नई दिल्ली:
जानेमाने उर्दू शायर फिराक गोरखपुरी ने एक बार मुशायरा छोड़ दिया था क्योंकि उन्होंने देखा कि उसमें अभिनेत्री मीरा कुमारी शामिल हो रही हैं। उनका कहना था कि मुशायरे सिर्फ शायरों की जगह हैं।
यह वाकया 1959-60 का है, जब फिराक को यहां एक मुशायरे में आमंत्रित किया गया था। फिराक का असली नाम रघुपति सहाय था। ‘फिराक गोरखपुरी: द पोयट ऑफ पेन एंड एक्सटैसी’ नामक पुस्तक में इस वाकये का जिक्र किया गया है। फिराक की इस जीवनी के लेखक उनके रिश्तेदार अजय मानसिंह हैं।
जब फिराक मुशायरा स्थल पर पहुंचे तो उनका तालियों की गड़गड़ाहट के साथ स्वागत किया गया और मुशायरे की शुरुआत पूरे जोशो-खरोस के साथ हुई। करीब एक घंटे के बाद वहां ऐलान किया गया कि मौके पर अदाकारा मीना कुमारी पहुंच चुकी हैं। मुशायरे में शामिल लोग शायरों को मंच पर छोड़कर मीना कुमारी की झलक पाने के लिए भागे।
इससे नाराज फिराक ने मौके से जाने का फैसला किया। इस पर आयोजक उन्हें मनाने की कोशिश में जुट गए। मीना कुमारी ने भी शर्मिंदगी महसूस की और फिराक से बार-बार गुजारिश की कि वह रुकें। मीना कुमारी ने उनसे कहा, ‘जनाब, मैं आपको सुनने के लिए आई हूं।’ फिराक ने इस पर तुरंत जवाब दिया, ‘मुशायरा मुजरा बन चुका है। मैं ऐसी महफिल से ताल्लुक नहीं रखता।’
इसके एक दिन बार फिराक ने कहा, ‘मैं मीना कुमारी की वजह से वहां से नहीं हटा था। आयोजकों और दर्शकों के व्यवहार के कारण वहां से हटा, जिन्होंने हमारी बेइज्जती की थी।’ उनकी दलील थी कि ‘मुशायरा शायरी का मंच है। यहां के कलाकार सिर्फ शायर होते हैं और यहां की व्यवस्था में एक पदानुक्रम होता है जिसका पालन किया जाना चाहिए।’
यह वाकया 1959-60 का है, जब फिराक को यहां एक मुशायरे में आमंत्रित किया गया था। फिराक का असली नाम रघुपति सहाय था। ‘फिराक गोरखपुरी: द पोयट ऑफ पेन एंड एक्सटैसी’ नामक पुस्तक में इस वाकये का जिक्र किया गया है। फिराक की इस जीवनी के लेखक उनके रिश्तेदार अजय मानसिंह हैं।
जब फिराक मुशायरा स्थल पर पहुंचे तो उनका तालियों की गड़गड़ाहट के साथ स्वागत किया गया और मुशायरे की शुरुआत पूरे जोशो-खरोस के साथ हुई। करीब एक घंटे के बाद वहां ऐलान किया गया कि मौके पर अदाकारा मीना कुमारी पहुंच चुकी हैं। मुशायरे में शामिल लोग शायरों को मंच पर छोड़कर मीना कुमारी की झलक पाने के लिए भागे।
इससे नाराज फिराक ने मौके से जाने का फैसला किया। इस पर आयोजक उन्हें मनाने की कोशिश में जुट गए। मीना कुमारी ने भी शर्मिंदगी महसूस की और फिराक से बार-बार गुजारिश की कि वह रुकें। मीना कुमारी ने उनसे कहा, ‘जनाब, मैं आपको सुनने के लिए आई हूं।’ फिराक ने इस पर तुरंत जवाब दिया, ‘मुशायरा मुजरा बन चुका है। मैं ऐसी महफिल से ताल्लुक नहीं रखता।’
इसके एक दिन बार फिराक ने कहा, ‘मैं मीना कुमारी की वजह से वहां से नहीं हटा था। आयोजकों और दर्शकों के व्यवहार के कारण वहां से हटा, जिन्होंने हमारी बेइज्जती की थी।’ उनकी दलील थी कि ‘मुशायरा शायरी का मंच है। यहां के कलाकार सिर्फ शायर होते हैं और यहां की व्यवस्था में एक पदानुक्रम होता है जिसका पालन किया जाना चाहिए।’
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