
नहीं रहे देश के जाने-माने पत्रकार कुलदीप नैयर. आत्मकथा 'बियॉन्ड द लाइंस' में कर चुके कई खुलासे.(फाइल फोटो)
- नहीं रहे मशहूर पत्रकार कुलदीप नैयर
- नैयर का दावा-उनकी खबर से लाल बहादुर शास्त्री बन पाए थे प्रधानमंत्री
- वीपी सिंह ने कुलदीप नैयर को उच्चायुक्त बनाकर भेजा था ब्रिटेन
क्या हमारी AI समरी आपके लिए उपयोगी रही?
हमें बताएं।
इंदिरा गांधी ने जब आपातकाल लगाया था तो नैय्यर ने कड़ा विरोध किया था. 1975 से 1977 के बीच करीब 21 महीने तक विरोध प्रदर्शनों में शरीक हुए थे.इस दौरान मीसा के तहत जेल भी गए. तब नैयर उर्दू प्रेस रिपोर्टर थे. 1990 में वीपी सिंह सरकार में वह ग्रेट ब्रिटेन के उच्चायुक्त बने वहीं 1996 में संयुक्त राष्ट्र जाने वाले भारतीय प्रतिनिधिमंडल के सदस्य भी रहे.1997 में पहली बार नैयर राज्यसभा सदस्य पहुंचे. बकौल नैयर-अगर मुझे अपनी जिन्दगी का कोई अहम मोड़ चुनना हो तो मैं इमरजेंसी के दौरान अपनी हिरासत को ऐसे ही एक मोड़ के रूप में देखना चाहूंगा, जब मेरी निर्दोषता को हमले का शिकार होना पड़ा था ।
वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर का 95 साल की उम्र में निधन, पीएम नरेंद्र मोदी ने जताया दुख
कुलदीप नैयर ने अपने जीवनकाल में कई चर्चित पुस्तकें लिखीं. इसमें इंडिया हाउस(1992), इंडिया ऑफ्टर नेहरू(1975), डिस्टेंट नबर्सः ए टेल ऑफ सब कॉन्टिनेंट(1972), द जजमेंटःइनसाइड स्टोरी ऑफ इमरजेंसी इन इंडिया(1977), वाल एट वाघा-इंडिया पाकिस्तान रिलेशनशिप(2003) प्रमुख हैं.
दावा-कुछ यूं बने थे शास्त्री पीएमः जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद प्रधानमंत्री पद के लिए जोड़-तोड़ शुरू हुई थी.कई बड़े कांग्रेस नेताओं का नाम उछल रहा था. इनमें लाल बहादुर शास्त्री, मोरारजी देसाई और जेपी नारायण के नाम प्रमुख थे.तब कुलदीप नैय्यर समाचार एजेंसी यूएनआई में थे. उस नाजुक घड़ी में उन्होंने प्रधानमंत्री पद के लिए मोरारजी देसाई की दावेदारी की एक सनसनीखेज खबर जारी कर दी. इससे पार्टी और बाहर के लोगों में मोरारजी के प्रति नाराजगी पैदा हो गई और लोग उन्हें महत्वाकांक्षी मानने लगे. मोरारजी समर्थकों के मुताबिक इस खबर से उन्हें सौ वोटों का घाटा हो गया.
नैयर अपनी आत्मकथा में लिखते हैं- खबर के बाद के. कामराज ने संसद भवन में मुलाकात के दौरान उन्हें थैंक्यू कहा था. वहीं जब शास्त्री पार्टी नेता चुने गए तो उन्होंने सबके सामने संसद भवन की सीढ़ियों पर उन्हें गले लगा लिया.जबकि देसाई को लगता था कि यह स्टोरी उन्हें नुकसान और शास्त्री को फायदा पहुंचाने के लिए लिखी गई थी. हालांकि नैय्यर ने कई दफा शास्त्री और देसाई दोनों को ससमझाने की कोशिश की संबंधित स्टोरी किसी को फायदा या नुकसान पहुंचाने के मकसद से नहीं लिखी गई थी.हालांकि नैयर आत्मकथा में यह मानते हैं कि उन्होंने शास्त्री की छवि को फायदा पहुंचाने वाली कई खबरें लिखीं.
अपनी आत्मकथा में नैयर एक और खुलासा कर चुके हैं. यह कि लालबहादुर शास्त्री की दिल्ली में समाधि बनाने के पक्ष में इंदिरा गांधी नहीं थी, मगर ललिता शास्त्री ने जब आमरण अनशन की धमकी दी तो मामले की नजाकत को समझते हुए इंदिरा को फैसला बदलना पड़ा और दिल्ली में समाधि बनवानी पड़ी.
एनडीटीवी के पत्रकार रवीश कुमार को कुलदीप नैयर सम्मान
वीपी सिंह ने दिया था बड़ा इनामः अंग्रेजी में लिखी आत्मकथा 'Beyond the Lines' में कुलदीप नैयर काफी साफगोई से तमाम वाकये बयां करते हैं. दरअसल, जब राजीव गांधी से मतभेद के कारण वीपी सिंह को कांग्रेस से निष्कासित कर दिया गया तो उन्होंने राजीव गांधी से असंतुष्ट चल रहे आरिफ मोहम्मद खान और अरुण नेहरू के साथ 1987 में जन पार्टी का गठन किया.1988 में इलाहाबाद से लोकसभा चुनाव जीतने में सफल रहे फिर 11 अक्टूबर 1988 को जन पार्टी, जनता पार्टी और लोकदल में गठबंधन हुआ और एक नई पार्टी जनता दल का गठन हुआ.
जोड़-तोड़ के बाद वीपी सिंह जनता दल के अध्यक्ष बनने में सफल रहे.आखिरकार दो दिसंबर 1989 को जनता दल की सरकार बनने पर वीपी सिंह प्रधानमंत्री बनने में सफल रहे. कुलदीप नैयर ने किताब में दावा किया कि वीपी सिंह के जनता दल के अध्यक्ष चुनने के दौरान हुए हाई वोल्टेज ड्रामे की स्क्रिप्ट उन्होंने ही लिखी थी, जिसके इनाम के तौर पर प्रधानमंत्री बनने के बाद वीपी सिंह ने उन्हें ब्रिटेन का उच्चायुक्त बना दिया.
VIDEO:NDTV पर सीबीआई के छापों के खिलाफ प्रेस क्लब में जुटे दिग्गज पत्रकार
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं