
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट (Punjab-Haryana high court) ने अहम फैसला देते हुए कहा है कि 18 साल से कम उम्र की यौवन प्राप्त कर चुकी युवती मुस्लिम पर्सनल लॉ (Muslim Personal Law) के तहत विवाह योग्य आयु की होगी. इसके साथ ही हाईकोर्ट ने 17 साल की मुस्लिम लड़की (Muslim girl) को सुरक्षा प्रदान की जिसने 36 साल के एक मुस्लिम व्यक्ति से शादी की थी. दरअसल जस्टिस अलका सरीन की पीठ मुस्लिम पति-पत्नी (याचिकाकर्ताओं) द्वारा दायर एक संरक्षण याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने 21 जनवरी 2021 को मुस्लिम संस्कारों और समारोहों के अनुसार निकाह किया था. इस मामले में पति के जन्म की तारीख 01 अप्रैल 1984 है जबकिपत्नी की जन्म तारीख 10 जनवरी 2004 है.
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कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की ओर से उद्धृत फैसलों पर ध्यान दिया और इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि इस मामले में याचिकाकर्ता, याचिकाकर्ता पत्नी की आयु 17 वर्ष से अधिक है. कोर्ट ने यह भी कहा कि 2014 के एक मामले में अदालत ने यह उल्लेख किया गया था कि एक मुस्लिम लड़की का विवाह मुसलमानों के पर्सनल लॉ द्वारा शासित होता है. कोर्ट ने सर दिनेश फरदुनजी मुल्ला की की किताब 'प्रिंसिपल्स ऑफ मोहम्मडन लॉ' के अनुच्छेद 195 का हवाला दिया है. हाईकोर्ट ने इसे माना कि युवावस्था की आयु प्राप्त करने पर मुस्लिम लड़की अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ विवाह करने के लिए स्वतंत्र है.मुल्ला की पुस्तक में अनुच्छेद 195 कहता है, “परिपक्व दिमाग वाला हर मुस्लिम जिसने यौवन प्राप्त कर लिया हो वह विवाह का अनुबंध कर सकती है. यौवन के सबूतों के अभाव में पंद्रह साल की उम्र पूरा होने परयौवन को पूरा मान लिया जाता है.''
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25 जनवरी को दिए इस आदेश में कोर्ट ने कहा कि अदालत इस तथ्य पर अपनी आँखें बंद नहीं कर सकती है कि याचिकाकर्ताओं की आशंका को संबोधित किया जाना चाहिए. केवल इसलिए कि याचिकाकर्ताओं ने अपने परिवार के सदस्यों की इच्छाओं के खिलाफ शादी कर ली है, वे संभवतः उन मौलिक अधिकारों से वंचित नहीं किए जा सकते जैसा कि भारत के संविधान में परिकल्पित किया गया है. अदालत ने मोहाली के एसएसपी को उनके प्रतिनिधित्व पर कदम उठाने को कहा है. दरअसल भारत में शादी की कानूनी उम्र लड़कियों के लिए 18 वर्ष और लड़कों के लिए 21 वर्ष है.इसे विशेष विवाह अधिनियम, 1954 और बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 द्वारा शासित किया गया है. हालांकि, मुस्लिम कानून के तहत, निकाह या शादी एक अनुबंध है. मुस्लिम कानून मानता है कि वयस्कों को अपनी मर्जी से शादी करने का अधिकार है. गौरतलब है कि हादिया केस में भी सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि एक वयस्क महिला की शादी की पसंद की वैधता पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है. वैसे 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रश्न की जांच करने पर सहमति व्यक्त की थी कि क्या एक मुस्लिम नाबालिग लड़की जिसे यौवन प्राप्त हुआ है, उसे उसकी पसंद के व्यक्ति के साथ रहने की अनुमति दी जाए? इसके अलावा विवाह, तलाक और गुजारा भत्ता तो लेकर देश में सभी धर्मां के लिए यूनिफॉर्म कानून बनाने की याचिका भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.
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