मध्याह्न भोजन : प्रकाश जावड़ेकर ने कहा- आने, खाने और जाने तक सीमित हो गए कई स्कूल!

मध्याह्न भोजन : प्रकाश जावड़ेकर ने कहा- आने, खाने और जाने तक सीमित हो गए कई स्कूल!

मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने राज्यसभा में कहा कि बहुत सारे स्कूल मध्याह्न भोजन विद्यालय बन गए हैं.

खास बातें

  • शिक्षा का अधिकार कानून के तहत बच्चे कुछ खास कक्षाओं तक में फेल नहीं होते
  • बहुत से स्कूल केवल मध्याह्न भोजन विद्यालय बनकर रह गए
  • फेल नहीं करने की नीति में संशोधन की मांग कर रहे राज्य
नई दिल्ली:

शिक्षा को प्रोत्साहित करने, बाल मजदूरों और अभावग्रस्त परिवारों के बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए स्कूलों में मध्याह्न भोजन देने की व्यवस्था की गई है लेकिन वास्तव में यह योजना अपने उद्देश्य में अपेक्षा के अनुरूप सफल नहीं हो रही है. यह बात गुरुवार को स्वयं मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने स्वीकार की. जावड़ेकर ने माना कि बहुत से स्कूल केवल मध्याह्न भोजन विद्यालय बनकर रह गए हैं क्योंकि शिक्षा का अधिकार कानून पारित होने के बाद बच्चे कुछ खास कक्षाओं तक में फेल नहीं होते. उन्होंने राज्यसभा में पूरक प्रश्नों के जवाब में कहा कि ‘‘यह स्कूल केवल आने, खाने और जाने तक सीमित रह गए हैं.’’

जावड़ेकर ने कहा कि मंत्रालय ने इसे चुनौती के रूप में लिया है और अब सभी कक्षाओं के लिए अधिगम परिणामों पर अधिक बल देने का निर्णय किया है. मंत्री ने कहा कि एक ऐसा विधेयक भी विचाराधीन है जो कक्षा पांच से कक्षा आठ के उन छात्रों को फेल करने की अनुमति प्रदान करेगा जो शिक्षा के न्यूनतम स्तर तक नहीं पहुंचते क्योंकि राज्य फेल नहीं करने की नीति में संशोधन की मांग कर रहे हैं.

मानव संसाधन विकास मंत्री ने कहा कि यह एक गंभीर समस्या है कि कक्षा छह का छात्र कक्षा दो का पाठ पढ़ने में या कक्षा सात का छात्र कक्षा तीन का गणित का सवाल हल करने में विफल है. मंत्री ने यह भी कहा कि पिछले तीन साल में 47 नए केंद्रीय विद्यालय चालू किए गए हैं और इस तरह के 50 से अधिक स्कूलों को मंजूरी दी गई है. 62 नए नवोदित विद्यालय अनुमोदित किए गए हैं. उन्होंने कहा कि शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए यह फैसला किया गया है कि मानक में सुधार के लिए कदम उठाने वाले राज्यों को सर्व शिक्षा अभियान के तहत अतिरिक्त कोष दिया जाएगा.

गौरतलब है कि कई दूरदराज के स्थानों पर तो स्कूल खुलते ही नहीं हैं और महिने भर के मध्याह्न भोजन का राशन गांवों के प्रधान को दे दिया जाता है. झारखंड में इस तरह के एक मामले का खुलासा हाल ही में एनडीटीवी ने किया था.  
(इनपुट एजेंसी से)


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