
तेजी से आधुनिक बनाने में जुटी सेना के कामकाज में अगले तीन साल में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का बेहतरीन इस्तेमाल देखने को मिलेगा. दक्षिण पश्चिम कमान के लेफ्टिनेंट जनरल आलोक क्लेर ने कहा है कि सेना आर्टिफिशल इंटेलिजेंस का रचनात्मक, रक्षात्मक और विध्वंसक इस्तेमाल शुरू करेगी. दरअसल तेजी से बदलते दौर में सेना और युद्ध भी परंपरागत तरीकों को छोड़कर दूसरा रूप अपना सकते हैं. मुमकिन है कि आने वाले वक़्त में मधुमक्खियों की तरह ड्रोन एक साथ दुश्मन पर टूट पड़ें, उनको पता हो कि ज़मीन पर कौन दोस्त है और कौन दुश्मन, उनका नियंत्रित और सटीक निशाना युद्ध की तस्वीर ही बदल दे. ऐसी चुनौतियों को देखते हुए सेना अब आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के ज़रिए अपनी ताक़त बढ़ाने की तैयारी शुरू कर चुकी है.
आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस : अपने सैनिकों को पहचानने वाले ड्रोन मधुमक्खियों की तरह दुश्मन पर टूट पड़ेंगे!
सेना के अधिकारियों ने बताया कि संभव है कि अगले तीन-चार साल में हर सैनिक के पास ऐसा कोई न कोई उपकरण हो जिसमें आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल हो. हिसार मिलिट्री स्टेशन में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आयोजित सेमिनार में बताया गया किआर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस का सबसे पहले इस्तेमाल मैकेनाइज़्ड फोर्सेज़ में किया जाएगा.
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जानकारों के मुताबिक आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल से सेना की क्षमता और निर्णय लेने की रफ़्तार दोनों में इजाफा होगा. चीन इस क्षेत्र में पहले ही काफ़ी आगे निकल चुका है इसलिए भारत भी इसमें पीछे रहने का जोख़िम नहीं उठा सकता.
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