नई दिल्ली:
विवादित फिल्म पद्मावती को लेकर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों के बाद अब 2013 में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में हुए दंगों को लेकर बनी फिल्म 'मुजफ्फरनगर द बर्निंग लव' के निर्माता सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई की. दंगों के दौरान हिंदू युवक और मुस्लिम युवती के प्रेम पर आधारित इस फिल्म को 17 नवंबर को देशभर में रिलीज किया गया लेकिन उत्तर प्रदेश में जिला प्रशासन द्वारा मुजफ्फरनगर, शामली, बागपत, गाजियाबाद, मेरठ और उत्तराखंड के हरिद्वार जिले के रूडकी की निगम सीमा में इसे कानून व्यवस्था के नाम पर रिलीज नहीं करने दिया गया जबकि बिजनौर में पहले शो के बाद सिनेमाघरों में फिल्म को रोक दिया गया. अब निर्माताओं ने सुप्रीम कोर्ट से इन इलाकों में फिल्म के रिलीज कराने की गुहार लगाई है.
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सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया है कि मोरना इंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड द्वारा बनाई गई इस फिल्म को 14 जुलाई को सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (CBFC) से सर्टिफिकेट मिल गया था और 17 नवंबर को देशभर में इसे रिलीज किया गया, लेकिन यूपी के इन जिलों में विरोध प्रदर्शन हुआ और जिला प्रशासन ने फिल्म के रिलीज करने पर रोक लगा दी. जिला अधिकारियों को फिल्म दिखाई गई लेकिन इसते बावजूद फिल्म को सिनेमाघरों में रिलीज नहीं करने दिया गया. याचिका में कहा गया है कि मुख्यमंत्री से लेकर जिला अधिकारी तक से गुहार लगाई गई लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.
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निर्माताओं का कहना है कि इस तरह की रोक गैरकानूनी और मनमाना आदेश है. ये संविधान द्वारा दिए गए अभिव्यक्ति की आजादी, जीने और व्यापार करने के मौलिक अधिकार के खिलाफ है. याचिका में 50 लाख रुपये बतौर मुआवजा भी दिलाने की मांग की गई है.
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सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया है कि मोरना इंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड द्वारा बनाई गई इस फिल्म को 14 जुलाई को सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (CBFC) से सर्टिफिकेट मिल गया था और 17 नवंबर को देशभर में इसे रिलीज किया गया, लेकिन यूपी के इन जिलों में विरोध प्रदर्शन हुआ और जिला प्रशासन ने फिल्म के रिलीज करने पर रोक लगा दी. जिला अधिकारियों को फिल्म दिखाई गई लेकिन इसते बावजूद फिल्म को सिनेमाघरों में रिलीज नहीं करने दिया गया. याचिका में कहा गया है कि मुख्यमंत्री से लेकर जिला अधिकारी तक से गुहार लगाई गई लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.
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निर्माताओं का कहना है कि इस तरह की रोक गैरकानूनी और मनमाना आदेश है. ये संविधान द्वारा दिए गए अभिव्यक्ति की आजादी, जीने और व्यापार करने के मौलिक अधिकार के खिलाफ है. याचिका में 50 लाख रुपये बतौर मुआवजा भी दिलाने की मांग की गई है.
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