प्रवासी मज़दूरों के पलायन की एक बड़ी वजह कमाई और नौकरी खोने के अलावा खाने की कमी है. केंद्रीय खाद्य मंत्री राम विलास पासवान ने शुक्रवार को कहा की बिहार समेत कई राज्य सरकारें राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना के तहत लाभार्थियों की लिस्ट ठीक से नहीं बना पायी है. इस वजह से करीब 39 लाख लोग लिस्ट से कटे हुए हैं जिन्हे सस्ता अनाज पाने का अधिकार है. इस संकट के दौर में वो सस्ता अनाज पाने के अधिकार से वंचित हैं. इस लिस्ट में बिहार सबसे ऊपर है.
राम विलास पासवान ने कहा, " बिहार में 8.71 करोड़ ज़रूरतमंद लोग हैं. इनमे 8.57 लाख को ही राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून की लाभार्थी सूची में शामिल किया गया है. मैंने लिस्ट मांगी है लेकिन बिहार सरकार अभी तक पूरी लिस्ट बना नहीं पायी है... बिहार में 15 लाख लोग छूटे हुए हैं. उन तक हम कैसे अनाज पहुंचाएंगे?" हिमाचल प्रदेश में करीब 8 लोग और तमिलनाडु में करीब 7 लाख लोग फ़ूड सब्सिडी स्कीम के दायरे से बाहर हैं.
वहीं, छोटे और लघु उद्योगों में काम करने वाले ऐसे करीब 8 से 10 करोड़ मज़दूर हैं जिन्हे लॉकडाऊन संकट की वजह से अप्रैल की तनख्वाह नहीं मिल पायी है. छोटे और लघु उद्योगों के संघ के सेक्रेटरी ने एनडीटीवी से बातचीत में ये आशंका जताई. कोरोना संकट और लॉकडाऊन के दौरान अपना सब कुछ खोने के बाद पैदल पलायन करते इन सैकड़ों मज़दूरों की ये तस्वीर मानवीय त्रासदी की ओर इशारा करती है.
देश के करीब 4 करोड़ छोटे, लघु और मध्यम उद्योगों में ऐसे करीब 12 करोड़ मज़दूर काम करते थे. अब छोटे लघु उद्योगों के संघ का अनुमान है कि अप्रैल में करीब 10 से 12 करोड़ मज़दूरों को सैलरी नहीं मिल पायी है.
एमएसएमई फेडरेशन के सेक्रेटरी जनरल अनिल भारद्धाज ने एनडीटीवी से कहा "आज देश में करीब 12 करोड़ सैलरीड वर्कर्स हैं जो छोटे और लघु उद्योगों में काम करते हैं. अप्रैल महीने में लॉकडाउन की वजह से करीब 8 से 10 करोड़ वर्कर ऐसे होंगे जिन्हें आर्थिक संकट की वजह से छोटे और लघु उद्योग अप्रैल महीने की सैलरी नहीं दे पाए होंगे. बहुत ही कम ऐसे लघु उद्योग होंगे जो वर्करों को पूरी सैलरी दे पाए होंगे."
छोटे लघु उद्योगों के संघ का दावा है कि राहत पैकेज के ऐलान में देरी हुई. मज़दूरों के पलायन की दूसरी लहर शुरू हुई है. अब छोटे और लघु उद्योगों के संघ की मांग है कि सरकार लॉकडाऊन के दौरान मज़दूरों के वेतन का भार वहन करे, उनके लिए एक बड़े आर्थिक पैकेज का जल्दी ऐलान करे. साफ़ है प्रशासनिक खामियों और लॉकडाऊन ने लाखों-करोड़ों मज़दूरों का संकट बढ़ा दिया है और अगर सरकार ने जल्दी हस्तक्षेप नहीं किया तो हालात और ख़राब हो सकते हैं.
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