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This Article is From Oct 26, 2017

आईएनएस ने राजस्थान सरकार से की विवादित अध्यादेश तुरंत वापस लेने की मांग

इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी ने कहा- प्रस्तावित विधेयक लोकतंत्र की बुनियाद पर हमला करता है और प्रथम दृष्टया असंवैधानिक है

आईएनएस ने राजस्थान सरकार से की विवादित अध्यादेश तुरंत वापस लेने की मांग
आईएनएस ने राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार से विवादित अध्यादेश तुरंत वापस लेने की मांग की है.
नई दिल्ली: प्रेस और न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर कथित रूप से हमला करने वाले अध्यादेश को लेकर राजस्थान सरकार लगातार घिरती जा रही है. इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी (आईएनएस) ने एक अध्यादेश के जरिए ‘‘प्रेस की आवाज दबाने’’ के राजस्थान सरकार के कदम का कड़ा विरोध करते हुए विधेयक को तत्काल वापस लेने की मांग की.

आईएनएस की अध्यक्ष अकिला उरांकर ने कहा कि जहां अध्यादेश की जगह लेने वाले विधेयक को विधानसभा की प्रवर समिति के पास भेज दिया गया है, ‘‘प्रेस की आजादी पर एक साफ एवं आसन्न खतरा बना हुआ है.’’ उन्होंने एक बयान में कहा, ‘‘प्रस्तावित विधेयक लोकतंत्र की बुनियाद पर हमला करता है और प्रथम दृष्टया असंवैधानिक है. इसलिए राजस्थान सरकार के लिए उचित होगा कि वह तत्काल विधेयक वापस ले और आईएनएस ऐसा तत्काल करने की मांग करती है.’’

यह भी पढ़ें : चौतरफा आलोचना के बीच बैकफुट पर वसुंधरा राजे सरकार, अध्यादेश की समीक्षा का फैसला

बयान में कहा गया कि राजस्थान सरकार न्यायपालिका के मौजूदा एवं पूर्व सदस्यों तथा सरकारी कर्मचारियों को सरकार से पूर्व मंजूरी लिए बिना की जाने वाली जांच से बचाने के नाम पर प्रेस की आवाज दबाने की कोशिश कर रही है.

VIDEO : अध्यादेश सेलेक्ट कमेटी के पास

गौरतलब है कि मंत्रियों तथा सरकारी अधिकारियों को भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच से बचाने तथा मीडिया को ऐसे मामलों की रिपोर्टिंग से रोकने वाले इस अध्यादेश पर राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे चौतरफा आलोचनाओं का सामना कर रही हं. सरकार ने अब अध्यादेश की एक पैनल द्वारा समीक्षा कराए जाने का निर्णय लिया गया. पिछले माह अध्यादेश के ज़रिए लागू किए गए कानून में अदालतों पर भी सरकार की अनुमति के बिना मंत्रियों, विधायकों तथा सरकारी अधिकारियों के खिलाफ किसी भी शिकायत पर सुनवाई से रोक लगाई गई है. कानून के मुताबिक मंजूरी लिए बिना किसी सरकारी अधिकारी के विरुद्ध कुछ भी प्रकाशित करने पर मीडिया को भी अपराधी माना जाएगा, और पत्रकारों को इस अपराध में दो साल तक की कैद की सजा सुनाई जा सकती है.
(इनपुट भाषा से भी)

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