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This Article is From Dec 04, 2016

प्लास्टिक के पैसों पर चलता ठाणे का धसई गांव

प्लास्टिक के पैसों पर चलता ठाणे का धसई गांव
मुंबई: देश की आर्थिक राजधानी भले ही कैश-लेस ना हो पाई हो, लेकिन मुंबई से लगभग 140 किलोमीटर दूर ठाणे जिले के धसई गांव लगभग पूरी तरह प्लास्टिक के पैसों से चलने लगा है. इस गांव में चाय से लेकर वड़ा-पाव तक कार्ड से खरीदा बेचा जा सकता है.

लगभग 10000 लोगों की आबादी वाले गांव में आसपास से भी लोग 150 कारोबारियों से रोज़ाना के सामान, अनाज, सब्ज़ी खरीदने आते हैं. इस गांव में महाराष्ट्र के वित्त मंत्री सुधीर मुनघंटीवार ने भी ख़रीदारी की और कहा यहां का चावल बहुत अच्छा है, सो मैंने कार्ड के ज़रिये यहां पांच किलो चावल खरीदा.
 

गांव में बैंक ऑफ बड़ौदा ने फिलहाल  49 स्वाइप मशीनें दी हैं, आनेवाले दिनों में 51 और देने की योजना है. गांव को कैशलेस बनाने की पहल स्वातंत्र्यवीर सावरकर स्मारक नाम की संस्था ने की है, जो लोगों को कार्ड इस्तेमाल करने की ट्रेनिंग भी दे रहा है. धसई गांव में पहले सिर्फ दो बैंक थे, ठाणे डिस्ट्रिक्ट सेंट्रल कॉपरेटिव बैंक और विजया बैंक.

नोटबंदी के बाद धसई और आसपास के गांवों में भी अर्थव्यवस्था लड़खड़ाई लेकिन प्लास्टिक पैसों के बूते गांव फौरन उठ खड़ा हुआ. देश में सबसे पहले डिजिटल हुए गांवों में गुजरात का अकोदरा गांव है जो पूरी तरह डिजिटल हुआ था, उसके बाद नोटबंदी के दौरान शायद ये तमगा धसई को मिला है.

(स्वदेश मालवीय के इनपुट के साथ)

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