विज्ञापन
This Article is From May 08, 2016

मदर्स डे विशेष : शारीरिक अक्षमता के बावजूद 'रोमू' को मां के हौसले ने बनाया IAS...

मदर्स डे विशेष : शारीरिक अक्षमता के बावजूद 'रोमू' को मां के हौसले ने बनाया IAS...
रमेश अपनी मां विमला घोलप के साथ
महागांव: रोमू....यह नाम तो दोस्तों ने रखा है, असल में इनका नाम रमेश घोलप है और यह महाराष्ट्र के महागांव के रहने वाले हैं। रमेश एक IAS है, 28 साल उनकी उम्र है और फिलहाल झारखंड के ऊर्जा विभाग में संयुक्त सचिव के पद पर कार्यरत हैं। रोमू की कहानी में कुछ ऐसा है जो इन्हें बाकी के अफसरों से अलग बनाता है। झारखंड में काम कर रहे रमेश जब दो साल के थे तब इनके एक पैर में पोलियो हो गया था। वैसे तो पिता की साइकिल की दुकान थी लेकिन शराब की लत ने भी उनका दामन छोड़ने से इंकार कर दिया था।
 
तस्वीर सौजन्य : RameshGholap@facebook

हालात यहां तक पहुंच गए कि पिता का इलाज करवाना पड़ा जिस दौरान उनकी मृत्यु हो गई। इन सबके बीच रमेश की मां विमला के पास हिम्मत हार जाने के तमाम कारण थे लेकिन विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने हौसला नहीं खोया। आंखों के सामने उनके दो बच्चे थे जिनका भविष्य वह अंधकार में नहीं छोड़ना चाहती थीं।
 

रमेश की मां विमला

एनडीटीवी से बातचीत में रमेश बताते हैं कि उनकी मां ने फैसला कर लिया था कि पिता की मौत से उनके बच्चों की पढ़ाई पर फर्क नहीं पड़ना चाहिए। इसलिए विमला ने चूड़ियां  बेचने का काम शुरू किया। इस फैसले से घर और गांववाले नाराज़ भी हुए, लोगों ने कहा 'चूड़ियां बेचने का काम तो (कासार) जाति वाले लोग करते हैं, यह काम तुम्हारा थोड़े न है।' लेकिन रमेश की मां ने सारी आपत्तियों को दरकिनार करते हुए कहा कि 'मेरे बच्चों के भविष्य के लिए मुझे जो काम करना पड़े, मैं करूंगी।' रमेश और उनके भाई ने अपनी मां की इस काम में मदद की, साथ में पढ़ाई भी चलती रही। 12वीं पास की और ऐसे वैसे नंबरों से नहीं, पूरे 88.5 प्रतिशत अंकों के साथ।

पढ़ने का अधूरा सपना
रमेश की मां भी पढ़ना चाहती थीं लेकिन जैसा कि भारतीय समाज में होता आया है, विमला के छोटे भाई-बहन थे जिन्हें संभालने का जिम्मा उन पर डाल दिया गया था। ऐसे में उनका अपनी पढ़ाई के बारे में सोचना भी अपराध होता। शायद इसलिए जो समझौता उन्होंने अपने साथ किया, वह अपने बच्चों के साथ नहीं होने देना चाहती थी। 12वीं के बाद रमेश ने अध्यापक के पेशे के लिए डिप्लोमा किया और उनकी सरकारी प्रायमरी स्कूल में नौकरी लग गई। इसके साथ ही रमेश ने बीए की डिग्री भी हासिल की जिस दौरान वह छात्र राजनीति का हिस्सा भी रहे। इसी बीच उनका ध्यान गांव की समस्याओं पर गया और वह नौकरी छोड़कर यूपीएससी की परीक्षा के लिए पुणे गए। रमेश बताते हैं कि अपने आसपास के लोगों की मूलभूत जरूरतों की जद्दोजहद ने उन्हें व्यथित कर दिया था और उन्होंने गांव वालों से वादा किया कि अब अफसर बनकर ही लौटूंगा।

मां के लिए हर सफलता बड़ी
इस बीच रमेश ने अपनी मां को पंचायत चुनाव में बतौर सरपंच प्रत्याशी बनाकर उतारा, हालांकि वह कुछ वोटों से हार गई लेकिन उनके जज्बे ने सबका दिल जीत पहले ही जीत लिया था। 2012 में रमेश की मेहनत रंग लाई और उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा में 287वीं रैंक हासिल की, साथ ही उसी साल वह एसएससी की परीक्षा में भी वह अव्वल आए। शुरूआत में रमेश की पोस्टिंग बतौर एसडीएम खूंटी में हुई थी जो झारखंड का एक नक्सल प्रभावित इलाका है। रमेश ने बताया कि उन्हें वहां काम करने में बहुत संतुष्टि महसूस हुई क्योंकि वहां कई गांव ऐसे भी थे जहां कभी एसडीएम पहुंचा ही नहीं था।

बेटे की इस सफलता पर मां की प्रतिक्रिया क्या रही यह बताते हुए रमेश कहते हैं 'मेरी मां तो तभी बहुत खुश हो गई थी जब मैं प्रायमरी का शिक्षक बना। ऐसे हालातों में जब हमारे पास घर भी नहीं था, तब उनके बेटे की सरकारी स्कूल में नौकरी लग गई, उनके लिए तो यह बहुत ही बड़ी बात थी। जब मैंने नौकरी छोड़कर यूपीएससी की तैयारी का फैसला लिया, तब भी हमारे हालात बहुत बुरे थे लेकिन मां मेरे फैसले में साथ खड़ी रहीं।' रमेश कहते हैं 'मां को ज्यादा कुछ समझ तो नहीं आता लेकिन वह बस इतना कहती हैं कि तुम पढ़ो, आगे बढ़ो, मेरे से जो होगा मैं करूंगी।'

वर्तमान में रमेश की पोस्टिंग झारखंड के ऊर्जा विभाग में संयुक्त सचिव के तौर पर है लेकिन अभी पैर में चोट लगने की वजह से वह महाराष्ट्र में अपनी मां के पास आए हुए हैं, आराम करने और उनके साथ अपने आगे के सपनों को बांटने, उन्हें साझा करने...

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
महाराष्ट्र, महागांव, शारीरिक अक्षमता, मदर्स डे, Ias Ramesh Gholap, Physically Challenged, Mothers Day, Maharashtra, आईएएस रमेश घोलप
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com