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This Article is From Jan 14, 2013

कुंभ मेला : लाखों श्रद्धालुओं ने लगाई संगम में डुबकी

इलाहाबाद: कुंभ मेले की शुरुआत हो गई है। सोमवार को यानि मकर संक्रांति से लेकर शिवरात्रि तक इलाहाबाद के संगम में यह मेला चलेगा। आज पहले शाही स्नान के साथ ही इसकी शुरुआत हो गई। कुंभ के दौरान तीन शाही स्नान होंगे जिनमें 13 अलग-अलग अखाड़ों के करीब तीन लाख साधु हिस्सा लेंगे।

इस महाकुंभ में पुण्य कमाने के लिए ना केवल देश बल्कि विदेशों से भी बड़ी संख्या में लोग इलाहाबाद पहुंच रहे हैं। मेला प्रशासन ने अनुमान लगाया है कि कुंभ के दौरान आज करीब एक करोड़ 10 लाख लोग आस्था की डुबकी लगाएंगे।

प्रशासन की ओर से लोगों की सुरक्षा को लेकर भी खासे इंतजाम किए गए हैं। पूरे शहर को अर्द्धसैनिक बलों और पुलिसकर्मियों ने अपने कब्जे में ले रखा है और हर आने जाने वाले पर निगाह रखी जा रही है।

एक अखाड़े के स्नान कर लेने के बाद दूसरे अखाड़े के लिए जल्दी जल्दी संगम को तट खाली कराया जाता है। इसके लिए पुलिस वाले मुस्तैद रहते हैं।

इलाहाबाद में आयोजित हो रहे कुंभ का पहला शाही स्नान आज मकर संक्रांति के मौके पर शुरू हो चुका है जबकि दूसरा शाही स्नान मौनी अमावस्या के दिन यानी 10 फरवरी को और तीसरा शाही स्नान वसंत पंचमी के दिन यानी 15 फरवरी को होगा। इसके अलावा 55 दिन के इस आयोजन में कुछ और स्नान की तारीखें हैं जिनका काफी महत्व है।

इनमें प्रमुख हैं, 27 जनवरी को होने वाले पौष पूर्णिमा का स्नान, 25 फरवरी को होने वाले माघी पूर्णिमा का स्नान और 10 मार्च को महाशिवरात्रि के दिन होने वाला स्नान। इन  खास दिनों पर आम लोगों के अलावा 13 अखाड़ों के करीब तीन लाख साधु−संत संगम में डुबकी लगाएंगे। इसमें 25 हजार नागा साधु और एक सौ पचास महामंडलेश्वर शामिल होंगे।

संगम के तट पर आज सुबह से ही लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ है। मौज़ूद सभी लोग आस्था की डुबकी लगाने की आस में इंतजार कर रहे हैं।

शाही स्नान के मौके पर अखाड़ों का क्रम और समय पहले से ही निर्धारित होता है।
- महानिर्वाणी अखाड़े के साधु सुबह 6 बजकर 15 मिनट पर
- निरंजनी अखाड़े के साधु 7 बजकर 5 मिनट पर
- जूना आह्वान और अग्नि अखाड़े के साधू 8 बजे
- निर्वाणी अखाड़े के लिए सुबह 10 बजकर 40 मिनट का
- दिगंबर 11 बजकर 20 मिनट और
- निर्मोही अखाड़े के लिए 12.20 मिनट का वक्त
- नया उदासीन पंचायती अखाड़ा एक बजकर 15 मिनट
- बड़ा उदासीन दो बजकर बीस मिनट
- निर्मल अखाड़े के लिएि तीन बजकर चालीस मिनट का वक्त तय किया गया है।

कब कहां होता है कुंभ-
- कुंभ राशि में बृहस्पति और मेष राशि में सूर्य के प्रवेश पर हरिद्वार में कुंभ पर्व होता है।
- मेष राशि में बृहस्पति और मकर राशि में सूर्य−चंद्रमा के प्रवेश पर प्रयाग का कुंभ होता है।
- मकर राशि में सूर्य और वृष राशि में बृहस्पति पर भी प्रयाग का कुंभ होता है।
- सिंह राशि में बृहस्पति के प्रवेश या फिर अमावस्या के दिन बृहस्पति सूर्य और चंद्रमा के कर्क राशि में प्रवेश पर नासिक में कुंभ होता है।
- सिंह राशि में बृहस्पति और मेष राशि में सूर्य के प्रवेश पर उज्जैन का कुंभ होता है।

कहां कहां हैं कुंभ का उल्लेख-
पुराणों की बात करें तो नारदीय पुराण, शिव पुराण, वाराह पुराण और ब्रह्म पुराण में कुंभ और उससे जुड़ी जानकारियां मिलती हैं। इसके अलावा अथर्ववेद में भी कुंभ का नाम आता है।

स्नान के लिहाज से कई दिन अहम हैं इनमें-
14 जनवरी − मकर संक्रांति
27 जनवरी − पौष पूर्णिमा  
10 फरवरी− मौनी अमावस्या
15 फरवरी− वसंत पंचमी
25 फरवरी− माघ पूर्णिमा
10 मार्च − महाशिवरात्रि  

ये मान्यता कहां से शुरू हुई और कुंभ एक परंपरा कैसे बना-
कुंभ की कहानी-
कुंभ की कहानी समुद्र मंथन से शुरू होती है जिसका जिक्र पुराणों में मिलता है। माना जाता है कि क्षीर सागर में छुपे अमृत की चाहत ने देवताओं और राक्षस को भी एक साथ ला खड़ा किया।

कच्छप अवतार पर मंदरांचल पर्वत रखा गया और देवताओं के नागवासुकी का इस्तेमाल रस्सी के तौर पर हुआ जिसके फन की तरफ राक्षस थे और पूंछ की ओर देवता। मंथन के दौरान एक-एक कर कई रत्न निकले जैसे एरावत और कल्पवृक्ष और इन सबके बाद बारी आई अमृत कलश की।

लेकिन, जैसे ही अमृत बाहर आया उसके लिए देवताओं और दानवों में जंग छिड़ गई। उस छीना-झपट में अमृत की कुछ बूंदे छलक कर इलाहाबाद, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन में गिरी। तभी से हर 12 साल बाद इन जगहों पर कुंभ स्नान का पर्व शुरू हो गया।

ये मान्यता जितनी पुरानी होती गई उतनी ही मजबूत भी हुई। हर बार कुंभ में लोगों की भीड़ पहले से ज्यादा होती है। यह सवाल कोई नहीं पूछता कि अबतक गुजरी सैकड़ों पुश्तों में कोई अमर क्यों नहीं हुआ, लेकिन अमृत कलश की कहानी मानवता के इतिहास में अमर हो गई।

बारी बारी से हर 12 सालों के बाद देश में चार जगहों पर ऐसा ही जमावड़ा देखने को मिलता है जिसे कुंभ उत्सव का नाम दिया गया है। पुराणों की मानें तो कहानी बताती है कि सागर से निकले अमृत कलश को स्वर्ग लोक तक पहुंचने में 12 दिन लगे थे और देवताओं का एक दिन हमारे एक साल के बराबर होता है। लिहाजा कुंभ उत्सव 12 साल के फासले पर होते हैं।

गंगा और यमुना के संगम पर बसी कुंभ की नगरी अपने आप में एक अलग अस्थायी जिले का दर्जा पाती है और इसके लिए बाकायदा नोटिफिकेशन जारी कर प्रशासनिक अधिकारी तैनात किए जाते हैं। किताबों में इसे धरती पर मनुष्यों के सबसे बड़े जमावड़े का खिताब हासिल है।

इसका फैलाव स्थानीय स्तर पर परेड ग्राउंड से त्रिवेणी बांध तक, दारागंज से नागवासुकी और झूंसी से अरैल तक होता है। लेकिन करीब 50 वर्गकिलोमीटर के दायरे में मनाए जाने वाले उत्सव को लेकर ठीक-ठीक ये बताना मुश्किल है कि कुंभ की शुरुआत कब से हुई।

हालांकि, कुंभ के बारे में कहा जाता है कि पहले यह एक अवसर कहा जाता था लेकिन वक्त के साथ ये महोत्सव में तब्दील हो गया। बताया जाता है कि 12वीं सदी तक ये एक बड़े सांस्कृतिक संगम के रूप में अपनी पहचान बना चुका था। यहां तक कि भारत आए मशहूर चीनी यात्री ह्वेनसांग वह पहले शख्स थे जिन्होंने कुंभ मेले का जिक्र अपनी डायरी में किया था।

डायरी में हिंदू माघ महीने में 75 दिनों के उत्सव की बात की गई है जिसे लाखों साधुओं, नागरिकों, रईसों और राजाओं ने देखा है।

कुंभ में एक अद्भुत नजारा भी दिखता है। यहां शाही स्नान के लिए पूरे धूमधाम से शाही सवारी निकलती है। इसे उल्टी दुनिया कह सकते हैं जहां फकीरों की शाही सवारी निकलती है। बड़े−बड़े रईस संगम की सर्द रेत पर रात बिताते हैं। यहां ईंट और पत्थरों के ऊंचे ऊंचे महल नहीं दिखते और ना ही लाल पत्थरों के क़िले की धेले भर कीमत है। कभी झोपड़ी तो कहीं टेंट में लोग जमे रहते हैं। इस उम्मीद में कि उनके जीवनभर के पाप कटेंगे।

संगम पर ऐसा नजारा मिलना आम है। दरअसल, प्रयाग में कल्पवास की अपनी अलग अहमियत रही है, खासकर माघ के महीने में। कल्पवास की शुरुआत पौष महीने के 11वें दिन से होती है जो माघ महीने के 12वें दिन तक चलता है।

कल्पवास के दौरान श्रद्धालुओं की जिंदगी सादगी भरी होती है और दिन में सिर्फ एक बार खाना खाना होता है। माना जाता है कि कल्पवास और संगम स्नान से जिंदगी के तमाम पाप कट जाते हैं और मनुष्य जीवन मरण के चक्कर से मुक्त होकर मोक्ष हासिल करता है।

इस बार के महाकुंभ को लेकर प्रशासन ने अपनी पूरी तैयारी कर रखी है ताकि लाखों की तादाद में आने वाले श्रद्धालु जिनकी संख्यां कुछ मौके पर करोड़ों में भी हो सकती है उनके स्नान का बंदोबस्त हो सके।

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