चीन से विवाद के वक्त भारतीय सेना को डोकलाम पहुंचने में लगते थे सात घंटे, अब सिर्फ 40 मिनट

भारतीय सेना (Indian Army) के लिए रणनीतिक रूप से बेहद अहम डोकला बेस (Dokala Base), जो सिक्किम के निकट विवादित डोकलाम (Doklam) पठार के किनारे पर मौजूद है, तक पहुंचने में अब 40 मिनट से ज़्यादा वक्त नहीं लगेगा.

चीन से विवाद के वक्त भारतीय सेना को डोकलाम पहुंचने में लगते थे सात घंटे, अब सिर्फ 40 मिनट

नई दिल्ली:

भारतीय सेना (Indian Army) के लिए रणनीतिक रूप से बेहद अहम डोकला बेस (Dokala Base), जो सिक्किम के निकट विवादित डोकलाम (Doklam) पठार के किनारे पर मौजूद है, तक पहुंचने में अब 40 मिनट से ज़्यादा वक्त नहीं लगेगा, क्योंकि तारकोल से बनी हर मौसम में काम करने वाली सड़क तैयार है, जिस पर कितना भी वज़न ले जाने पर भी कोई पाबंदी नहीं है. वर्ष 2017 में जब भारतीय सेना डोकलाम में चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) से उलझी हुई थी, इस बेस तक पहुंचने के लिए खच्चरों के लिए बने रास्ते पर सात घंटे तक का वक्त लग जाता था.

बॉर्डर रोड्स ऑर्गेनाइज़ेशन (BRO) के मुताबिक, नई तैयार हुई भीम बेस-डोकला रोड को 'युद्धस्तर पर पक्का किया गया,' जिससे 'दुश्मन की ओर से हमला किए जाने की स्थिति के लिए देश की रक्षा तैयारी' हो सके. चीन के साथ हुए विवाद से पहले वर्ष 2015 में मंज़ूर की गई सड़क पर काम को 'डोकला में विवाद की वजह से ऑपरेशनल संसाधनों की भारी आवाजाही के बावजूद' उत्साह के साथ शुरू किया गया.

यही नहीं, डोकला तक जाने के लिए हर मौसम में बनी रहने वाली दूसरी सड़क - फ्लैग हिल-डोकला एक्सिस - भी 2020 तक पूरी हो जाएगी. बॉर्डर रोड्स ऑर्गेनाइज़ेशन (BRO) के मुताबिक, फ्लैग हिल-मधुबाला-डोकला रूट पर बनी यह सड़क '3,601 मीटर से 4,200 मीटर (11,811 फुट से 13,779 फुट) की ऊंचाई वाले बेहद ऊंचे इलाके से गुज़रती है...' यह रूट रणनीतिक रूप से अहम कई पोस्टों को जोड़ता है, जिनके नाम इस रिपोर्ट में नहीं दिए गए हैं. इस सड़क का 10 किलोमीटर हिस्सा पहले ही तैयार हो चुका है. 20 किलोमीटर से कुछ ज़्यादा का बचा हुआ हिस्सा एक साल के भीतर तैयार हो जाएगा.

18 जून, 2017 को लगभग 270 सशस्त्र भारतीय फौजी डोकलाम पठार पहुंचे थे, ताकि चीन के सड़क निर्माण कामगारों को जाम्फेरी रिजलाइन तक सड़क बनाने से रोका जा सके, क्योंकि वहां तक सड़क बन जाने से पीपल्स लिबरेशन आर्मी के लिए संकरे सिलिगुड़ी कॉरिडोर को देखना बेहद आसान हो जाता. सिलिगुड़ी कॉरिडोर भूमि का सिर्फ 18 किलोमीटर चौड़ा हिस्सा है, जो पूर्वोत्तर भारत को शेष भारत के साथ जोड़ता है.

भारत डोकलाम पठार को अविवादित रूप से भूटानी क्षेत्र मानता है, जबकि चीन इसे अपनी चुम्बी घाटी का ही हिस्सा मानता है. चुम्बी घाटी खंजर की शक्ल में बना ज़मीन का वह टुकड़ा है, जो पश्चिम में सिक्किम तथा पूर्व में भूटान के बीच स्थित है. विवादित डोकलाम क्षेत्र लगभग 89 वर्ग किलोमीटर का टुकड़ा है, जिसकी चौड़ाई 10 किलोमीटर भी नहीं है.

चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) तथा भारतीय सेना के बीच विवाद 28 अगस्त, 2017 को खत्म हुआ था, जब दोनों ही देशों ने घोषणा की थी कु उनके सभी सैनिक विवादित इलाके से हटाए जा रहे हैं. अप्रैल, 2018 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच हुए वुहान शिखर सम्मेलन के दौरान ऐसे कदमों की पहचान की गई, जिनसे वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर दोनों देशों के फौजियों के बीच तनाव को कम किया जा सके, ताकि LAC को लेकर अलग-अलग सोच के बावजूद दोनों पक्षों के बीच वास्तव में झड़प नहीं होना सुनिश्चित किया जा सके.

हालांकि पूर्वी लद्दाख में पैंगॉन्ग झील के उत्तरी छोर पर पिछले महीने भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच कुछ झड़पें हुई थीं, लेकिन 13,000 फुट की ऊंचाई पर मौजूद डोकलाम क्षेत्र में शांति कायम है.

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सूत्रों ने NDTV को बताया कि फौजियों को हटाए जाने के बाद से भारत और चीन का एक-एक कर्नल रोज़ सुबह 8:30 बजे डोकला में मुलाकात करते हैं, चाहे 'बर्फ गिरे, ओले गिरें, या बारिश आए'. आमतौर पर चाय पीते-पीते लगभग 15 मिनट चलने वाली इस बैठक को विवादित इलाके में शांति बनाए रखने के लिए बेहद अहम माना जाता है. वैसे, 2017 से डोकलाम पठार पर चीन की तरफ से सड़क बनाने जैसी कोई नई गतिविधि भी नहीं हो रही है.