मुंबई:
मुंबई में मीट पर बैन दो दिन कम कर दिया गया है। अब 13 और 18 सितंबर को मीट की बिक्री पर रोक नहीं रहेगी। मीट बैन के खिलाफ दायर एक अर्जी पर सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह आदेश दिया।
उल्लेखनीय है कि जैन समुदाय के पर्यूषण पर्व को लेकर मटन पर चार दिन के बैन के खिलाफ मटन कारोबारियों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। अदालत ने महाराष्ट्र सरकार से पूछा, जब आप अहिंसा की बात करते हैं, तो फिर मछली, सीफूड और अंडे पर बैन क्यों नहीं लगाया गया।
अदालत के इस सवाल के जवाब में सरकार ने कहा कि मटन और मछली में फर्क है। सरकार के शीर्ष वकील अनिल सिंह ने कहा, मछली को जैसे ही पानी से बाहर निकाला जाता है, वह मर जाती है, इसलिए इसमें कोई वध शामिल नहीं है। उन्होंने कोर्ट के समक्ष जो स्पष्टीकरण दिया, उसका आशय था कि कोई वध नहीं होना चाहिए।
इस बैन का विपक्ष ही नहीं, सत्ताधारी बीजेपी की सहयोगी शिवसेना ने भी विरोध किया है। कोर्ट में सरकार को इस बैन के पीछे के तर्क पर सवालों का सामना करना पड़ा। जजों ने कहा, वैश्वीकरण के मद्देनजर हमें अपने नजरिये में बदलाव लाना होगा।
अपने कदम को सही ठहराते हुए सरकार ने कहा, सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले में कहा गया है कि हम समुदाय विशेष की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मुंबई में जैन समुदाय के लोगों की संख्या कम है।
विपक्षी कांग्रेस और एनसीपी के अलावा बीजेपी की सहयोगी शिवसेना ने आरोप लगाया है कि 2017 के स्थानीय निकाय चुनावों को ध्यान में रखकर बीजेपी जैन समुदाय की तुष्टिकरण की कोशिश कर रही है।
पर्यूषण के दौरान मीट पर बैन 1994 में शुरू हुई थी और उस समय कांग्रेस की सरकार थी। अधिकारियों ने बताया कि 10 साल बाद दो दिन के बैन को बढ़ाकर चार दिन कर दिया गया था, लेकिन असल में इसे कभी लागू नहीं किया गया। गुरुवार को बैन के पहले दिन मीट की कई दुकानें खुली थीं, लेकिन सरकारी बूचड़खाने बंद रहे।
उल्लेखनीय है कि जैन समुदाय के पर्यूषण पर्व को लेकर मटन पर चार दिन के बैन के खिलाफ मटन कारोबारियों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। अदालत ने महाराष्ट्र सरकार से पूछा, जब आप अहिंसा की बात करते हैं, तो फिर मछली, सीफूड और अंडे पर बैन क्यों नहीं लगाया गया।
अदालत के इस सवाल के जवाब में सरकार ने कहा कि मटन और मछली में फर्क है। सरकार के शीर्ष वकील अनिल सिंह ने कहा, मछली को जैसे ही पानी से बाहर निकाला जाता है, वह मर जाती है, इसलिए इसमें कोई वध शामिल नहीं है। उन्होंने कोर्ट के समक्ष जो स्पष्टीकरण दिया, उसका आशय था कि कोई वध नहीं होना चाहिए।
इस बैन का विपक्ष ही नहीं, सत्ताधारी बीजेपी की सहयोगी शिवसेना ने भी विरोध किया है। कोर्ट में सरकार को इस बैन के पीछे के तर्क पर सवालों का सामना करना पड़ा। जजों ने कहा, वैश्वीकरण के मद्देनजर हमें अपने नजरिये में बदलाव लाना होगा।
अपने कदम को सही ठहराते हुए सरकार ने कहा, सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले में कहा गया है कि हम समुदाय विशेष की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मुंबई में जैन समुदाय के लोगों की संख्या कम है।
विपक्षी कांग्रेस और एनसीपी के अलावा बीजेपी की सहयोगी शिवसेना ने आरोप लगाया है कि 2017 के स्थानीय निकाय चुनावों को ध्यान में रखकर बीजेपी जैन समुदाय की तुष्टिकरण की कोशिश कर रही है।
पर्यूषण के दौरान मीट पर बैन 1994 में शुरू हुई थी और उस समय कांग्रेस की सरकार थी। अधिकारियों ने बताया कि 10 साल बाद दो दिन के बैन को बढ़ाकर चार दिन कर दिया गया था, लेकिन असल में इसे कभी लागू नहीं किया गया। गुरुवार को बैन के पहले दिन मीट की कई दुकानें खुली थीं, लेकिन सरकारी बूचड़खाने बंद रहे।
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं
मीट बैन, महाराष्ट्र सरकार, मुंबई, बॉम्बे हाईकोर्ट, पर्यूषण, Meat Ban, Maharashtra Government, Mumbai, Bombay High Court