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This Article is From Jan 14, 2020

नागरिकता कानून और NRC के खिलाफ विपक्ष के विरोध में ईमानदारी या सिर्फ वोटों के लिए दिखावा?

नागरिकता कानून और एनआरसी पर क्या विपक्षी दल ईमानदारी से विरोध कर रहे हैं, या सिर्फ वे अपने वोट बैंक की राजनीति में व्यस्त हैं. यह सवाल इस मुद्दे को  लेकर  सोमवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की ओर से बुलाई गई बैठक के बाद से उठा है.

नागरिकता कानून और NRC के खिलाफ विपक्ष के विरोध में ईमानदारी या सिर्फ वोटों के लिए दिखावा?
CAA-NRC : सोमवार को कांग्रेस ने विपक्षी दलों की बैठक बुलाई थी
नई दिल्ली:

नागरिकता कानून और एनआरसी पर क्या विपक्षी दल ईमानदारी से विरोध कर रहे हैं, या सिर्फ वे अपने वोट बैंक की राजनीति में व्यस्त हैं. यह सवाल इस मुद्दे को  लेकर  सोमवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की ओर से बुलाई गई बैठक के बाद से उठा है. क्योंकि इस बैठक में विपक्ष में शामिल कई बड़े दलों ने आने से इनकार कर दिया तो कुछ का कहना था कि उनको न्यौता ही नहीं भेजा गया. बैठक में शामिल न होने वाले दलों में समाजवादी पार्टी, बीएसपी, शिवसेना डीएमके, बीएसपी, आम आदमी पार्टी और टीएमसी शामिल है.  वहीं इस बैठक में शामिल होने वाले दलों में एनसीपी प्रमुख शरद पवार, माकपा के सीताराम येचुरी, भाकपा के डी राजा, झामुमो के नेता एवं झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन,  आरजेडी के मनोज झा, नेशनल कांफ्रेस के हसनैन मसूदी और रालोद के अजित सिंह, आईयूएमएल के पी के कुन्हालीकुट्टी, लोकतांत्रिक जनता दल के शरद यादव, पीडीपी के मीर मोहम्मद फैयाज, जद (एस) के डी कुपेंद्र रेड्डी, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के जीतन राम मांझी, रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा शामिल थे.  कांग्रेस की ओर से सोनिया गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, राकांपा प्रमुख शरद पवार, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल, ए के एंटनी, के सी वेणुगोपाल, गुलाम नबी आजाद और रणदीप सुरजेवाला शामिल थे.

शिवसेना नहीं आई
शिवसेना (Shivsena) नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के विरोध में खुलकर उतरी शिवसेना संजय राउत ने कहा था कि वे इन प्रदर्शनों का समर्थन करते हैं. लेकिन यहां इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि लोकसभा में शिवसेना ने संशोधित नागरिकता बिल का समर्थन किया था और राज्यसभा में भी वॉक आउट कर एक तरह से बीजेपी की मदद की थी. शिवसेना एक ओर तो महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार चला रही है इसके चलते वह सीएए के विरोध में भी दिखना चाहती है और अपने हिंदू वोट दरक न जाएं इसका भी पार्टी ध्यान रख रही है.

मायावती ने क्यों किया किनारा
नागरिकता कानून के खिलाफ मायावती जोर-शोर से सवाल उठाती हैं तो लेकिन जब एकजुट होकर इस विरोध की आवाज को और मजबूत करने की बारी आई तो मायावती ने दूरी बना ली. उनका कहना है कि राजस्थान में जिस तरह से उनके विधायकों को तोड़ा गया यह उनके विश्वासघात है. दरअसल मायावती प्रियंका गांधी की उत्तर प्रदेश में बढ़ती सक्रियता से भी खासी नाराज हैं. 

आम आदमी पार्टी को नहीं बुलाया गया?
नागरिकता कानून और एनआरसी के खिलाफ आम आदमी पार्टी ने भी विरोध का झंडा उठा रखा है. लेकिन पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह का दावा है कि कांग्रेस ने उसे बैठक को लेकर कोई न्यौता नहीं दिया गया है और न इसकी जानकारी है. हालांकि न्यौता दिया गया था या नहीं इस पर कांग्रेस की ओर से भी अभी तक कुछ नहीं गया है. माना जा रहा है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव को देखते हुए दोनों पार्टी एक निश्चित दूरी बनाए रखना चाहती हैं. 

ममता बनर्जी और कांग्रेस 
नागरिकता कानून और एनआरसी के खिलाफ सबसे ज्यादा मुखर ममता बनर्जी ने भी इस बैठक में आने से इनकार कर दिया. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल विधानसभा में गुरुवार को साफ शब्दों में कहा था कि ‘‘अगर जरुरत पड़ी तो वह अकेले लड़ेंगी.'' सदन में ही उन्होंने विश्वविद्यालय परिसरों में हिंसा और सीएए के खिलाफ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा 13 जनवरी को बुलाई गई विपक्षी दलों की बैठक के बहिष्कार की घोषणा भी की. बनर्जी बुधवार को ट्रेड यूनियनों के बंद के दौरान राज्य में वामपंथी और कांग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा की गई कथित हिंसा से भी नाराज हैं. दरअसल पश्चिम बंगाल की राजनीति में कांग्रेस और लेफ्ट दलों का गठबंधन और टीएमसी के बीच भी लड़ाई है और अगर दिल्ली में ममता बनर्जी इन दोनों दलों के साथ दिखती हैं तो राज्य में जवाब देना पड़ेगा और जिस तरह बीजेपी पश्चिम बंगाल पर अपना पूरा जोर लगा रही वह ममता बनर्जी के लिए मुश्किल खड़ी कर सकता है.

समाजवादी पार्टी भी नहीं आई
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव भी एनआरसी और नागरिकता कानून के खिलाफ हैं. लेकिन कांग्रेस की ओर से बुलाई गई बैठक में वह भी शामिल नहीं हुए. सपा क्यों नहीं शामिल हुई इसकी कोई वजह तो साफ नहीं है लेकिन हो सकता है कि समाजवादी पार्टी विधानसभा चुनाव को देखते हुए कांग्रेस से दूरी बनाए रखना रणनीति का हिस्सा हो सकता है. 

डीएमके ने भी किया किनारा
यूपीए का हिस्सा डीएमके की ओर से भी इस बैठक में कोई नहीं आया. हालांकि अभी तक इसकी कोई वजह साफ नहीं हो पाई है.  

अमर्त्य सेन ने क्या कहा
संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) को रद्द करने की मांग करने के कुछ ही दिन बाद नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने सोमवार को कहा कि किसी भी कारण के लिए प्रदर्शन करने की खातिर विपक्ष की एकता जरूरी है. उन्होंने कहा, 'किसी भी तरह के प्रदर्शन के लिए विपक्ष की एकता आवश्यक है. ऐसे में प्रदर्शन आसान हो जाते हैं. अगर प्रदर्शन जरूरी बात के लिए हो तो एकता जरूरी है.' उन्होंने कहा, 'लेकिन अगर एकता नहीं है तो इसका मतलब यह नहीं है कि हम प्रदर्शन बंद कर देंगे. जैसा कि मैंने कहा, एकता से प्रदर्शन आसान हो जाता है, लेकिन अगर एकता नहीं है तो भी हमें आगे बढ़ना होगा और जो जरूरी है, वह करना होगा.'

क्या है सबसे बड़ा सवाल
सवाल इस बात का है कि क्या नागरिकता कानून के खिलाफ विपक्षी पार्टियों का विरोध पर उनके निजी चुनावी स्वार्थों के आगे बौना पड़ गया है. जब नागरिकता कानून और एनआरसी जैसे मुद्दे राष्ट्रव्यापी बहस के मुद्दे हैं तो क्या विपक्ष के लिए यह सिर्फ वोटबैंक या चुनावी मुद्दा भर है.  
 

प्राइम टाइम: नागरिकता कानून के खिलाफ आखिर क्या है विपक्ष की रणनीति?​

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