सपा के आज़म ख़ान और उनके बेटे जीतने में कामयाब हुए हैं (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
विधायिका में सभी वर्ग की समान भागीदारी की बात हर कोई राजनीतिक दल करता है, लेकिन इस बार की विधानसभा में यह बात मुस्लिम समुदाय की भागीदारी पर मुट्ठी भर विधायकों तक सिमट कर रह गई है. बीजेपी ने तो किसी भी मुस्लिम को टिकट दिया ही नहीं था, ऊपर से चली मोदी लहर ने अन्य दलों के मुस्लिम उम्मीदवारों को सदन तक जाने से रोक लिया.
उत्तर प्रदेश में मोदी लहर इतनी जबर्दस्त थी कि इस बार विधानसभा पहुंचने वाले मुसलमान विधायकों की संख्या काफी कम हो गई. हालांकि अन्य दलों ने काफी मात्रा में मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिए थे, लेकिन उनमें से बहुत कम को ही जीत हासिल हुई, यहां तक कि मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में भी काफी कम मुस्लिम उम्मीदवार जीतने में कामयाब हुए.
बहुजन समाज पार्टी ने सौ से अधिक मुसलमान प्रत्याशी बनाए थे और समाजवादी पार्टी ने भी 59 से अधिक मुसलमानों को टिकट दिया, लेकिन कुल मिलाकर केवल 24 मुस्लिम प्रत्याशी ही जीत हासिल कर पाए. सबसे अधिक 19 मुस्लिम प्रत्याशी सपा-कांग्रेस गठबंधन से जीते जबकि, बीएसपी के महज पांच मुस्लिम प्रत्याशी ही विजयी हो सके.
वहीं, 2012 में 64 मुसलमान प्रत्याशी विधायक बने थे. इससे पहले 1991 में राम मंदिर मुद्दे की वजह से विधानसभा में केवल चार प्रतिशत मुस्लिम विधायक ही पहुंच पाए थे. उसके बाद हुए चुनावों में मुस्लिम विधायकों की संख्या में लगातार इज़ाफा होता चला गया. लेकिन इस बार की मोदी लहर ने इस पर ब्रेक लगा दिया.
बड़े नामों की बात करें तो सपा सरकार में मंत्री रहे आजम खान रामपुर सीट बचाने में सफल रहे जबकि उनका बेटा अब्दुल्ला आजम स्वार सीट पर जीता. बाहुबली मुख्तार अंसारी मऊ सीट पर बसपा के टिकट पर विजयी हुए, जबकि उनके भाई और पुत्र चुनाव हार गए.
(इनपुट भाषा में भी)
उत्तर प्रदेश में मोदी लहर इतनी जबर्दस्त थी कि इस बार विधानसभा पहुंचने वाले मुसलमान विधायकों की संख्या काफी कम हो गई. हालांकि अन्य दलों ने काफी मात्रा में मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिए थे, लेकिन उनमें से बहुत कम को ही जीत हासिल हुई, यहां तक कि मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में भी काफी कम मुस्लिम उम्मीदवार जीतने में कामयाब हुए.
बहुजन समाज पार्टी ने सौ से अधिक मुसलमान प्रत्याशी बनाए थे और समाजवादी पार्टी ने भी 59 से अधिक मुसलमानों को टिकट दिया, लेकिन कुल मिलाकर केवल 24 मुस्लिम प्रत्याशी ही जीत हासिल कर पाए. सबसे अधिक 19 मुस्लिम प्रत्याशी सपा-कांग्रेस गठबंधन से जीते जबकि, बीएसपी के महज पांच मुस्लिम प्रत्याशी ही विजयी हो सके.
वहीं, 2012 में 64 मुसलमान प्रत्याशी विधायक बने थे. इससे पहले 1991 में राम मंदिर मुद्दे की वजह से विधानसभा में केवल चार प्रतिशत मुस्लिम विधायक ही पहुंच पाए थे. उसके बाद हुए चुनावों में मुस्लिम विधायकों की संख्या में लगातार इज़ाफा होता चला गया. लेकिन इस बार की मोदी लहर ने इस पर ब्रेक लगा दिया.
बड़े नामों की बात करें तो सपा सरकार में मंत्री रहे आजम खान रामपुर सीट बचाने में सफल रहे जबकि उनका बेटा अब्दुल्ला आजम स्वार सीट पर जीता. बाहुबली मुख्तार अंसारी मऊ सीट पर बसपा के टिकट पर विजयी हुए, जबकि उनके भाई और पुत्र चुनाव हार गए.
(इनपुट भाषा में भी)
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