(फाइल फोटो : PTI)
कोलकाता:
मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी ने देश के नए दत्तक नियमों पर आपत्ति दर्ज करते हुए भारत में अपने गोद लेने की सेवाओं को समाप्त करने का ऐलान कर दिया है।
65 साल पहले नोबल पुरस्कार विजेता मदर टेरेसा द्वारा शुरू किए गए इस समुह ने इस साल 15 अगस्त से बच्चों को गोद देना बंद कर दिया है।
एक वक्तव्य जारी करते हुए मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी ने कहा 'मौजूदा प्रावधानों का पालन करते हुए मदर टेरेसा द्वारा शुरू किए गए काम को आगे ले जाना बहुत मुश्किल है।'
बता दें कि जिन प्रावधानों की बात की जा रही है उसे मेनका गांधी के नेतृत्व में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा जारी किया गया है।
स्वेच्छा से किया गया फैसला
मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी के पास 19 ऐसी एजेंसी को चलाने का लाइसेंस है जिन्हें बच्चे गोद देने का अधिकार है। समूह का कहना है कि दो महीने पहले संस्था ने स्वेच्छा से इन एजेंसी को चलाने के लिए मिली मान्यता को छोड़ने का फैसला लिया है।
बताया जा रहा है कि संस्था को सिंगल पेरेंट (समलैंगिक भी शामिल) को बच्चा गोद देने के नियम से आपत्ति है। हालांकि ऐसा करने की अनुमति तो 2011 की गाइडलाइन भी देती है लेकिन 2011 और 2015 में से किसी भी गाइडलाइन में समलैंगिकों का ज़िक्र नहीं किया गया है।
मेनका गांधी के मंत्रालय के तहत नए दिशा निर्देश तैयार किए गए हैं जिसने गोद लेने की पूरी प्रक्रिया को ऑनलाइन कर दिया गया है, साथ ही इसका CARA (Central Adoption Resource Authority) के तहत केंद्रीकरण भी कर दिया गया है।
बच्चों के विकल्प से आपत्ति
2011 और 2015 की गाइडलाइन में बड़ा फर्क यह है कि अब भावी अभिभावकों को गोद लेने के लिए 4 से 6 बच्चों का विकल्प दिया जाएगा। इससे पहले ज्यादातर मामलों में एजेंसी गोद लेने के लिए एक बार में एक ही बच्चे से मिलवाती थी। अगर भावी अभिभावक ने उस बच्चे में रुचि नहीं दिखाई तो उन्हें अगले बच्चे की अपनी बारी का इंतज़ार करना पड़ता था। इसमें कई बार महीनों और साल भी लग जाते थे।
हालांकि मिशनरीज़ ने यह साफ नहीं किया है कि वह CARA के नए दिशा निर्देश में दिए जाने वाले 'विकल्प' से खुश नहीं है लेकिन मिशनरीज़ में काम करने वाली एक महिला ने एक हफ्ते पहले कहा था कि 'बच्चों को विकल्प की तरह रखने से हम उन्हें तोहफा नहीं सामान बना रहे हैं।'
ऐसा भी खबरें आई हैं कि बिहार और असम से ऐसी शिकायतें मंत्रालय से की गई हैं जिसमें सिंगल पेरेंट को बच्चा देने से मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी ने मना कर दिया था। हालांकि इस खबर की पूरी तरह पुष्टि नहीं हो पाई है।
65 साल पहले नोबल पुरस्कार विजेता मदर टेरेसा द्वारा शुरू किए गए इस समुह ने इस साल 15 अगस्त से बच्चों को गोद देना बंद कर दिया है।
एक वक्तव्य जारी करते हुए मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी ने कहा 'मौजूदा प्रावधानों का पालन करते हुए मदर टेरेसा द्वारा शुरू किए गए काम को आगे ले जाना बहुत मुश्किल है।'
बता दें कि जिन प्रावधानों की बात की जा रही है उसे मेनका गांधी के नेतृत्व में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा जारी किया गया है।
स्वेच्छा से किया गया फैसला
मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी के पास 19 ऐसी एजेंसी को चलाने का लाइसेंस है जिन्हें बच्चे गोद देने का अधिकार है। समूह का कहना है कि दो महीने पहले संस्था ने स्वेच्छा से इन एजेंसी को चलाने के लिए मिली मान्यता को छोड़ने का फैसला लिया है।
बताया जा रहा है कि संस्था को सिंगल पेरेंट (समलैंगिक भी शामिल) को बच्चा गोद देने के नियम से आपत्ति है। हालांकि ऐसा करने की अनुमति तो 2011 की गाइडलाइन भी देती है लेकिन 2011 और 2015 में से किसी भी गाइडलाइन में समलैंगिकों का ज़िक्र नहीं किया गया है।
मेनका गांधी के मंत्रालय के तहत नए दिशा निर्देश तैयार किए गए हैं जिसने गोद लेने की पूरी प्रक्रिया को ऑनलाइन कर दिया गया है, साथ ही इसका CARA (Central Adoption Resource Authority) के तहत केंद्रीकरण भी कर दिया गया है।
बच्चों के विकल्प से आपत्ति
2011 और 2015 की गाइडलाइन में बड़ा फर्क यह है कि अब भावी अभिभावकों को गोद लेने के लिए 4 से 6 बच्चों का विकल्प दिया जाएगा। इससे पहले ज्यादातर मामलों में एजेंसी गोद लेने के लिए एक बार में एक ही बच्चे से मिलवाती थी। अगर भावी अभिभावक ने उस बच्चे में रुचि नहीं दिखाई तो उन्हें अगले बच्चे की अपनी बारी का इंतज़ार करना पड़ता था। इसमें कई बार महीनों और साल भी लग जाते थे।
हालांकि मिशनरीज़ ने यह साफ नहीं किया है कि वह CARA के नए दिशा निर्देश में दिए जाने वाले 'विकल्प' से खुश नहीं है लेकिन मिशनरीज़ में काम करने वाली एक महिला ने एक हफ्ते पहले कहा था कि 'बच्चों को विकल्प की तरह रखने से हम उन्हें तोहफा नहीं सामान बना रहे हैं।'
ऐसा भी खबरें आई हैं कि बिहार और असम से ऐसी शिकायतें मंत्रालय से की गई हैं जिसमें सिंगल पेरेंट को बच्चा देने से मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी ने मना कर दिया था। हालांकि इस खबर की पूरी तरह पुष्टि नहीं हो पाई है।
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