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This Article is From Aug 04, 2017

मुगलसराय स्टेशन का नाम बदलने पर बवाल, योगी आदित्यनाथ सरकार ने बताई यह वजह

मुगलसराय रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर जनसंघ के नेता दीन दयाल उपाध्याय के नाम पर करने को लेकर राज्यसभा में जमकर हंगामा हुआ.

मुगलसराय स्टेशन का नाम बदलने पर बवाल, योगी आदित्यनाथ सरकार ने बताई यह वजह
योगी आदित्यनाथ सरकार ने लिया है फैसला
नई दिल्ली: मुगलसराय रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर जनसंघ के नेता दीन दयाल उपाध्याय के नाम पर करने को लेकर राज्यसभा में जमकर हंगामा हुआ. समाजवादी पार्टी के सांसदों ने इसका विरोध किया. दरअसल यूपी की योगी सरकार के फैसले को गृह मंत्रालय ने हरी झंडी दिखा दी थी. सरकारी नियमों के मुताबिक किसी स्टेशन, गांव, शहर का नाम बदलने के लिए राज्य सरकार को गृहमंत्रालय से एनओसी लेना जरूरी होता है. दरअसल,बीजेपी इस साल पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म शताब्दी वर्ष मना रही है. योगी सरकार ने कैबिनेट की बैठक में मुगलसराय के मुख्य मार्ग का नाम दीनदयाल के नाम पर करने, प्रमुख चौराहे पर उनकी प्रतिमा लगाने और उसका नाम दीनदयाल चौक करने का भी निर्णय लिया था. इस बैठक में कहा गया था कि दीनदयाल उपाध्याय का निष्प्राण शरीर मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर मिला था.

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दीनदयाल उपाध्याय का शव संदिग्ध हालत में मिला था
गौरतलब है कि 1968 में दीनदयाल उपाध्याय का शव संदिग्ध हालत में मुगलसराय स्टेशन पर मिला था. पुलिस इनके शव को लावारिस मानकर चल रही थी. तभी स्टेशन पर कार्यरत कुछ रेलकर्मियों को शक हुआ कि ये पंडित दीनदयाल का शव है. इसके बाद सर संघचालक गोलवरकर और अटल बिहारी वाजपेयी मुगलसराय आए और दीनदयाल उपाध्याय के पार्थिव शरीर को लेकर दिल्ली गए, जहां उनका अंतिम संस्कार किया गया। वहीं स्थानीय लोगों का कहना है कि मुगलसराय लाल बहादुर शास्त्री की जन्मस्थली है इसलिए इसका नाम उन पर होना चाहिए.

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सबसे व्यस्त स्टेशनों में से एक
मुगलसराय जंक्शन भारत के सर्वाधिक व्यस्त रेलवे स्टेशनों में एक है. यह जंक्शन देश को पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत से जोड़ता है. मुगलसराय में रेलवे का एशिया का सबसे बड़ा यार्ड है और इसी जंक्शन से ग्रैंड कार्ड रेल लाइन भी शुरू होती है, जो गया, धनबाद होते हुए हावड़ा के लिए जाती है. मुगलसराय-पटना रेल रूट सन 1862 में अस्तित्व में आया जबकि मुगलसराय-गया रूट 1900 में अस्तित्व में आया. मुगलसराय-इलाहाबाद रेलखंड 1864 में और मुगलसराय-वाराणसी 1898 में अस्तित्व में आया.

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