कोलकाता:
स्कूल शिक्षा पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा नियुक्त समिति ने 11वीं और 12वीं कक्षा के इतिहास के पाठ्यक्रम से मार्क्सवाद को कम करने और इसमें वैश्वीकरण, दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला का आंदोलन और समसामयिक महिला आंदोलनों को शामिल करने का फैसला किया है।
ममता ने समिति का गठन पिछले साल मई में राज्य की सत्ता सम्भालने के बाद किया था। समिति अगले सप्ताह सरकार को अपनी अनुशंसाएं सौंपेगी।
पाठ्यक्रम पुनरावलोकन समिति के प्रमुख अविक मजूमदार ने शुक्रवार को कहा, "हमने 11वीं और 12वीं कक्षा के इतिहास के पाठ्यक्रम की पुनर्संरचना का फैसला किया है। यदि कोई इतिहास की मौजूदा किताबें पढ़ता है या पढ़ती है तो उसे पता चलेगा कि दुनिया में सिर्फ तीन देश हैं- भारत, इंग्लैंड और सोवियत रूस। लेकिन हमने छात्रों के लिए निष्पक्ष एवं बहुलतावादी इतिहास प्रस्तुत करने का फैसला किया है।"
मजूमदार ने कहा, "हमने लैटिन अमेरिका में आंदोलन, अफ्रीका, बांग्लादेश तथा श्रीलंका के इतिहास को भी पाठ्यक्रम में शामिल करने की अनुशंसा की है।"
मार्क्सवाद के बारे में उन्होंने कहा, "यह पुस्तकों में वहां होगा, जहां इसकी प्रासंगिकता होगी।"
बहुत से राजनीतिक विश्लेषक एवं शिक्षाविद समय-समय पर यह आरोप लगाते रहे हैं कि पश्चिम बंगाल की पूर्ववर्ती सरकार के दौरान वहां के इतिहास की पुस्तकों में मार्क्सवाद हावी रहा।
इस सम्बंध में मजूमदार ने कहा, "पाठ्य पुस्तकें किसी विशेष राजनीतिक विचारधारा के प्रति छात्रों की सोच बदलने का जरिया नहीं हैं।" मजूमदार जादवपुर विश्वविद्यालय में तुलनात्मक साहित्य के प्रोफेसर हैं।
ममता ने समिति का गठन पिछले साल मई में राज्य की सत्ता सम्भालने के बाद किया था। समिति अगले सप्ताह सरकार को अपनी अनुशंसाएं सौंपेगी।
पाठ्यक्रम पुनरावलोकन समिति के प्रमुख अविक मजूमदार ने शुक्रवार को कहा, "हमने 11वीं और 12वीं कक्षा के इतिहास के पाठ्यक्रम की पुनर्संरचना का फैसला किया है। यदि कोई इतिहास की मौजूदा किताबें पढ़ता है या पढ़ती है तो उसे पता चलेगा कि दुनिया में सिर्फ तीन देश हैं- भारत, इंग्लैंड और सोवियत रूस। लेकिन हमने छात्रों के लिए निष्पक्ष एवं बहुलतावादी इतिहास प्रस्तुत करने का फैसला किया है।"
मजूमदार ने कहा, "हमने लैटिन अमेरिका में आंदोलन, अफ्रीका, बांग्लादेश तथा श्रीलंका के इतिहास को भी पाठ्यक्रम में शामिल करने की अनुशंसा की है।"
मार्क्सवाद के बारे में उन्होंने कहा, "यह पुस्तकों में वहां होगा, जहां इसकी प्रासंगिकता होगी।"
बहुत से राजनीतिक विश्लेषक एवं शिक्षाविद समय-समय पर यह आरोप लगाते रहे हैं कि पश्चिम बंगाल की पूर्ववर्ती सरकार के दौरान वहां के इतिहास की पुस्तकों में मार्क्सवाद हावी रहा।
इस सम्बंध में मजूमदार ने कहा, "पाठ्य पुस्तकें किसी विशेष राजनीतिक विचारधारा के प्रति छात्रों की सोच बदलने का जरिया नहीं हैं।" मजूमदार जादवपुर विश्वविद्यालय में तुलनात्मक साहित्य के प्रोफेसर हैं।