मुंबई में भिखारियों का होगा डीएनए टेस्ट, सुलझ सकते हैं मानव तस्करी के मामले

मुंबई:

मुंबई और महाराष्ट्र में भिखारियों का डीएनए टेस्ट होगा। महिला और बाल विकास मंत्रालय ने इस आशय का प्रस्ताव मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के पास भेजा है। मुंबई मे हर साल अमूमन 2 हजार बच्चे चोरी या लापता होते हैं और देश में ये संख्या लाखों में है। शक है कि चोरी के बच्चों का भीख मांगने के लिये इस्तेमाल होता है।

महाराष्ट्र की महिला व बाल विकास मंत्रालय की राज्य मंत्री विद्या ठाकुर के मुताबिक वो अक्सर देखा करती थी कि ट्रैफिक सिग्नलों पर महिलाएं छोटे बच्चे को गोंद में लेकर भीख मांगती हैं। उनकी गोद में पड़ा बच्चा ना तो रोता है ना ही खेलता है, वो सिर्फ सोया रहता है जैसे उसे कोई दवाई दी गई हो।

विद्या ठाकुर बताती हैं कि एक बार सिग्नल पर ऐसी ही एक महिला से उन्होंने जब पूछा बच्चा किसका है तो उसने अपना बताया। लेकिन जब उन्होंने मोबाइल निकालकर कैमरे से वीडियो बनाना शुरू किया तो वो भाग खड़ील हुई। तभी से उनके मन में था कि इस पर कुछ करना चाहिये।

इसलिये अब जब वो महिला वा बाल कल्याण राज्य मंत्री बन गई हैं तो ऐसे सभी भिखारियों का डीएनए टेस्ट कराने का प्रस्ताव तैयार किया है। विद्या ठाकुर के मुताबिक इस विषय को लेकर वो मुंबई पुलिस आयुक्त से भी मिल चुकी हैं। मंत्री महोदया का दावा है कि छोटे बच्चे और उनकी मां होने का दावा करने वाली भिखारन का डीएनए टेस्ट कराने से दोहरा फायदा होगा। अगर उनका डीएनए आपस में नहीं मिला तो ये साफ हो जायेगा कि बच्चा उसका नहीं है।

उसके बाद उस बच्चे की तस्वीर वेबसाईट पर डाली जायेगी ताकि उसके अपने उसकी पहचान कर सकें। मुंबई पुलिस के मुताबिक शहर में साल 2005 से 2014 तक 34787 छोटे बच्चे लापता या चोरी हुए हैं। ये अलग बात है कि उनमें से 33383 बच्चे वापस भी मिल गए हैं। लेकिन 1404 बच्चे अब भी लापता हैं।

भिखारी और बेघर बच्चों के लिये काम करने वाली संस्थाओं के मुताबिक भिख मांगने वाले कुछ खास समुदाय से आते हैं और उन्होंने अपने लिये अलग-अलग ट्रैफिक सिग्नल बांट लिया है। ज्यादा कमाई वाले सिग्नलों की बोली भी लगती है।

चाईल्ड लाईन के प्रवक्ता निशित कुमार डीएनए टेस्ट कराने को एक अच्छी पहल तो मानते हैं लेकिन उनका कहना है कि ये फौरी इलाज है। जबकि जरुरत एक दीर्घकालिक उपाय की है। इसलिये उनका सुझाव है कि बच्चे के जन्म के बाद ही आधार कार्ड में उसके डीएनए से लेकर सारी जानकारी दर्ज की जाये तो चोरी या लापता होने की सूरत में बच्चों को ट्रैक करना आसान हो जायेगा। जो अभी संभव नहीं है।

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निशित कुमार के मुताबिक सबसे बड़ी समस्या इनके पुनर्वास की है, पूरे राज्य में सिर्फ एक ही पुनर्वास केन्द्र है वो भी कोल्हापुर में जबकि भीख मांगने वालों की तादाद हज़ारों में है और पूरे राज्य में फैले हैं।