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This Article is From May 14, 2017

तो क्या मोदी सरकार की सबसे बड़ी असफलता बनने की ओर कश्मीर?

देश में आर्थिक विकास को गति देने, उद्योगों को बढ़ावा देने, निवेश को आकर्षित करने और देश के अंदर सकारात्मक माहौल तैयार करने को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर शायद ही संदेह किया जा रहा हो, लेकिन जम्मू एवं कश्मीर के मौजूदा हालात में सुधार के लिए अगर जल्द ही कोई कदम नहीं उठाया गया तो यह मोदी सरकार की सबसे बड़ी असफलता बन सकती है।

तो क्या मोदी सरकार की सबसे बड़ी असफलता बनने की ओर कश्मीर?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीरी युवाओं से आतंकवाद छोड़कर पर्यटन अपनाने की अपील की...
नई दिल्ली: देश में आर्थिक विकास को गति देने, उद्योगों को बढ़ावा देने, निवेश को आकर्षित करने और देश के अंदर सकारात्मक माहौल तैयार करने को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर शायद ही संदेह किया जा रहा हो, लेकिन जम्मू एवं कश्मीर के मौजूदा हालात में सुधार के लिए अगर जल्द ही कोई कदम नहीं उठाया गया तो यह मोदी सरकार की सबसे बड़ी असफलता बन सकती है, लेकिन कश्मीर घाटी के ताजा हालात को देखकर ऐसा नहीं लगता कि केंद्र सरकार इस तरह का कोई कदम उठाने जा रही है.

घाटी में सुरक्षा बलों की उपस्थिति पहले की अपेक्षा काफी बढ़ी है और निर्वाचन आयोग को भी राज्य सरकार ने कहा है कि घाटी में अभूतपूर्व तनाव को देखते हुए सेना की भूमिका बढ़ने वाली है जिससे स्थिति और 'भयावह' होने वाली है. राज्य सरकार की प्रतिक्रिया पर निर्वाचन आयोग ने अनंतनाग संसदीय उप-चुनाव को दोबारा टाल दिया है.

हाल ही में श्रीनगर संसदीय उप-चुनाव में सात फीसदी से भी कम मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया, जो 2014 के बाद सबसे कम रहा. कश्मीर वासियों के मुख्यधारा की राजनीति में विश्वास कम होने का यह बेहद चेतावनीपूर्ण संकेत है. हाल ही में आतंकवादियों द्वारा भारतीय सेना के 22 वर्षीय जवान कश्मीर निवासी उमर फैयाज की दर्दनाक हत्या ने घाटी में हालात को फिर से बेपटरी कर दिया है. विवाह समारोह के दौरान फैयाज की हत्या घाटी में मौजूद आतंकवादियों की बौखलाहट और उनके दुस्साहस का संकेत भर है. सुरक्षा बलों के खिलाफ उग्र विरोध प्रदर्शनों और पत्थरबाजी में युवकों के साथ-साथ अब किशोरवय और युवा महिलाओं का शामिल होना भी बिगड़ रहे हालात को ही दर्शाता है.

पिछले वर्ष सुरक्षा बलों के हाथों हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी की हत्या के बाद से ही घाटी में अस्थिरता का माहौल है, जो दिन पर दिन बिगड़ता ही जा रहा है. केंद्र में मौजूद और राज्य में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के साथ गठबंधन सरकार बनाने वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कट्टरपंथी रवैये के कारण भी कश्मीर वासियों के मन में अलगाव की भावना तेज हुई है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीरी युवाओं से आतंकवाद छोड़कर पर्यटन अपनाने की अपील की, लेकिन भाजपा जिस तरह देश के अन्य हिस्सों में 'हिंदू ध्रुवीकरण' की राजनीति पर चल रही है, उससे नहीं लगता कि कश्मीरी युवा उनकी इस अपील की ओर जरा भी आकर्षित हों. राम जन्मभूमि आंदोलन से कहीं आगे जाकर देश में राष्ट्रवाद को जोर-शोर से हवा देते हुए भाजपा अब वाम विरोधी और धर्मनिरपेक्ष विरोधी माहौल भी तैयार करने में लगी हुई है, वहीं आग उगल रहे टेलीविजन चैनलों और सोशल मीडिया पर चल रही टांग खिंचाई के बीच इस माहौल में सुधार होने की गुंजाइश भी कम ही नजर आ रही है.

ऐसे में भाजपा यदि चाहती है कि कश्मीर में स्थिति सामान्य हो, तो उसे अपनी अल्पसंख्यक-विरोधी छवि में सुधार करना होगा. 1996 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने राम मंदिर का निर्माण, अनुच्छेद 370 को खत्म करना और देश में समान नागरिक संहिता का तीन सूत्रीय एजेंडा तय कर यह माहौल बनाने की कोशिश की थी. केंद्र की मौजूदा भाजपा सरकार भले कश्मीर में अनुच्छेद 370 लगाए रहने के पक्ष में न हो और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लोकतंत्र के खिलाफ बताए जाने के बावजूद वह कश्मीर से सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम हटाने के पक्ष में न हो, लेकिन वह विरोध करने वाले नागरिकों के खिलाफ पेलेट गन के इस्तेमाल को भी जायज नहीं ठहरा सकती.

कश्मीर में भाजपा के सहयोगी स्थानीय दल पीडीपी ने कुछ ही हिस्सों से सही, आफ्स्पा हटाने की बात उठाई है, लेकिन आफ्स्पा हटाने के पक्ष में दिए सर्वोच्च अदालत के फैसले को चुनौती देने के भाजपा के निर्णय और भाजपा नेता राम माधव की टिप्पणी से साफ संकेत मिल गया है कि भाजपा इस दिशा में कुछ नहीं करने वाली. राम माधव ने कहा था कि आफ्स्पा जैसे कानून मजे के लिए नहीं बल्कि इसलिए लगाए जाते हैं, क्योंकि उनकी जरूरत होती है.

इस तरह के असंवेदनशील बयान देने की बजाय सरकार को स्थानीय निवासियों की नाराजगी के प्रति संवेदनशील रुख अपनाना चाहिए, अन्यथा पाकिस्तान के जिहादी और स्थानीय आतंकवादी संगठन उनकी नाराजगी का अपने लाभ के लिए इस्तेमाल करते रहेंगे. इसके अलावा सरकार को पहला कदम उठाते हुए 2011 में जम्मू एवं कश्मीर का दौरा करने वाली समिति के सुझाव पर सुरक्षा बलों की मौजूदगी को कम करना चाहिए.

(आलेख : अमूल्या गांगुली, ये लेखक के निजी विचार है। यह आलेख आईएएनएस से लिया गया है।)

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