विज्ञापन
This Article is From Feb 27, 2024

सियासी किस्सा : मुलायम को 'रावण' कहती थी BJP, लेकिन उन्हीं की बनवा दी थी UP में सरकार, पढ़ें रोचक किस्सा

1991 में पहली बार कल्याण सिंह राज्य के मुख्यमंत्री बने और बीजेपी पहली बार यूपी की सत्ता पर काबिज हुई लेकिन 6 दिसंबर 1992 को हुए बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद पीवी नरसिम्हा राव की केंद्र सरकार ने कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त कर दिया और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया. करीब साल भर बाद जब 1993 में यूपी में 12वीं विधानसभा के लिए चुनावों का ऐलान हुआ तो देश में राम मंदिर के समर्थन में बड़ी लहर पैदा हो चुकी थी. 

सियासी किस्सा : मुलायम को 'रावण' कहती थी BJP, लेकिन उन्हीं की बनवा दी थी UP में सरकार, पढ़ें रोचक किस्सा
2003 में जब बीजेपी ने मुलायम सिंह की सरकार बनने में मदद की थी, तब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे. (फाइल फोटो)

वह दौर 1990 के दशक का था. देश में मंडल बनाम कमंडल (Mandal vs Kamandal) की राजनीति चल रही थी. 1989 में मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) पहली बार चौधरी देवी लाल (Chaudhary Devi Lal) और वीपी सिंह (Vishwanath Pratap Singh) की मदद से उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के मुख्यमंत्री बने थे लेकिन 1990 में वीपी सिंह (जनता दल) की सरकार गिरने के बाद मुलायम ने पाला बदलते हुए तत्कालीन पीएम चंद्रशेखर (Chandra Shekhar) (समाजवादी जनता दल) का दामन थाम लिया था, ताकि उनकी सरकार बची रह सके. 

1990 में अयोध्या में राम मंदिर (Ayodhya Ram Mandir) का आंदोलन जब तेज हुआ था, तब उन्होंने 30 अक्टूबर, 1990 को कार सेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया था, जिसमें करीब दर्जन भर कार सेवक मारे गए थे. बीजेपी ने इसी कांड के बाद मुलायम सिंह को 'मुल्ला मुलायम' और 'रावण' कहना शुरू कर दिया था. इस समय तक देश का सियासी परिदृश्य बदल चुका था. 1991 में जब जासूसी का आरोप लगाते हुए राजीव गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस ने छह महीने पुरानी चंद्रशेखर सरकार से अपना समर्थन वापस लिया, तब मुलायम ने भी कुर्सी छोड़ने का फैसला कर लिया. मुलायम 5 दिसंबर 1989 से लेकर 24 जून 1991 तक कुल एक साल 163 दिन मुख्यमंत्री रहे.

mulayam singh yadav shivpal yadav pti
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव (फाइल फोटो)

इसके बाद पहली बार कल्याण सिंह राज्य के मुख्यमंत्री बने और बीजेपी पहली बार यूपी की सत्ता पर काबिज हुई लेकिन 6 दिसंबर 1992 को हुए बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद पीवी नरसिम्हा राव की केंद्र सरकार ने कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त कर दिया और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया. करीब साल भर बाद जब 1993 में यूपी में 12वीं विधानसभा के लिए चुनावों का ऐलान हुआ तो देश में राम मंदिर के समर्थन में बड़ी लहर पैदा हो चुकी थी. 

अखिलेश यादव को मुलायम सिंह ने सपा से कर दिया था बाहर, 2 दिन बाद ही टीपू ने चाचा संग ऐसे किया था 'तख्तापलट'

तब मुलायम सिंह यादव और बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम ने एकसाथ मिलकर चुनाव लड़ने और नई सोशल इंजीनियरिंग करने का फैसला किया. तब तक (4 अक्टूबर, 1992) मुलायम सिंह यादव ने भी अपनी नई पार्टी समाजवादी पार्टी बना ली थी. उन चुनावों में नारा लगता था- "मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम." 1993 के यूपी विधान सभा चुनावों में 425 सीटों वाली असेंबली में सपा को 109 और बसपा को 67 सीटें मिलीं थी. 4 दिसंबर, 1993 को मायावती के सहयोग से मुलायम सिंह दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने थे. बसपा ने उनकी सरकार को समर्थन दिया था.

q834qbbसमाजवादी पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव और बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम (फाइल फोटो)

इसके करीब डेढ़ साल बाद जातीय दबंगई का आरोप लगाते हुए मायावती ने 2 जून 1993 को मुलायम सिंह सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया. इससे नाराज सपा के कार्यकर्ताओं ने गेस्टहाउस में मायावती और कांशी राम समेत बसपा के कई नेताओं को बंधक बना लिया था. भारतीय राजनीति में यह गेस्टहाउस कांड के नाम से जाना जाता है. इस कांड के बाद मायावती और मुलायम की राहें हमेशा के लिए जुदा हो गईं लेकिन फौरन ही 67 विधायकों वाली मायावती को बीजेपी ने पहली बार मुख्यमंत्री बनवा दिया. 

मायावती ने सियासी गरमी और जून की तपती दोपहरी के बीच 3 जून 1993 को राज्य की पहली दलित महिला सीएम बनने का गौरव हासिल किया. मायावती और बीजेपी की दोस्ती लंबी नहीं चल सकी और चार महीनों में ही उनकी कुर्सी चली गई. दरअसल, मायावती और बीजेपी के बीच कुछ मुद्दों पर मतभेद उभरने लगे थे. मायावती ने सत्ता में आते ही दलित एजेंडे को लागू करना शुरू कर दिया था. इसी के तहत राज्य के चीफ सेक्रेटरी और सीएम के प्रिंसिपल चीफ सेक्रेटरी (जो ऊंची जाति से ताल्लुक रखते थे) को फौरन हटा दिया और उनकी जगह दलित अफसर तैनात कर दिया. इसके अलावा कई दलित अफसरों को मायावती ने प्रमोशन देकर प्रशासन में मुख्य भूमिका दे दी. इससे नाराज तथाकथित ब्राह्मणों और बनिया की पार्टी कहलाने वाली बीजेपी ने मायावती सरकार से समर्थन वापसी का ऐलान कर दिया. 

9rgeg858
उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बसपा अध्यक्ष मायावती (फाइल फोटो)

इसके बाद 1996 में जब 13वीं विधान सभा का चुनाव हुआ तब मायावती ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा. इस गठबंधन को 425 में 100 सीटें मिली थीं, जिसमें मायावती की पार्टी को मात्र 67 सीटें ही मिलीं. उस वक्त मुलायम सिंह की पार्टी को 110 सीटें मिली थीं. तब मुलायम केंद्र की एचडी देवगौड़ा की अगुवाई वाली यूनाइटेड फ्रॉन्ट सरकार में रक्षा मंत्री थे. इस सरकार को कांग्रेस बाहर से समर्थन दे रही थी. जब मुलायम सिंह ने यूपी में मायावती की सरकार को समर्थन देने से इनकार कर दिया तो मायावती ने कांग्रेस से कहकर केंद्र सरकार से समर्थन वापसी लेने को कह दिया था. इस बीच त्रिशंकु विधान सभा की वजह से राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा रहा.

अटल बिहारी वाजपेयी कैसे आये थे RSS में, जानें पूरा किस्सा

इस बीच कांशीराम ने बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी से डील पक्की कर ली कि छह महीने मायावती मुख्यमंत्री रहेंगी और छह महीने बीजेपी का मुख्यमंत्री होगा. इस डील का बाकयादा पेपर पर एग्रीमेंट हुआ था ताकि 1995 की घटना न दोहराई जा सके. इसके बाद मायावती 21 मार्च 1997 को दोबारा राज्य की मुख्यमंत्री बनीं और डील के मुताबिक छह महीने बाद फिर से कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने.  

kalyan singh
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह.  (फाइल फोटो)

2002 में जब 14वीं विधानसभा के चुनाव हुए तब 143 सीट जीतकर सपा सबसे बड़ी पार्टी बनी लेकिन सरकार 98 सीट जीतने वाली मायावती की बनी. उसे 88 सीट वाली बीजेपी ने फिर से समर्थन दिया था लेकिन बीजेपी के कुछ फैसलों से नाराज होकर मायावती ने 2003 में अचानक मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. इसके फौरन बाद मुलायम सिंह सरकार गठन को लेकर सजग हो गए और गवर्नर से मुलाकात कर सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया. उस वक्त बसपा के 13 विधायक मुलायम के समर्थन में आ चुके थे. मायावती उनकी सदस्यता खत्म कराने के लिए विधान सभा अध्यक्ष के पास चली गईं. उस वक्त बीजेपी के केशरी नाथ त्रिपाठी विधान सभा अध्यक्ष थे.

'स्‍वाभाविक है सियासत पर भी चर्चा हुई होगी': यूपी चुनाव के पहले लालू यादव ने की मुलायम सिंह से मुलाकात

बीजेपी मायावती से इतनी खफा थी कि उसके स्पीकर केशरी नाथ त्रिपाठी ने बसपा की याचिका किनारे कर दी और अपने घोर सियासी दुश्मन मुलायम सिंह यादव की सरकार बनाने की राह आसान कर दी. उस वक्त केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी और विष्णुकांत शास्त्री यूपी के गवर्नर थे. इस तरह मुलायम सिंह यादव बसपा के 13 बागी विधायकों और 16 निर्दलीय विधायकों के समर्थन से तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने. 

तब मुलायम सिंह की सरकार को उनके धुर विरोधी रालोद के अजीत सिंह ने समर्थन दिया था जिनके पास 14 विधायक थे. इनके अलावा उस सोनिया गांधी ने भी मुलायम सिंह का साथ दिया था जिसके पीएम बनने के सावल पर 1999 में मुलायम सिंह ने विरोध किया था. तब कांग्रेस के पास 25 विधायक थे.
 

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com