नई दिल्ली : IAS अफसर अशोक खेमका का तबादला न केवल एक अफसर को प्रताड़ित करने का मामला है बल्कि ये प्रशासनिक सेवाओं के लिये बने नियमों के खिलाफ भी है। हरियाणा सरकार का ये फैसला अशोक खेमका का तबादला आल इंडिया सर्विस एक्ट के नोटिफाइड नियमों को तोड़ता है।
ये नियम कहते हैं कि आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अधिकारियों में डायरेक्टर लेवल से बड़े अफसर को एक पोस्टिंग पर कम से कम दो साल रखा जाये। लेकिन अशोक खेमका के अब तक के 22 साल के करियर में औसतन सालाना दो ट्रांसफर होते रहे हैं
रॉबर्ट वाड्रा और रियल एस्टेट कंपनी डीएलएफ के बीच ज़मीन खरीद की गड़बड़ी को उजागर करने वाले खेमका को पहले कांग्रेस सरकार ने प्रताड़ित किया और अब बीजेपी सरकार की उन पर टेढ़ी नज़र है। ईमानदार अफसरों को परेशान करने के लिये अमूमन उनके ट्रांसफर कर दिये जाते हैं या फिर उनकी सालाना रिपोर्ट यानी एसीआर खराब कर दी जाती है।
खेमका के न केवल 22 साल में 45 ट्रांसफर हुए हैं बल्कि उनकी एसीआर में सरकार ने लिखा है "डाउडफुल इंटीग्रिटी" यानी उनकी विश्वसनीयता को ही संदेहजनक बताया है। किसी भी अफसर के लिये इस रिमार्क के बाद तरक्की का रास्ता बंद हो जाता है। गुरुवार को हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने भले ही कहा कि खेमका की ईमानदारी निस्संदेह है लेकिन साफ है कि इस अफसर की प्रताड़ना बीजेपी सरकार में भी जारी रहेगी।
लेकिन अशोक खेमका का मामला ये भी बताता है कि बेईमानी और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले अफसरों का साथ कोई पार्टी नहीं देती। नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी ने भले ही लोकसभा चुनाव प्रचार में अशोक खेमका जैसे अफसरों की प्रताड़ना को मुद्दा बनाया लेकिन उनको ट्रांसपोर्ट कमिश्नर की पोस्टिंग पर वह 128 दिन ही झेल पाई।
ऐसे अफसरों की संख्या कम नहीं है जिनके साथ हर पार्टी ने ज़्यादती की है। हरियाणा में कांग्रेस की हुड्डा सरकार ने वन सेवा (आईएफएस) अधिकारी संजीव चतुर्वेदी के 5 साल में 12 तबादले किये। उन्हें नौकरी से सस्पेंड किया। उन पर चार्जशीट की और उनके खिलाफ एफआईआर की। लेकिन जब वो दिल्ली में एम्स के सीवीओ यानी मुख्य सतर्कता अधिकारी बन कर आए तो बीजेपी सरकार ने उन्हें इस पद से हटा दिया और साइड लाइन कर दिया।
आरटीआई कार्यकर्ता शेखर सिंह कहते हैं कि 'सरकारें आज जानकारी और भ्रष्टाचार को छुपाना चाहती हैं इसलिए वो हर ईमानदार अफसर के खिलाफ हैं लेकिन यही सरकारें विपक्ष में रहकर हल्ला मचाती हैं क्योंकि उनको अच्छा लगता है कि सरकार की गंदगी सामने आ रही है।
लेकिन नौकरशाही से बाहर भी हैं जहां भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों को किसी पार्टी का साथ नहीं मिला। आईआईटी खड़गपुर के प्रोफेसर राजीव कुमार इसकी एक मिसाल हैं जिनकी कोशिशों से आईआईटी में कई सुधार हुए। आईआईटी की प्रवेश परीक्षा में गड़बड़ियां उजागर हुईं, कई घोटाले पकड़े गए, खुद सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में उनको भ्रष्टाचार से लड़ रहा अनसंग हीरो बताया।
लेकिन आईआईटी ने ही उन्हें सस्पेंड कर दिया गया। उनकी जासूसी की गई और फोन कॉल रिकॉर्ड हासिल किए गए। अब उन्हें संस्थान से जबरन रिटायरमेंट लेने को कहा जा रहा है। न तो कांग्रेस की सरकार और न बीजेपी की सरकार उनके लिए कोई राहत लाई है। ऐसे में साफ है कि ईमानदारी के लिए लड़ रहे लोग हर सरकार में अनचाहे हैं भले ही वो किसी पार्टी की सरकार हो।
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