लद्दाख में संघर्ष पर शिवसेना का PM मोदी पर निशाना, सामना में लिखा 'गड़बड़ी सीमा पर नहीं, दिल्ली में है'

सामना के संपादकीय में लिखा गया है, प्रधानमंत्री मोदी ने ‘जवानों की शहादत व्यर्थ नहीं जाएगी. हमें छेड़ा तो जैसे को तैसा उत्तर देने में हम सक्षम हैं’, ऐसी चेतावनी दी. यह सही हुआ. फिर भी गलवान घाटी में क्या हुआ? चीन की सीमा पर क्या हो रहा है? यह अभी तक जनता को नहीं बताया गया है.

लद्दाख में संघर्ष पर शिवसेना का PM मोदी पर निशाना, सामना में लिखा 'गड़बड़ी सीमा पर नहीं, दिल्ली में है'

लद्दाख मामले में शिवसेना ने पीएम नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा है

मुंंबई:

Ladakh Clash: शिवसेना (Shiv sena) ने पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक संघर्ष के मामले में पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) और उनकी सरकार पर निशाना साधा है. एक समय एनडीए की महत्‍वपूर्ण सहयोगी रही शिवसेना ने इस मुद्दे पर अपने मुखपत्र 'सामना' में विशेष संपादकीय (Saamana Editorial) लिखा है, जिसमें कहा गया है कि चीन से आज जो संघर्ष चल रहा है, उसका कारण पंडित नेहरू की असफल विदेश नीति है, ऐसा बोलकर सार्वजनिक सभाओं में तालियां मिल जाएंगी लेकिन आज जवानों का जो बलिदान शुरू है, उसे रोकने की जिम्मेदारी नरेंद्र मोदी सरकार की है. इस संपादकीय में साफतौर पर कहा गया है, ‘गड़बड़ सीमा पर नहीं, बल्कि दिल्ली में है, इसमें दिल्‍ली सरकार को लेकर कुछ बेहद कठोर शब्‍दों का इस्‍तेमाल किया गया है. 

शिवसेना अब एनडीए का हिस्‍सा नहीं है और कांग्रेस और एनसीपी के गठबंधन के साथ महाराष्‍ट्र में सत्‍ता संभाल रही है. पार्टी के मुखपत्र सामना के संपादकीय में लिखा गया है, 'हिंदुस्‍तान (India) और चीन (China)के सैनिकों  में सोमवार को युद्ध हुआ. यह युद्ध रक्तरंजित है. इसमें हिंदुस्‍तान के 20 जवानों के शहीद होने की खबर संतापजनक है. लेकिन यह युद्ध नहीं, बल्कि दो देशों के सैनिकों के बीच हुई मारपीट है, ऐसा कहा जा रहा है. मारपीट में हमारे 20 जवान शहीद होते हैं. चीन के लगभग 40 जवानों के मारे जाने की खबर आती है. मतलब दो देश सीमा पर जो कुछ हाथ में आए, उसी हथियार से लड़ रहे हैं. सिर फोड़ रहे हैं. अंतड़ियां निकाल ले रहे हैं. सीमा पर खून बह रहा है. हिंदुस्‍तान-चीन सीमा का यह संघर्ष और हमला 50 वर्षों बाद शुरू हुआ और 20 जवानों की शहादत के बावजूद वस्तुस्थिति बताने के लिए देश के प्रधानमंत्री का जनता के सामने न आना धक्कादायक है. पूर्व लद्दाख स्थित गलवान वैली सीमा पर सोमवार की रात चीन और हिंदुस्‍तान की सीमा पर यह झड़प हुई. इसमें हमारे 20 जवान शहीद हो गए, ऐसा अधिकृत रूप से कहने में बुधवार की सुबह हो गई. प्रधानमंत्री मोदी ने ‘जवानों की शहादत व्यर्थ नहीं जाएगी. हमें छेड़ा तो जैसे को तैसा उत्तर देने में हम सक्षम हैं', ऐसी चेतावनी दी. यह सही हुआ. फिर भी गलवान घाटी में क्या हुआ? चीन की सीमा पर क्या हो रहा है? यह अभी तक जनता को नहीं बताया गया है.

संपादकीय में कहा गया, ‘सूत्र' कहते हैं कि चीन के कमांडिंग ऑफिसर और उसके 30-40  सैनिक मारे गए. अब चीन के सैनिक मारे गए, इस पर खुश होकर हम सिर्फ ताली बजाते बैठें क्या? चीन का नुकसान हुआ, यह स्वीकार है. लेकिन हिंदुस्‍तान की सीमा में चीनी सेना घुस आई है, यह सच होगा तो चीन ने हिंदुत्व की संप्रभुता पर आघात किया है. इसके पहले 1975 में चीन की सेना हमारे अरुणाचल प्रदेश में घुस आई थी और वहां पर गोलीबारी की थी. इस गोलीबारी में हिंदुस्‍तान के 4 सैनिक शहीद हो गए थे. उसके बाद से अब तक की यह सबसे बड़ी झड़प सीमा पर हुई है. किसी भी प्रकार के हथियार बंदूक, अस्त्र, टैंक आदि का प्रयोग न करते हुए दोनों तरफ की इतनी बड़ी सैन्य हानि होनी है तो रक्षा उत्पादन और परमाणु बम क्यों बनाएं? हम पाषाण युग के पत्थरों से होनेवाली जैसी लड़ाई में एक-दूसरे की जान ले रहे हैं. लद्दाख की सीमा पर यही देखने में आया. मोदी के प्रधानमंत्री बनने से देश अधिक मजबूत, गंभीर और लड़ाकू तेवर का हुआ है, ऐसा दावा 6 वर्षों में कई बार किया गया. लेकिन इस दौरान पाकिस्तान, नेपाल और अब चीन ने हिंदुस्‍तान पर सीधे-सीधे हमला किया है. हिंदुस्‍तान की सीमा से सटे किसी भी देश से हमारे अच्छे संबंध नहीं हैं और हमारे सत्ताधीश दुनिया जीतने निकले हैं, इस पर आश्चर्य होता है. नेपाल ने हिंदुस्‍तान का नक्शा कुतरा है. पाकिस्तान की मस्ती सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भी जारी है. चीन तो एक फंसाने वाला और मायावी देश है ही लेकिन नेपाल भी हिंदुस्‍तान की ओर टेढ़ी नजर से देखकर चुनौती दे रहा होगा तो विश्वनेता और महासत्ता आदि बनने की ओर अग्रसर हमारे देश की अवस्था ठीक नहीं है, यह मानना होगा. ट्रंप और चीन की लड़ाई कोरोना के प्रसार के कारण हुई लेकिन अमेरिका चीन के मिसाइलों की जद में नहीं है. हमारा देश उसकी जद में है और चीन हमारा पड़ोसी देश है, यह नहीं भुलाया जा सकता. इसीलिए पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी और वाजपेयी ने हमेशा धधकती सीमा को शांत रखने का प्रयास किया. देश को सीमा पर संघर्ष की बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है. चीन से जो संघर्ष आज शुरू है, उसका कारण पंडित नेहरू की असफल विदेश नीति है, ऐसा बोलकर सार्वजनिक सभाओं में तालियां मिल जाएंगी लेकिन आज जवानों का जो बलिदान शुरू है, उसे रोकने की जिम्मेदारी मोदी सरकार की है. ‘गड़बड़ सीमा पर नहीं, बल्कि दिल्ली में है. दिल्ली की सरकार नामर्द है. इसीलिए सीमा पर दुश्मन आंख दिखा रहा है.' 6 साल पहले जोर लगाकर ऐसा बोलने वाले नरेंद्र मोदी आज दिल्ली के सर्वसत्ताधीश हैं. इसलिए आज जो हुआ है, उसका प्रतिकार मोदी को ही करना होगा. चीन के राष्ट्रपति अहमदाबाद आकर प्रधानमंत्री मोदी के साथ झूले पर बैठकर ढोकला खाते बैठे. उसी समय हमने इसी स्तंभ से यह चेतावनी दी थी, ‘लाल चीनी बंदरों पर विश्वास मत करो! जैसे पंडित नेहरू का विश्वासघात किया गया, वैसे ही तुम्हारे साथ भी होगा.' दुर्भाग्य से ऐसा हो चुका है. पाकिस्तान को धमकी देना, चेतावनी देना, सर्जिकल स्ट्राइक करके राजनीतिक माहौल बनाना आसान है क्योंकि पाकिस्तान देश नहीं, बल्कि एक टोली मात्र है. लेकिन चीन के मामले में ऐसा नहीं है. अमेरिका जैसी मदमस्त महासत्ता को कुछ नहीं माननेवाले चीन के पास एक वैश्विक शक्ति है. चीन साम्राज्यवादी और घुसपैठिया है. उसने हिंदुस्‍तान पर पहले ही अतिक्रमण किया हुआ है. 

'सामना' आगे लिखता है-लद्दाख के हिंदुस्‍तानी जमीन में घुसकर चीन ने जो हमला किया, वह एक चेतावनी है. दिल्ली में बैठकों और चर्चाओं का दौर शुरू है. तनाव किसी को नहीं चाहिए. फिलहाल यह किसी को स्वीकार भी नहीं होगा. लेकिन २० जवानों का बलिदान व्यर्थ जाने दें क्या? प्रतिकार नहीं हुआ तो मोदी की 'प्रतिमा' को इससे धक्का लगेगा.

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