फाइल फोटो
नई दिल्ली:
बेहद खास किस्म की ट्रेनिंग पाए 18 भारतीय जवान किसी दूसरे देश की जमीन पर अगले आदेश के लिए इंतजार करते रहे। उन्हें इंतजार था उस आदेश का, जिसके बाद उन्हें म्यांमार की सीमा के भीतर स्थित आतंकी संगठन नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (खापलांग) के कैंपों को नष्ट करना था।
इस बात को अब तक गुप्त रखा गया था कि कैसे भारतीय सेना के विशेष ट्रेनिंग पाए कमांडो की एक छोटी सी टीम ने अलग राज्य की मांग हिंसा फैला रहे अलगाववादियों को न सिर्फ ढूंढा बल्कि उनको मार भी गिराया। 9 जून के उस विशेष ऑपरेशन को कैसे अंजाम दिया गया इस बात की जानकारी अब एनडीटीवी के पास है।
21 स्पेशल फोर्सेस बटालियन के कमांडो जो कि पूर्वोत्तर के घने जंगलों की लड़ाई में माहिर होते हैं, उन्होंने दुश्मनों की हरकतों पर पैनी नजर रखी और अपने निशाने बहुत सावधानी से चुने। 8 जून को रात 11 बजे ये कमांडो घने जंगलों में घुसे और पैदल चलकर म्यांमान की सीमा में प्रवेश कर गए।
9 जून की सुबह 4:45 बजे, सूर्योदय से थोड़ा पहले हमले का वक्त था।
इस गुप्त ऑपरेशन को अंजाम देने वाली टीम का इंचार्ज एक युवा लेफ्टिनेंट कर्नल (सुरक्षा कारणों से नाम नहीं बताए जा सकते) था। वो खुद टीम का नेतृत्व कर रहा था। उसके बाद था एक पैराट्रूपर जिसे वो अपना दोस्त बताते हैं, एक हवलदार और उसी की टीम का एक अन्य पैराट्रूपर।
इन चारों को वर्षों तक पूर्वोत्तर के घने जंगलों में अत्याधिक गर्मी और उमस भरे माहौल में भी लड़ने की ट्रेनिंग मिली है। ऐसे सैन्य अभियान के लिए ये चारों सर्वश्रेष्ठ थे जिनको भारतीय सेना चुन सकती थी - देश के दुश्मनों को मार गिराने में अनुभवी और बेहद निपुण, और जरूरत पड़े तो दूसरे देश की सीमा में घुस कर भी।
आपको बता दें कि इस ऑपरेशन के हफ्ते भर पहले ही आतंकवादियों ने 18 जवानों को मार डाला था। सरकार आतंकवाद से लड़ने को लेकर अपने मजबूत इरादे साबित करने के लिए प्रतिबद्ध थी, भले ही इसके लिए किसी दूसरे देश में घुसकर गोपनीय अभियान चलाना पड़े।
लेफ्टिनेंट कर्नल ने दो निशाने तय किए थे। हवलदार और उसके पैराट्रूपर ने थोड़ी ही दूरी पर स्थित पोस्ट पर हमला किया जबकि टीम लीडर ने अपने दोस्त के साथ दूसरे पोस्ट पर।
इस क्षेत्र में चल रहे विद्रोहियों के ट्रेनिंग कैंप के एक पोस्ट पर आतंकी उस वक्त भी सक्रीय थे। उनके लोग सतर्क थे। लेकिन जंगल में छुपते हुए हवलदार अपने पैराट्रूपर के साथ रेंगते हुए उस पोस्ट तक पहुंचा। पैराट्रूपर ने इलाके का मुआयना किया जबकि हवलदार रेंग कर दुश्मन की उस पोस्ट पर पहुंच गया जहां एक बंदूकधारी आतंकी मौजूद था।
पोस्ट पर तैनात आतंकवादी की मशीनगन जिस सुराख से बाहर निकली हुई थी वो उसकी पहुंच से ज्यादा दूर नहीं थी। हवलदार ने तुरंत ही उसी सुराख के जरिए अपनी साइलेंसर लगी बंदूक से आतंकी को ठिकाने लगा दिया।
उसके बाद उसने एक अन्य आतंकी को सिर में गोली मारी जबकि दूसरे को बेहद करीब से गोली मारी। इस पूरी कार्रवाई में एक मिनट से भी कम वक्त लगा।
इसके बाद बेहद खामोशी से वो झाड़ियों में गुम हो गए और अपने कमांडिंग ऑफिसर, लेफ्टिनेंट कर्नल को तीन आतंकियों को मार गिराने की खबर दी। उसके बाद वो इंतजार करने लगे और
वहां से थोड़ी ही दूरी पर लेफ्टिनेंट कर्नल और उसका पैराट्रूपर दोस्त बिना कोई आवाज किए दूसरे पोस्ट पर पहुंच गए।
उसने अपनी साइलेंसर लगी उजी सब मशीनगन से दो आतंकियों को मार गिराया और दूसरी पोस्ट से तुरंत ही बाहर आ गया। वहां से करीब 30 मीटर की दूरी पर दुश्मन का एक बंकर था। बंकर से कुछ आवाजें आ रही थीं, लेफ्टिनेंट कर्नल ने बंकर में एक ग्रेनेड फेंका और फिर अंदर चला गया। अगर लेफ्टिनेंट कर्नल ने सोचा था कि एक ग्रेनेड से सारे आतंकी मारे जाएंगे तो वो गलत था। बंकर के अंदर 4 आतंकी घायल पड़े थे और उन्होंने हमला करने की कोशिश भी की। लेकिन लेफ्टिनेंट कर्नल ने अपनी उजी से चारों को मार गिराया।
उसके बाद कर्नल ने पास ही इंतजार कर रहे भारतीय पैरा कमांडो की टीम को आतंकी कैंपों पर जोरदार हमला करने के आदेश दिए। उसके निर्देश पर स्पेशल फोर्सेस के 21 कमांडो ने रॉकेट प्रोपेल्ड ग्रेनेड से अपने निशने पर 20 मिनट से भी ज्यादा वक्त तक फायरिंग करते रहे।
अब तक भारतीय कमांडो ने जिस कैंप पर हमला किया था इसकी जानकारी आतंकियों को हो चुकी थी और करीब इलाके के 10-12 बंकरों से भारतीय कमांडो टीम पर फायरिंग होने लगी। लेकिन भारतीय सेना के रॉकेट प्रोपेल्ड ग्रेनेड हमले से उनकी कमर तोड़ दी थी और मौके पर मौजूद चारों कमांडो जो आतंकियों से लोहा ले रहे थे, भारतीय सीमा की ओर भाग रहे आतंकिेयों से भिड़ गए।
इस ऑपरेशन के लिए शौर्य चक्र विजेता युवा लेफ्टिनेंट कर्नल को कीर्ति चक्र प्रदान किया गया जो कि शांतिकाल का दूसरा सबसे बड़ा बहादूरी पुरस्कार है। और दुश्मन के पहले पोस्ट पर हमला करने वाले हवलदार को शौर्य चक्र प्रदान किया गया जो कि पहले शांतिकाल के दौरान दिया जाने वाला तीसरा सबसे बड़ा बहादूरी पुरस्कार है।
इस बात को अब तक गुप्त रखा गया था कि कैसे भारतीय सेना के विशेष ट्रेनिंग पाए कमांडो की एक छोटी सी टीम ने अलग राज्य की मांग हिंसा फैला रहे अलगाववादियों को न सिर्फ ढूंढा बल्कि उनको मार भी गिराया। 9 जून के उस विशेष ऑपरेशन को कैसे अंजाम दिया गया इस बात की जानकारी अब एनडीटीवी के पास है।
21 स्पेशल फोर्सेस बटालियन के कमांडो जो कि पूर्वोत्तर के घने जंगलों की लड़ाई में माहिर होते हैं, उन्होंने दुश्मनों की हरकतों पर पैनी नजर रखी और अपने निशाने बहुत सावधानी से चुने। 8 जून को रात 11 बजे ये कमांडो घने जंगलों में घुसे और पैदल चलकर म्यांमान की सीमा में प्रवेश कर गए।
9 जून की सुबह 4:45 बजे, सूर्योदय से थोड़ा पहले हमले का वक्त था।
इस गुप्त ऑपरेशन को अंजाम देने वाली टीम का इंचार्ज एक युवा लेफ्टिनेंट कर्नल (सुरक्षा कारणों से नाम नहीं बताए जा सकते) था। वो खुद टीम का नेतृत्व कर रहा था। उसके बाद था एक पैराट्रूपर जिसे वो अपना दोस्त बताते हैं, एक हवलदार और उसी की टीम का एक अन्य पैराट्रूपर।
इन चारों को वर्षों तक पूर्वोत्तर के घने जंगलों में अत्याधिक गर्मी और उमस भरे माहौल में भी लड़ने की ट्रेनिंग मिली है। ऐसे सैन्य अभियान के लिए ये चारों सर्वश्रेष्ठ थे जिनको भारतीय सेना चुन सकती थी - देश के दुश्मनों को मार गिराने में अनुभवी और बेहद निपुण, और जरूरत पड़े तो दूसरे देश की सीमा में घुस कर भी।
आपको बता दें कि इस ऑपरेशन के हफ्ते भर पहले ही आतंकवादियों ने 18 जवानों को मार डाला था। सरकार आतंकवाद से लड़ने को लेकर अपने मजबूत इरादे साबित करने के लिए प्रतिबद्ध थी, भले ही इसके लिए किसी दूसरे देश में घुसकर गोपनीय अभियान चलाना पड़े।
लेफ्टिनेंट कर्नल ने दो निशाने तय किए थे। हवलदार और उसके पैराट्रूपर ने थोड़ी ही दूरी पर स्थित पोस्ट पर हमला किया जबकि टीम लीडर ने अपने दोस्त के साथ दूसरे पोस्ट पर।
इस क्षेत्र में चल रहे विद्रोहियों के ट्रेनिंग कैंप के एक पोस्ट पर आतंकी उस वक्त भी सक्रीय थे। उनके लोग सतर्क थे। लेकिन जंगल में छुपते हुए हवलदार अपने पैराट्रूपर के साथ रेंगते हुए उस पोस्ट तक पहुंचा। पैराट्रूपर ने इलाके का मुआयना किया जबकि हवलदार रेंग कर दुश्मन की उस पोस्ट पर पहुंच गया जहां एक बंदूकधारी आतंकी मौजूद था।
पोस्ट पर तैनात आतंकवादी की मशीनगन जिस सुराख से बाहर निकली हुई थी वो उसकी पहुंच से ज्यादा दूर नहीं थी। हवलदार ने तुरंत ही उसी सुराख के जरिए अपनी साइलेंसर लगी बंदूक से आतंकी को ठिकाने लगा दिया।
उसके बाद उसने एक अन्य आतंकी को सिर में गोली मारी जबकि दूसरे को बेहद करीब से गोली मारी। इस पूरी कार्रवाई में एक मिनट से भी कम वक्त लगा।
इसके बाद बेहद खामोशी से वो झाड़ियों में गुम हो गए और अपने कमांडिंग ऑफिसर, लेफ्टिनेंट कर्नल को तीन आतंकियों को मार गिराने की खबर दी। उसके बाद वो इंतजार करने लगे और
वहां से थोड़ी ही दूरी पर लेफ्टिनेंट कर्नल और उसका पैराट्रूपर दोस्त बिना कोई आवाज किए दूसरे पोस्ट पर पहुंच गए।
उसने अपनी साइलेंसर लगी उजी सब मशीनगन से दो आतंकियों को मार गिराया और दूसरी पोस्ट से तुरंत ही बाहर आ गया। वहां से करीब 30 मीटर की दूरी पर दुश्मन का एक बंकर था। बंकर से कुछ आवाजें आ रही थीं, लेफ्टिनेंट कर्नल ने बंकर में एक ग्रेनेड फेंका और फिर अंदर चला गया। अगर लेफ्टिनेंट कर्नल ने सोचा था कि एक ग्रेनेड से सारे आतंकी मारे जाएंगे तो वो गलत था। बंकर के अंदर 4 आतंकी घायल पड़े थे और उन्होंने हमला करने की कोशिश भी की। लेकिन लेफ्टिनेंट कर्नल ने अपनी उजी से चारों को मार गिराया।
उसके बाद कर्नल ने पास ही इंतजार कर रहे भारतीय पैरा कमांडो की टीम को आतंकी कैंपों पर जोरदार हमला करने के आदेश दिए। उसके निर्देश पर स्पेशल फोर्सेस के 21 कमांडो ने रॉकेट प्रोपेल्ड ग्रेनेड से अपने निशने पर 20 मिनट से भी ज्यादा वक्त तक फायरिंग करते रहे।
अब तक भारतीय कमांडो ने जिस कैंप पर हमला किया था इसकी जानकारी आतंकियों को हो चुकी थी और करीब इलाके के 10-12 बंकरों से भारतीय कमांडो टीम पर फायरिंग होने लगी। लेकिन भारतीय सेना के रॉकेट प्रोपेल्ड ग्रेनेड हमले से उनकी कमर तोड़ दी थी और मौके पर मौजूद चारों कमांडो जो आतंकियों से लोहा ले रहे थे, भारतीय सीमा की ओर भाग रहे आतंकिेयों से भिड़ गए।
इस ऑपरेशन के लिए शौर्य चक्र विजेता युवा लेफ्टिनेंट कर्नल को कीर्ति चक्र प्रदान किया गया जो कि शांतिकाल का दूसरा सबसे बड़ा बहादूरी पुरस्कार है। और दुश्मन के पहले पोस्ट पर हमला करने वाले हवलदार को शौर्य चक्र प्रदान किया गया जो कि पहले शांतिकाल के दौरान दिया जाने वाला तीसरा सबसे बड़ा बहादूरी पुरस्कार है।
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