केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ शुक्रवार को बुलाई गई सोनिया गांधी (Sonia Gandhi ) की महाबैठक से तीन प्रमुख पार्टियों ने किनारा कर लिया है. खबर है कि मायावती की बहुजन समाज पार्टी, अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी और देश की राजधानी में सत्ता संभाल रही अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने सोनिया गांधी की अध्यक्षता में शुक्रवार को होने वाली विपक्षी महाबैठक में शामिल नहीं होने का फैसला किया है.आम आदमी पार्टी (AAP) के सांसद संजय सिंह का कहना है कि आम आदमी पार्टी ऐसी किसी बैठक में हिस्सा नहीं लेने जा रही है. आप सांसद ने कहा है, 'ना तो पार्टी को ऐसी किसी बैठक की जानकारी है और ना ही पार्टी ऐसी किसी बैठक में हिस्सा ले रही है.'
हालांकि ऐसा भी बताया जा रहा है कि इन तीनों पार्टियों के कांग्रेस के साथ अपने अलग राजनीतिक मतभेद हैं. लेकिन केंद्र की सत्ता पर काबिज एनडीए के लोगों को दावा है कि बीजेपी की तरफ इनके दृष्णिकोण में थोड़ी नरमी है. गुरुवार को कांग्रेस पार्टी के सूत्रों ने बताया कि जिन नेताओं ने बैठक में शामिल होने पर सहमति व्यक्त की है उनमें पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी, महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे, झारखंड के सीएम हेमंत सोरेने, डीएमके नेता एमके स्टालिन, एनसीपी प्रमुख शरद पंवार और लेफ्ट पार्टियां व यूपी के अन्य घटक शामिल हैं.
लेफ्ट पार्टियों और ममता बनर्जी ने पहले ही बैठक में आने के प्रस्ताव स्वीकृति दे दी थी. उद्धव ठाकरे, जिनकी शिवसेना 35 साल से बीजेपी की सहयोगी थी, उनके लिए यह एकजुट विपक्ष के साथ पहली बैठक होगी. बैठक अप्रैल में होने वाली थी. कुछ पार्टियां - विशेष रूप से शरद पवार की एनसीपी, इसे टालने की इच्छुक थी, लेकिन अंत में स्वीकार किया कि कोरोनोवायरस से निपटने की नरेंद्र मोदी सरकार के स्थिति के खिलाफ एकजुट दृष्टिकोण रखने की जरूरत है.
शुक्रवार को दोपहर 3 बजे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए आयोजित होने वाली बैठक में सरकार द्वारा दिए गए आर्थिक पैकेज और कोरोनावायरस महामारी को लेकर उठाए गए अन्य कदमों पर भी चर्चा होने की उम्मीद है. कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी की अध्यक्षता में होने वाली इस बैठक के लिए 18 राजनीतिक दलों को निमंत्रण दिया है. डीएमके नेता एमके स्टालिन, लेफ्ट पार्टियां और ममता बनर्जी की टीएमसी ने भी इस बैठक में शामिल होने पर सहमति व्यक्त की है.
इस बैठक के एजेंडे में सरकार द्वारा कोरोनावायरस महामारी निपटने के लिए उठाए गए कदमों, प्रवासी मजदूरों का मुद्दा, राज्यों के श्रम कानूनों के निलंबन और विभिन्न संसदीय समितियों की गतिविधियों पर रोक लगाने का मुद्दा शामिल है.
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