उन्होंने कहा कि जेएनयू के मामले में मुख्यत: 'अति वामपंथी' शामिल थे जिसमें 'जेहादियों का एक छोटा वर्ग भी जुड़ा था जो 9 फरवरी को परिसर में प्रदर्शन के दौरान अपने चेहरे ढंके हुए थे। उस प्रदर्शन के दौरान राष्ट्रविरोधी नारे लगाए गए थे।
जेटली ने पत्रकारों के साथ बातचीत के दौरान कहा कि हैदराबाद विश्वविद्यालय के मामले में डॉ बी आर अंबेडकर के नाम का 'अनुचित रूप से इस्तेमाल' किया गया जहां एक शोध छात्र रोहित वेमुला द्वारा आत्महत्या के बाद प्रदर्शन शुरू हो गए।
उन्होंने इस तथ्य पर संतोष जताया कि देश भर में धार्मिक और अल्पसंख्यक समूहों तथा उनके नेताओं ने दोनों विश्वविद्यालयों के घटनाक्रम से शुरू की गई बहस में भाग नहीं लिया।
मंत्री ने कहा, ‘‘उदार वामपंथी और कांग्रेस उसमें फंस गए जो अति वामपंथियों का आंदोलन था।’’ उन्होंने कहा कि भाजपा ने इसे एक वैचारिक चुनौती के तौर पर लिया।
उन्होंने कहा कि भाजपा ने इस वैचारिक बहस का ‘पहला चरण’ इस अर्थ में जीत लिया कि हर कोई कम से कम ‘‘इस नतीजे के करीब पहुंचा जिसकी हम बात कर रहे थे।’’ यह पूछे जाने पर कि क्या वह बहस में और चरणों की उम्मीद कर रहे थे, भाजपा नेता ने कहा कि इस लड़ाई की शुरुआत उनकी पार्टी ने नहीं की थी ‘‘हम बहस को इस सीमा (और चरण) तक नहीं पहुंचा रहे हैं लेकिन अगर कोई फिर इसे शुरू करता है तो निश्चित रूप से बहस जारी रहेगी।’’
यह पूछे जाने पर कि राष्ट्रवाद पर चर्चा शुरू कर भाजपा राजनीतिक लाभ उठा रही है, जेटली ने कहा, ‘‘मैं किसी लाभ की ओर नहीं देख रहा हूं। यह एक वैचारिक स्थिति थी और हमने अपनी बात कर दी है। हमें नहीं लगता कि हम यह लड़ाई हार सकते हैं।’’
जेटली ने आगाह किया कि मुख्यधारा की पार्टियों को अहम मुद्दों पर एक ‘‘निश्चित स्तर का रुख तय करना होगा’’ लेकिन वे ‘‘हाशिये’’ पर पड़े रहने वाला रवैया नहीं अपना सकते। वित्तमंत्री ने कहा, ‘‘आप हाशिये पर पड़े रहने वाला रवैया नहीं अपना सकते । मुख्यधारा की चीजें हाशिये पर पड़ी चीजों की तरह बर्ताव नहीं करतीं ।’’ उन्होंने कहा कि जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकारें रह गई हैं, वहां वे अच्छा काम करती नजर नहीं आ रहीं ।
यह पूछे जाने पर कि अनर्गल बयानबाजी करने वाले पार्टी नेताओं के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गई है, इस पर जेटली ने कहा कि एक बड़ी राजनीतिक व्यवस्था में कुछ लोग हमेशा ही ऐसे होते हैं जो हल्की बयानबाजी करते हैं या अस्वीकार्य टिप्पणियां करते हैं ।
जेटली ने अफसोस जताया कि जब संसद में सार्थक बहस होती है तो सदस्यों को उसमें हिस्सा लेने के लिए उन्हें कोई प्रोत्साहन नहीं मिलता जबकि कुछ अनर्गल बयान देने वाले सुखिर्यों में आ जाते हैं ।
राजद्रोह कानून की समीक्षा या उसे रद्द करने की जरूरत के बारे में पूछे गए एक सवाल में केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘‘इसकी भाषा में कुछ बदलाव की जरूरत हो सकती है ।’’ उन्होंने इसके प्रावधानों के बारे में एक उदाहरण देते हुए कहा, ‘‘मैं सरकार की आलोचना या सरकार के खिलाफ नफरत को सह सकता हूं । लेकिन देश के खिलाफ नफरत को सहने के लिए मैं तैयार नहीं हूं ।’’ यह पूछे जाने पर कि क्या सरकार राजद्रोह कानून को खत्म करने पर विचार कर रही है, इस पर उन्होंने ज्यादा बोलने से इनकार करते हुए कहा कि यह उनका विषय नहीं है।
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