प्रतीकात्मक फोटो
मुंबई:
अगर मानव संसाधन मंत्री स्मृति इरानी ने महाराष्ट्र के शिक्षा मंत्री विनोद तावड़े की सुन ली तो बच्चों के लिए एक्ज़ाम लौट आएंगे। महाराष्ट्र के शिक्षा मंत्री ने केंद्र सरकार को अपनी राय देते हुए कहा है कि, स्कूली छात्रों की परीक्षा ली जाए।
छात्रों को फेल करने के विरोध में मौजूदा कानूनी प्रावधानों का अभ्यास करने के लिए एक उप समिति का केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने गठन किया था। शिक्षा मंत्री विनोद तावड़े उस समिति के सदस्य हैं। इस नाते उन्होंने अपनी राय देते हुए स्कूली छात्रों के लिए परीक्षा शुरू करने की वकालत की है।
पढ़ाई को लेकर विद्यार्थियों का नजरिया बदलेगा
तावड़े ने NDTV इंडिया से कहा कि, स्कूलों में परीक्षाएं दुबारा शुरू होने से पढ़ाई की तरफ देखने का छात्रों का नजरिया बदलेगा। फिलहाल, कई स्कूलों में आलम यह है कि छात्र को फेल न करने के लिए एक्ज़ाम नहीं हो रहे और एक्ज़ाम न होने से पढ़ाई बंद हो गई है। इस कानून पर अमल करने के लिए पहले शिक्षकों का प्रशिक्षण जरूरी है।
केंद्र सरकार को तीन सूत्रीय फॉर्मूला
अपनी बात को और स्पष्ट रूप से रखने के लिए महाराष्ट्र के शिक्षा मंत्री ने केंद्र सरकार को त्रिसूत्रीय फॉर्मूला दिया है। इसके अनुसार छात्रों को परीक्षा देनी ही होगी-
परीक्षाएं बंद होने से हुआ बुरा असर
शिक्षा का अधिकार कानून के तहत बच्चों को फेल न करने का फैसला हुआ। इसके तहत यूपीए के कार्यकाल में स्कूलों में एक्ज़ाम बंद किए गए। इस फैसले का विरोध भी हुआ और समर्थन भी। लेकिन जब इस फैसले का अध्ययन हुआ तो यही सामने आया कि इससे छात्रों पर बुरा असर ही हुआ है।
छात्रों की निपुणता का स्तर गिरा
प्रथम समाजसेवी संगठन की देश के 577 ग्रामीण जिलों से प्राप्त सूचना के आधार पर बनी शिक्षा की स्थिति पर पेश होने वाली सालाना रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि परीक्षा बंद होने का माध्यमिक स्कूल के छात्रों पर सबसे बुरा असर हुआ। सन 2009 में करीब 61 फीसदी छात्र इंग्लिश का एक वाक्य सरलता से पढ़ सकते थे। 2014 में ऐसे छात्रों की संख्या घटकर करीब 47 प्रतिशत हो गई। इसी तरह गुणा-भाग कर सकने वाले छात्रों की संख्या भी कम हुई। ऐसे में अब केंद्र सरकार को फैसला लेना है कि क्या वह आगामी शैक्षणिक वर्ष से एक्ज़ाम लेने का फैसला लागू करेगी या नहीं।
छात्रों को फेल करने के विरोध में मौजूदा कानूनी प्रावधानों का अभ्यास करने के लिए एक उप समिति का केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने गठन किया था। शिक्षा मंत्री विनोद तावड़े उस समिति के सदस्य हैं। इस नाते उन्होंने अपनी राय देते हुए स्कूली छात्रों के लिए परीक्षा शुरू करने की वकालत की है।
पढ़ाई को लेकर विद्यार्थियों का नजरिया बदलेगा
तावड़े ने NDTV इंडिया से कहा कि, स्कूलों में परीक्षाएं दुबारा शुरू होने से पढ़ाई की तरफ देखने का छात्रों का नजरिया बदलेगा। फिलहाल, कई स्कूलों में आलम यह है कि छात्र को फेल न करने के लिए एक्ज़ाम नहीं हो रहे और एक्ज़ाम न होने से पढ़ाई बंद हो गई है। इस कानून पर अमल करने के लिए पहले शिक्षकों का प्रशिक्षण जरूरी है।
केंद्र सरकार को तीन सूत्रीय फॉर्मूला
अपनी बात को और स्पष्ट रूप से रखने के लिए महाराष्ट्र के शिक्षा मंत्री ने केंद्र सरकार को त्रिसूत्रीय फॉर्मूला दिया है। इसके अनुसार छात्रों को परीक्षा देनी ही होगी-
- चौथी से 5वी कक्षा में जाने के लिए परीक्षा पास करना जरूरी होगा। यही बात 8वीं से 9वीं कक्षा में जाने के लिए भी लागू होगी।
- कम्पसलरी टेस्ट में फेल होने पर महीने भर में दुबारा एक्ज़ाम में पास होना होगा।
- छात्र कम्पलसरी टेस्ट में दुबारा फेल होता है तो उसे अगली कक्षा में दाखिला नहीं मिलेगा।
परीक्षाएं बंद होने से हुआ बुरा असर
शिक्षा का अधिकार कानून के तहत बच्चों को फेल न करने का फैसला हुआ। इसके तहत यूपीए के कार्यकाल में स्कूलों में एक्ज़ाम बंद किए गए। इस फैसले का विरोध भी हुआ और समर्थन भी। लेकिन जब इस फैसले का अध्ययन हुआ तो यही सामने आया कि इससे छात्रों पर बुरा असर ही हुआ है।
छात्रों की निपुणता का स्तर गिरा
प्रथम समाजसेवी संगठन की देश के 577 ग्रामीण जिलों से प्राप्त सूचना के आधार पर बनी शिक्षा की स्थिति पर पेश होने वाली सालाना रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि परीक्षा बंद होने का माध्यमिक स्कूल के छात्रों पर सबसे बुरा असर हुआ। सन 2009 में करीब 61 फीसदी छात्र इंग्लिश का एक वाक्य सरलता से पढ़ सकते थे। 2014 में ऐसे छात्रों की संख्या घटकर करीब 47 प्रतिशत हो गई। इसी तरह गुणा-भाग कर सकने वाले छात्रों की संख्या भी कम हुई। ऐसे में अब केंद्र सरकार को फैसला लेना है कि क्या वह आगामी शैक्षणिक वर्ष से एक्ज़ाम लेने का फैसला लागू करेगी या नहीं।
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