बीएमसी स्कूल में पढ़ते हुए विद्यार्थी।
मुंबई:
बच्चों की शिक्षा को ज्यादा आधुनिक करने के लिए मुम्बई में बीएमसी ने सरकारी स्कूलों में टैब बांटे। आठवी कक्षा के बच्चे अब इन टैब्स पर पढाई कर रहे हैं। हालांकि बीएमसी की यह टैब योजना हमेशा ही विवादों में रही है।
बीएमसी स्कूलों में bolld नाम की कंपनी के टैब बांटे जा रहे हैं। बीएमसी स्कूल में इस कंपनी के टैब दौड़ पड़े हैं। यह बात और है कि इस टैब के फीचर बच्चों को थका सकते हैं। बच्चों को इन्हें घर ले जाने की इजाजत नहीं है। इसमें जो एप्लीकेशन हैं वे हैंग हो जाते हैं।
सभी शिक्षक नहीं जानते इस्तेमाल
अतिरिक्त म्युनिसिपल आयुक्त पल्लवी दराडे ने बताया कि, 'करीब 9000 से जयादा टैब स्कूलों में बांटे जा चुके हैं। बचे हुए कुछ दिनों में बांट दिए जाएंगे। बच्चों को टैब से पढ़ाने के लिए टीचर ट्रेनिंग भी हो गई है।' टीचर ट्रेनिंग कहने को तो हो गई है लेकिन कई टीचर अब भी इसे इस्तेमाल करना नहीं जानते।
इंटरनेट की सुविधा नहीं
इस टैब में बच्चों के लिए तीन एप्लीकेशन हैं। एक टेक्स्ट बुक रीडिंग के लिए, एक टेस्ट के लिए और तीसरा ई टीचिंग के लिए। पहली नजर में टैब ठीक लगता है पर इस्तेमाल करने पर इसकी खामियां पता चल जाती हैं। इसमें इंटरनेट नहीं है। पहले से इंस्टॉल टेक्स्ट बुक पढ़ सकते हैं लेकिन ई टीचिंग एप्लीकेशन बगैर इंटरनेट के किसी काम की नहीं। टेस्ट एप्लीकेशन इंग्लिश फॉर्मेट रीड नहीं कर सकता। सब्जेक्ट वीडियो जैसे फीचर काम नहीं करते।
चार्जिंग की पर्याप्त व्यवस्था नहीं
इस टैब को इस्तेमाल करते वक्त बच्चों को सबसे ज्यादा इसे चार्ज करने की समस्या का सामना करना पड़ता है। बांद्रा की बीएमसी स्कूल में 116 टैब बांटे गए हैं और चार्ज करने के लिए कंप्यूटर रूम में सिर्फ 15 चार्जिंग पॉइंट हैं। ऐसे में बच्चे या तो घर से पॉवर बैंक लाएं या फिर लंच ब्रेक या बाकी क्लासेज में अपना टैब चार्ज करें। बच्चों का कहना है कि इसकी बैटरी जल्दी डिस्चार्ज हो जाती है।
अच्छे विकल्प होने के बाद गुणवत्ताहीन टैब चुना
bolld नाम की कंपनी के टैब के टिकाऊ होने पर तो हमेशा ही सवाल उठे हैं। इसकी कीमत करीब 6 हजार रुपये बताई जा रही है, लेकिन इस कीमत पर इससे बेहतर विकल्प बाजार में मौजूद हैं। इसके बावजूद बीएमसी ने वह टैब चुना जिसकी हालत अभी से खस्ता है।
बीएमसी स्कूलों में bolld नाम की कंपनी के टैब बांटे जा रहे हैं। बीएमसी स्कूल में इस कंपनी के टैब दौड़ पड़े हैं। यह बात और है कि इस टैब के फीचर बच्चों को थका सकते हैं। बच्चों को इन्हें घर ले जाने की इजाजत नहीं है। इसमें जो एप्लीकेशन हैं वे हैंग हो जाते हैं।
सभी शिक्षक नहीं जानते इस्तेमाल
अतिरिक्त म्युनिसिपल आयुक्त पल्लवी दराडे ने बताया कि, 'करीब 9000 से जयादा टैब स्कूलों में बांटे जा चुके हैं। बचे हुए कुछ दिनों में बांट दिए जाएंगे। बच्चों को टैब से पढ़ाने के लिए टीचर ट्रेनिंग भी हो गई है।' टीचर ट्रेनिंग कहने को तो हो गई है लेकिन कई टीचर अब भी इसे इस्तेमाल करना नहीं जानते।
स्कूल में टैब चार्ज करते हुए बच्चे।
इंटरनेट की सुविधा नहीं
इस टैब में बच्चों के लिए तीन एप्लीकेशन हैं। एक टेक्स्ट बुक रीडिंग के लिए, एक टेस्ट के लिए और तीसरा ई टीचिंग के लिए। पहली नजर में टैब ठीक लगता है पर इस्तेमाल करने पर इसकी खामियां पता चल जाती हैं। इसमें इंटरनेट नहीं है। पहले से इंस्टॉल टेक्स्ट बुक पढ़ सकते हैं लेकिन ई टीचिंग एप्लीकेशन बगैर इंटरनेट के किसी काम की नहीं। टेस्ट एप्लीकेशन इंग्लिश फॉर्मेट रीड नहीं कर सकता। सब्जेक्ट वीडियो जैसे फीचर काम नहीं करते।
चार्जिंग की पर्याप्त व्यवस्था नहीं
इस टैब को इस्तेमाल करते वक्त बच्चों को सबसे ज्यादा इसे चार्ज करने की समस्या का सामना करना पड़ता है। बांद्रा की बीएमसी स्कूल में 116 टैब बांटे गए हैं और चार्ज करने के लिए कंप्यूटर रूम में सिर्फ 15 चार्जिंग पॉइंट हैं। ऐसे में बच्चे या तो घर से पॉवर बैंक लाएं या फिर लंच ब्रेक या बाकी क्लासेज में अपना टैब चार्ज करें। बच्चों का कहना है कि इसकी बैटरी जल्दी डिस्चार्ज हो जाती है।
स्कूल मे टैबलेट से पढ़ाई।
अच्छे विकल्प होने के बाद गुणवत्ताहीन टैब चुना
bolld नाम की कंपनी के टैब के टिकाऊ होने पर तो हमेशा ही सवाल उठे हैं। इसकी कीमत करीब 6 हजार रुपये बताई जा रही है, लेकिन इस कीमत पर इससे बेहतर विकल्प बाजार में मौजूद हैं। इसके बावजूद बीएमसी ने वह टैब चुना जिसकी हालत अभी से खस्ता है।
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