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This Article is From Jun 14, 2015

ताकि कोख़ में क़त्ल ना हो किलकारी : प्रशासन की सख्ती ने बंधाई उम्मीद

ताकि कोख़ में क़त्ल ना हो किलकारी : प्रशासन की सख्ती ने बंधाई उम्मीद
प्रतीकात्मक तस्वीर
मुंबई: पूरे देश में लड़के-लड़कियों के बीच घटता लिंगानुपात फिक्र का सबब है, लेकिन प्रशासन चाहे तो लड़के-लड़कियों का अनुपात गिरने से बच सकता है। इसकी मिसाल दिखी है मुंबई से सटे नवी मुंबई में जहां प्रशासन की सख्ती और कोर्ट के फैसले के बाद बच्चियों के घटते अनुपात में चंद सालों में ही बढ़त देखने को मिली है।

साल 2012 से 2015 के बीच कोर्ट के आदेश के बाद प्रशासन ने चोरी छिपे भ्रूण जांच के दोषी डॉक्टरों के क्लीनिक में मशीनें सील कीं, कई डॉक्टरों पर कार्रवाई हुई। नतीजतन, मुंबई से सटे नवी मुंबई में लड़कियों के अनुपात में इज़ाफा हुआ।

नवी मुंबई महानगरपालिका के चिकित्सा अधिकारी डॉ. दीपक परोपकारी ने कहा जब कार्रवाई होने लगी तो सब डरे, भ्रूण के लिंग की जांच से इनकार किया, जिससे उस पर कंट्रोल आ गया। डॉ. अम्बूरे के केस में एक तो पीसीपीटी एक्ट में केस दायर किया था, दूसरा पुलिस में मामला दर्ज हुआ था... वह रजिस्टर्ड सेंटर नहीं था, इसलिए कार्रवाई हुई।

साल 2012 से 2015 तक कुल 21 सोनोग्रॉफी सेंटरों पर कार्रवाई हुई, 4 लोगों को पूरे मामले में सज़ा भी हुई। इस संबंध में सरकारी वकील बी एन विराजदार का कहना है कि बहुत सारे सोनोग्रॉफी सेंटर रिकॉर्ड नहीं रखते थे, जो भ्रूण परीक्षण की हद में आता है।

नवी मुंबई इलाके में साल 2012 में प्रति 1000 लड़कों के मुकाबले 890 लड़कियां थीं, जिनका अनुपात अब बढ़कर 930 हो गया है।

विकास की दौड़ में आगे होने के बावजूद, महाराष्ट्र भी उन राज्यों में शुमार है जहां लड़कों के मुकाबले लड़कियों का अनुपात तेजी से घट रहा था। कुछ साल पहले तो बीड़ ज़िले में लड़कियों का अनुपात प्रति 1000 में 800 के करीब रह गया था। उम्मीद है ऐसी कार्रवाई से बच्चियों की किलकारी कोख में दम तोड़ने से बच जाएगी।

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