कहानी भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे (National Flag) की....देश की आन-बान और शान के प्रतीक हमारे तिरंगे का इतिहास भी उतना ही दिलचस्प है जितनी भारत की आजादी से जुड़ा घटनाक्रम है. दरअसल हमारे तिरंगे से जुड़े तथ्यों में से एक फ्रांसीसी क्रांति से भी जुड़ा माना जाता है. उस समय फ्रांस के झंडा भी तिरंगा था. 1831 में हुई फ्रांसीसी क्रांति ने नेशनल्जिम को जन्म दिया था. हालांकि इसको हिन्दी में राष्ट्रवाद कहने पर अलग-अलग मत भी सामने आते हैं. लेकिन ज्यादातर विद्वान क्रांति को ही राष्ट्रवाद का जनक मानते हैं. फ्रांस में हुए इस घटना के बाद भारत में भी 1857 की क्रांति हुई थी. 20 वीं शताब्दी में हुए स्वदेशी आंदोलन के समय भी प्रतीक के तौर एक झंडे की जरूरत महसूस की गई. इसके बाद 7 अगस्त 1906 को बंग आंदोलन में पहली बार तिरंगा फहराया गया था. हालांकि यह आधिकारिक ध्वज नहीं था.
साल 1947 आते-आते उस समय के नेताओं को राष्ट्रीय ध्वज की कमी महसूस हुई क्योंकि दुनिया के सभी बड़े देशों के पास अपना राष्ट्रीय ध्वज था. डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया जिसे 'ध्वज समिति' कहा गया. इस समिति ने फैसला लिया कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के झंडे को ही राष्ट्रीय ध्वज मान लिया जाए. हालांकि इसमें एक परिवर्तन किया गया और बीच में अशोक चक्र लगाने की बात कही गई.
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इसके बाद 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा में तिरंगे झंडे को भारत का राष्ट्रीय ध्वज घोषित किया. इसमें तीन रंग हैं, केसरिया, सफेद और हरा. सफेद रंग की पट्टी में नीले रंग से अशोक चक्र बना है जिसमें 24 तीलियां होती हैं. राष्ट्रीय ध्वज का सिर्फ इतना ही इतिहास नहीं है. साल 1921 में महात्मा गांधी ने भी एक झंडे का सुझाव दिया था. जिसमें रंग थे. इसमें दो रंग थे लाल और हरा. इसे पिंगली वैंकैया ने बनाया था. इसमें बीच चरखा बना हुआ था.
साल 1931 में खिलाफत आंदोलन के समय तीन रंगों का झंडा सामने आया. जो कांग्रेस का झंडा बना और फिर इसे ही परिवर्तनों के साथ राष्ट्रीय ध्वज मान लिया गया. खिलाफत अंदोलन के समय झंडा स्वराज इंडिया का था. आजादी के बाद तिरंगा झंडे फहराने की इजाजत सिर्फ 15 अगस्त और 26 जनवरी को ही थी. लेकिन साल 2002 में एक याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसे बाकी दिनों में भी फहराने की मंजूरी दे दी. इसके बाद साल 2005 में इसे कुछ वस्त्रों में भी तिरंगे झंडे के इस्तेमाल की इजाजत दी गई.
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