भारतीय नौसेना (Indian Navy) का एकमात्र परमाणु हमला करने वाला पनडुब्बी 'INS चक्र' (INS Chakra) की सेवा लीज खत्म होने से पहले ही समाप्त हो गई. पनडुब्बी अप्रत्याशित रूप से सिंगापुर स्ट्रेट के पास पानी में अवतरित हुआ और नौसेना में अपनी सेवा के अंत की शुरुआत कर रूस की ओर चल पड़ा.
NDTV को पता चला है कि 8,140 टन भार वाला पनडुब्बी वर्तमान में रूस के व्लादिवोस्तोक के रास्ते में है, जहां उसे उसके दस साल के लीज की समाप्ति से लगभग दस महीने पहले लौटाया जा रहा है. भारत ने इसके लिए लगभग 2 बिलियन डॉलर कीमत चुकाई थी. इस पनडुब्बी का संचालन एक भारतीय दल द्वारा किया जा रहा था. उसके साथ एक रूसी और भारतीय युद्धपोत भी तैनात है.
रूसी अकुला-2 वर्ग, चक्र की इस न्यूक्लियर अटैकर पनडुब्बी को 4 अप्रैल, 2012 को भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था और इसे विशाखापत्तनम में तैनात किया गया था. INS चक्र नाम की यह पनडुब्बी रूस से भारत द्वारा अधिग्रहित की गई दूसरी परमाणु शक्ति संपन्न पनडुब्बी थी.
सूत्रों ने एनडीटीवी को बताया कि पनडुब्बी की जल्दी वापसी उसके ''अविश्वसनीय पावरप्लांट और रखरखाव के मुद्दों'' के अलावा पोत की समग्र स्थिति के कारण आवश्यक हो गई थी, जिसका उपयोग भारतीय नौसेना द्वारा उन्नत परमाणु पनडुब्बियों पर कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने के लिए बड़े पैमाने पर किया गया था. यह एक महत्वपूर्ण सीखने का अनुभव था जिसने नौसेना के अधिकारियों को भारत में निर्मित बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बियों, आईएनएस अरिहंत और आईएनएस अरिघात में निपुण होने का मार्ग प्रशस्त किया, जो वर्तमान में भारत की पनडुब्बी-आधारित न्यूक्लियर डेटेरेंट हैं.
NDTV को पता चला है कि पिछले एक दशक में, भारतीय नौसेना ने चीनी युद्धपोतों और पनडुब्बियों की आवाजाही पर नज़र रखने के मिशन में INS चक्र को तैनात किया था. चीनी नौसेना का बढ़ता विस्तार और हिंद महासागर में इसकी तैनाती और अफ्रीका के हॉर्न में जिबूती में इसके बेस तक भारतीय नौसेना के लिए प्राथमिक चिंता बनी हुई है. चीन के पास अब तक दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती हुई नौसेना है, जो अत्याधुनिक युद्धपोतों के बीच नई पीढ़ी की परमाणु पनडुब्बियों, क्रूजर और विध्वंसक से लैस है.
सूत्रों के मुताबिक, आईएनएस चक्र की जगह उसी श्रेणी की अधिक उन्नत संस्करण वाली पनडुब्बी की तैनाती की जाएगी. उसे भी चक्र के नाम से ही जाना जाएगा. नई पनडुब्बी के लिए दस साल के पट्टे के लिए मार्च 2019 में $ 3 बिलियन के सौदे पर हस्ताक्षर किए गए थे, जिसकी डिलीवरी 2025 तक होने की उम्मीद है. हालांकि, इस बीच भारतीय नौसेना लगभग चार वर्षों तक बिना परमाणु लैस पनडुब्बी के रहेगा.
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