकल पा रहे हैं। काठमांडू के स्थानीय लोगों ने हेल्पिंग हैंड नाम से एक स्वयंसेवी संस्था बनायी है जो इस तरह सीधे पहुंचे राहत सामग्री को दूरदराज़ के इलाक़ों में पहुंचाने में जुटे हैं।
ज़रूरत अधिक है और बाहर से सीधी सहायता ऐसी संस्थाओं तक नहीं पहुंच रही है। लिहाज़ा इन्होंने ख़ुद सामग्री इकट्ठा करना शुरू किया है। लोग बड़ी तादाद में मदद को आगे आ रहे हैं। ख़ासतौर पर नेपाल के व्यापारियों का तबका इसमें दिल खोल कर जुट गया है।
ऐसी कोशिशों की ख़बर जैसे-जैसे फैल रही है, लोग ख़ुद भी गाड़ियों में सामान लाद कर संस्था तक पहुंचा रहे हैं। संस्था से जुड़े एक स्वयंसेवक अपना नाम नहीं देना चाहते लेकिन कहते हैं कि सरकार को चाहिए कि वो हमारी मदद ले। हम हरेक दान और सामान का रिकॉर्ड रख रहे हैं। आने वाली राहत सामग्री और ज़रुरतमंदों तक उसे पहुंचाने की पूरी तस्वीर भी उतारी जा रही है।
सरकार चाहे तो अपने कुछ नियम तय कर दे लेकिन राहत सामग्री बांटने में हमारी मदद ले। हम उन इलाक़ों में भी मदद पहुंचा रहे हैं जहां गाड़ियों से जाना संभव नहीं। हम पैदल चल कर वहां पहुंच रहे हैं। देखना है नेपाल की सरकार इनके आग्रह को मान इनकी सहायता लेती है या फिर अपने तरीक़े से ही काम करती है।
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