नई दिल्ली:
लोकपाल विधेयक के लिए आम सहमति वाला मसौदा तैयार करने की प्रक्रिया बुधवार को वस्तुत: पटरी से उतरती नजर आई। संयुक्त समिति की बैठक में सरकार और गांधीवादी अन्ना हज़ारे पक्ष के बीच एकराय कायम नहीं हो सकी। बैठक में फैसला किया गया कि अब कैबिनेट के समक्ष संयुक्त मसौदे की बजाय उसके दो संस्करण भेजे जाएंगे। इससे साफ हो गया कि 30 जून तक दोनों पक्षों के बीच आपसी रजामंदी वाला एक ही मसौदा तैयार हो पाने की अब संभावना नहीं है। गहराते गतिरोध और तीखी बयानबाजी के दौर के बाद संयुक्त मसौदा समिति की करीब तीन घंटे चली बैठक में सरकार और हज़ारे पक्ष आम सहमति नहीं बना सके। बैठक के बाद समिति में केंद्र के प्रतिनिधि के तौर पर शामिल मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने संवाददाताओं से कहा, प्रस्तावित लोकपाल विधेयक के अहम और बुनियादी मुद्दों पर दोनों पक्षों के बीच सहमति नहीं बन पायी है। हमने फैसला किया है कि 20 और 21 जून को होने वाली अगली बैठक में दोनों पक्ष अपना-अपना मसौदा चर्चा के लिये रखेंगे। उन्होंने कहा कि अगर दोनों मसौदों पर आम सहमति नहीं बन पायी तो कैबिनेट के समक्ष लोकपाल विधेयक मसौदे के दो अलग-अलग संस्करण भेजे जायेंगे। एक संस्करण सरकार का और दूसरा सामाजिक कार्यकर्ताओं का होगा। ऐसा इसलिये किया जायेगा ताकि कोई यह नहीं कहे कि सरकार हज़ारे पक्ष के मसौदे को नजरअंदाज कर रही है। सिब्बल ने कहा, मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि 30 जून तक मसौदा तैयार कर लिया जायेगा। आम सहमति नहीं बनने पर उसके दो संस्करण कैबिनेट को भेजे जायेंगे। इस पर समिति में हज़ारे पक्ष की ओर से शामिल आरटीआई कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल ने कहा, इस बैठक से कोई नतीजा नहीं निकल पाया। केंद्र के रुख से ऐसा लग रहा है कि पिछले डेढ़ महीने से चल रही कवायद सरकार का महज एक दिखावा थी। केजरीवाल ने कहा, मतभेदों के बावजूद हम 20 और 21 जून को होने वाली संयुक्त समिति की अगली बैठक का बहिष्कार नहीं करेंगे। सरकार को हम अपना मसौदा देंगे ताकि जनता यह देख सके कि कौन-सा मसौदा उचित है। ..ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार लोकपाल के अस्तित्व में आने से पहले ही उसे निष्प्रभावी बना देना चाहती है। सिब्बल और हज़ारे पक्ष ने पुष्टि की कि आज की बैठक में प्रधानमंत्री, उच्च न्यायपालिका और संसद के अंदर सांसदों के आचरण को प्रस्तावित लोकपाल की जांच के दायरे में लाने के मुद्दे पर कोई बातचीत नहीं हुई। सिब्बल ने कहा, इन मुद्दों पर बातचीत नहीं हुई है। उन्होंने कहा, कैबिनेट के समक्ष एक ही दस्तावेज भेजा जायेगा, लेकिन उसमें लोकपाल विधेयक मसौदे के दो संस्करण होंगे। दस्तावेज में स्पष्ट किया जायेगा कि दोनों पक्षों के बीच किन-किन मुद्दों पर सहमति और असहमति है। दोनों संस्करण सार्वजनिक किये जायेंगे। हमारी इस प्रक्रिया में राजनीतिक दलों को भी शामिल करने की मंशा है। क्या दोनों पक्षों के बीच पिछले दिनों चले आरोप-प्रत्यारोप के दौर का मुद्दा बैठक में उठा, इस पर सिब्बल ने कहा, समाज के सदस्यों ने हमें बताया कि उनकी ओर से जो भी आरोप लगाये गये, वह समिति में शामिल केंद्र के प्रतिनिधियों के बारे में नहीं थे। ये आरोप समिति के बाहर के लोगों पर लगाये गये थे। ..हमें उम्मीद है कि भविष्य में सरकार पर वादाखिलाफी करने, दगाबाजी करने और झूठ बोलने जैसे आरोप नहीं लगाये जायेंगे। बैठक में हज़ारे पक्ष का रवैया कैसा था, इस पर मंत्री ने कहा, उनका रवैया चर्चा करने का ही था। हम भी चाहते हैं कि वे बेबाकी से अपनी बात रखें। केजरीवाल से जब बैठक के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, सरकार सिर्फ अपने फैसले सुना रही है। सरकार हमारी दलीलों को नहीं सुन रही है। सरकार काफी कड़ा और अड़ियल रुख अपनाये हुए है। छोटे मुद्दों पर भी सरकार सहमत नहीं है। उन्होंने बताया कि आज की बैठक में दो मुद्दों पर चर्चा हुई लेकिन एक भी मुद्दे पर आम सहमति नहीं बन पायी। पहला मुद्दा वरिष्ठ अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने पर उनके खिलाफ विभागीय और सीबीआई जांच के बजाय स्वतंत्र लोकपाल से एक ही जांच कराये जाने का था। दूसरा मुद्दा लोकपाल के मॉडल पर था। केजरीवाल ने कहा कि पहले मुद्दे पर सरकार सहमत नहीं हुई और दूसरे मुद्दे पर सरकार ने कहा कि 11 सदस्यीय प्रस्तावित लोकपाल ही सभी मामलों पर निर्णय करेगा और 11 सदस्यीय निकाय के अधीन काम करने वाले अधिकारियों को जांच करने के अधिकार नहीं दिये जायेंगे। समिति में हज़ारे पक्ष की ओर से शामिल अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा, आज की बैठक से स्पष्ट हो गया कि सरकार और हमारे बीच कई बुनियादी मुद्दों पर गंभीर मतभेद हैं। अब यह निष्कर्ष निकला है कि मसौदे के दो संस्करण तैयार होंगे, जिन्हें कैबिनेट के समक्ष रखा जायेगा। उन्होंने कहा कि सरकार चाहती है कि 11 सदस्यीय लोकपाल के अधीन काम करने वाले जांच अधिकारियों को अधिकार नहीं दिये जायें। सिर्फ 11 सदस्यीय निकाय ही सभी मामलों से निपटे। हालांकि, हमारी ओर से यह प्रस्तावित है कि 11 सदस्यीय निकाय के अधीनस्थ काम करने वाले अधिकारियों के पास भी स्वतंत्र जांच के अधिकार हों और उनकी भी जिम्मेदारियां तय की जायें। भूषण ने कहा कि हमने सरकार को यह भी बताया कि संयुक्त राष्ट्र की भ्रष्टाचार निरोधक संधि में ही यह कहा गया है कि सरकारी नौकरशाहों के भ्रष्टाचार की जांच के लिये प्रभावशाली निकाय होना चाहिये। हमारी मांग इससे अलग नहीं है।