प्रबुद्ध नागरिकों के एक समूह द्वारा प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में "धार्मिक पहचान-आधारित घृणा अपराधों" की संख्या पर चिंता व्यक्त करने के बाद, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने बुधवार को कहा कि इन लोगों ने जो कुछ भी कहा है वह "काफी सही" है और वह यह बात लंबे समय से कह रही हैं. बनर्जी ने कहा कि जब भी देश में कोई समस्या होती है, जब भी सामाजिक समझ की आवश्यकता होती है, ये प्रमुख व्यक्तित्व सामने आते हैं और लोगों को प्रेरित करते हैं. तृणमूल कांग्रेस के नेता ने कहा, 'मैंने कई बार देखा है कि कई भाषण जो नहीं कर सके, उसे एक गीत ने कर दिखाया.'
बनर्जी (Mamata Banerjee) ने मीडिया से कहा, 'मैं उनका सम्मान करती हूं. मुझे लगता है कि उन्होंने जो भी कहा है वह काफी सही है. उन्होंने आज जो कुछ भी कहा है, मैं उसे लंबे समय से कह रही हूं." मुख्यमंत्री ने कहा कि वह एक हिंदू हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वह एक ईसाई से नफरत करेंगी. उन्होंने कहा, "मुझे सभी धर्मों से प्यार है. मुख्यमंत्री ने कहा कि हर नारे के लिए उनके मन में सम्मान है, चाहे वह धार्मिक हो या न हो. तृणमूल कांग्रेस नेता (Mamata Banerjee) ने कहा, "लेकिन साथ ही, मेरा मानना है कि धर्म निजी मामला है, जबकि एक त्योहार हर किसी के लिए है.'
गौरतलब है कि देश में धार्मिक पहचान के कारण घृणा अपराधों के बढ़ते मामलों पर चिंता प्रकट करते हुए प्रबुद्ध नागरिकों के एक समूह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक खुले पत्र में कहा है कि ‘जय श्री राम' का उद्घोष भड़काऊ नारा बनता जा रहा है और इसके नाम पर पीट-पीट कर हत्या के कई मामले हो चुके हैं. फिल्मकार अडूर गोपालकृष्णन और अपर्णा सेन, गायिका शुभा मुद्गल और इतिहासकार रामचंद्र गुहा, समाजशास्त्री आशीष नंदी सहित 49 नामी शख्सियतों ने 23 जुलाई को यह पत्र लिखा है. इसमें कहा गया है कि ‘असहमति के बिना लोकतंत्र नहीं होता है.'
साथ ही पत्र में कहा गया है, ‘हम शांतिप्रिय और स्वाभिमानी भारतीय के रूप में, अपने प्यारे देश में हाल के दिनों में घटी कई दुखद घटनाओं से चिंतित हैं. मुस्लिमों, दलितों और अन्य अल्पसंख्यकों की पीट-पीटकर हत्या के मामलों को तत्काल रोकना चाहिए. हम एनसीआरबी का आंकड़ा देखकर चौंक गए कि वर्ष 2016 में दलितों पर अत्याचार के कम से कम 840 मामले थे लेकिन दोषसिद्धि के प्रतिशत में गिरावट देखी गयी.'
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पत्र के बाद प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि देश में दलित और अल्पसंख्यक सुरक्षित हैं. पत्र में ‘फैक्टचेकर इनडाटाबेस' और ‘सिटिजंस रिलिजियस हेट क्राइम वाच' के तथ्यों का भी हवाला दिया गया है. इसमें कहा गया है कि पिछले नौ साल में धार्मिक पहचान आधारित घृणा अपराध के मामले बढ़े हैं, 62 प्रतिशत पीड़ित मुस्लिम समुदाय हैं. पत्र में कहा गया, ‘इनमें करीब 90 प्रतिशत हमले मई 2014 के बाद हुए, जब आपकी सरकार ने देश में कार्यभार संभाला.'
इसके अलावा इन्होंने पत्र में कहा है, यह बात हैरान करने वाली है कि धर्म के नाम पर इतनी हिंसा हो रही है. पत्र में कहा गया, ‘ये मध्य युग नहीं हैं. भारत के बहुसंख्यक समुदाय में राम का नाम कई लोगों के लिए पवित्र है. इस देश की सर्वोच्च कार्यपालिका के रूप में आपको राम के नाम को इस तरीके से बदनाम करने से रोकना होगा.' विशिष्ट जनों ने कहा कि संसद में ऐसी घटनाओं की आलोचना करना पर्याप्त नहीं है. वास्तव में अपराधियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई है ? हमें दृढ़ता से लगता है कि ऐसे अपराधों को गैर-जमानती घोषित किया जाना चाहिए और ऐसी सजा होनी चाहिए जो दूसरों के लिए उदाहरण बने. यह लोकतंत्र में असंतोष के महत्व को भी रेखांकित करता है.
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खत में साथ ही कहा है कि असहमति के बिना कोई लोकतंत्र नहीं है. लोगों पर राष्ट्रविरोधी या शहरी नक्सली का लेबल नहीं लगाना चाहिए और सरकार के खिलाफ असहमति जताने की वजह से कैद में नहीं डाला जाना चाहिये. अगर कोई सत्तारूढ़ दल की आलोचना करता है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह राष्ट्र के खिलाफ है.
(इनपुट- भाषा)
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