आय से अधिक संपत्ति के मामले में बेंगलुरू की अदालत द्वारा चार साल जेल की सजा सुनाए जाने के बाद अन्नाद्रमुक प्रमुख जे जयललिता पद गंवाने वाली और जेल जाने वाली पहली सेवारत मुख्यमंत्री बन गई हैं।
भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत दोषी ठहराई गईं अन्नाद्रमुक प्रमुख को अपनी दोषसिद्धि को चुनौती देने के लिए अपील दायर करने पर विचार करने से पहले अब जमानत के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना होगा।
संयोगवश, जयललिता राज्य की दूसरी नेता हैं, जिन्हें अयोग्य ठहराया गया है। इससे पहले द्रमुक के राज्यसभा सदस्य टी एम सेल्वागणपति को क्रिमैशन शेड घोटाले में दोषी ठहराए जाने के बाद अयोग्य ठहराया गया था।
पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के उस प्रावधान को निरस्त कर दिया था, जिसके तहत दोषी सांसदों, विधायकों को ऊपरी अदालत में अपील दायर करने के लिए छह महीने की राहत मिल जाती थी।
न्यायालय ने कहा था कि अगर कोई सांसद या विधायक ऐसे अपराध का दोषी ठहराया जाता है, जिसमें उसे दो साल या उससे अधिक की सजा होती है तो वह तत्काल अयोग्य हो जाएगा। इस फैसले से 2016 में होने वाले विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी को फिर से जीत दिलाने की जयललिता की लंबी-चौड़ी योजना में अड़चन आ गई है।
अन्नाद्रमुक अप्रैल 2011 के विधानसभा चुनाव के बाद से राज्य में प्रभावशाली शक्ति बनी हुई है। अन्नाद्रमुक ने अप्रैल 2011 के बाद से राज्य में हुए सभी चुनावों में जीत हासिल की है। इसमें उपचुनाव भी शामिल हैं।
अब अगला कदम जयललिता के उत्तराधिकारी को ढूंढने का होगा। जयललिता के मंत्रिमंडल के सहयोगी ओ पन्नीरसेल्वम (वित्त), नाथम विश्वनाथन (बिजली) और वी सेंथिल बालाजी (परिवहन) और पूर्व मुख्य सचिव और राज्य सरकार की सलाहकार शीला बालकृष्णन के नामों की इस पद के लिए चर्चा चल रही है।
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