रेल बजट से कुछ दिन पहले यात्री किराया और माल भाड़े में भारी वृद्धि को सही ठहराते हुए रेलमंत्री डीवी सदानंद गौड़ा ने कहा, दवा खाने में तो कड़वी लगती है, लेकिन उसका परिणाम मधुर होता है। रेल मंत्री ने आज लोकसभा में अपना पहला रेल बजट पेश करते हुए कहा कि भारतीय रेल चिंतनीय स्थिति से गुजर रही है और इसे तत्काल ठीक किए जाने की जरूरत है।
उन्होंने कहा, कुछ सुधारात्मक उपायों, जिनकी मैंने योजना बनाई है, में एक उपाय किरायों में संशोधन का रहा। यह एक कठिन लेकिन जरूरी निर्णय था। गौड़ा ने इस संदर्भ में संस्कृत का यह श्लोक पढ़ा, यत्तदग्रे विषमिव परिणामे अमृतोपमम’’। अर्थात, दवा खाने में तो कड़वी लगती है, लेकिन उसका परिणाम मधुर होता है।
उन्होंने कहा कि यह किराया बढ़ाए जाने से भारतीय रेल को सिर्फ 8000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त राजस्व प्राप्त होगा। जबकि स्वर्णिम चतुर्भुज नेटवर्क को पूरा करने के लिए 9 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की और केवल एक बुलेट ट्रेन गाड़ी चलाने के लिए लगभग 60000 करोड़ रुपये की जरूरत होगी।
रेल मंत्री ने कहा कि लेकिन इतनी बड़ी राशि की व्यवस्था के लिए किराया और मालभाड़े की दरों में वृद्धि करके उसका बोझ जनता पर नहीं डाला जा सकता। उन्होंने कहा, 'चूंकि यह अवास्तविक है, इसलिए इन निधियों की व्यवस्था करने के लिए मुझे वैकल्पिक उपायों पर सोचना होगा।'
इसके लिए उन्होंने रेल अवसंरचना में घरेलू और विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) के जरिये निजी निवेश, सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) और रेलवे के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के संसाधनों का उपयोग किए जाने के उपाय सुझाए।
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