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This Article is From Jun 04, 2021

UP: दबंगों ने दी दलित दूल्हे को धमकी- घोड़ी चढ़ा तो हमला करेंगे, युवक ने मांगी पुलिस से मदद

उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड के महोबा ज़िले में एक दलित युवक अलखराम ने पुलिस से मांग की है कि वह घोड़ी पर बैठ कर अपनी बारात निकालना चाहता है. इसके लिए उसकी बारात की सुरक्षा की जाए. बुंदेलखंड के इन इलाक़ों में आज़ादी के 74 सालों में कभी भी दलित को शादी में घोड़ी पर नहीं बैठने दिया गया. उसके गांव के दबंगों ने धमकी दी है कि अगर वो परंपरा तोड़ कर घोड़ी पर बैठा तो वे उसकी बारात पर हमला कर देंगे.

लखनऊ:

उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड के महोबा ज़िले में एक दलित युवक अलखराम ने पुलिस से मांग की है कि वह घोड़ी पर बैठ कर अपनी बारात निकालना चाहता है. इसके लिए उसकी बारात की सुरक्षा की जाए. बुंदेलखंड के इन इलाक़ों में आज़ादी के 74 सालों में कभी भी दलित को शादी में घोड़ी पर नहीं बैठने दिया गया. उसके गांव के दबंगों ने धमकी दी है कि अगर वो परंपरा तोड़ कर घोड़ी पर बैठा तो वे उसकी बारात पर हमला कर देंगे. महोबा के माधवगंज गांव में अलख के घर शादी का माहौल है. महिलाएं आंगन में बुंदेलखंडी में शादी के गीत गा रही हैं. शादी के कपड़े तैयार हो रहे हैं. बाहर खाट पे बैठे अलख और उनके पिता गयादीन शादी के कार्डों पे पते लिख कर उन्हें डाक में डालने को भेज रहे हैं. 

अलख कहते हैं कि "बाबा साहब ने संविधान में सबको बराबरी का अवसर दिया है. फिर क्यों दूसरे घोड़ी पर बैठ कर बारात में जा सकते हैं और हम नहीं? हम पुरानी परंपराओं को नहीं मानेंगे. अगर हमारी बारात घोड़ी पर बैठ कर नहीं निकलने देंगे तो हम शादी नहीं करेंगे." अलख बताते हैं कि गांव में उनसे ऊंची जाति के दबंग धमकी दे रहे हैं कि वे बारात पर हमला कर देंगे. एक रोज़ तो जब वो गांव से गुजर रहे थे तो अपने घरों के पास झुंड में वे बैठे थे. उन्हें देख कर ज़ोर से बोले कि ज़रा लकड़ी जमा कर लो यह घोड़ी पर चढ़ने वाला है. यानी उसकी चिता जलाने को लकड़ी जुटा लो.

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अलख के पिता गयादीन कहते हैं, "हमारी शादी तो 52 साल पहले हुई थी. तब तो बहुत ज़्यादा भेदभाव और छुआछूत था. तब भी कोई दलित घोड़ी पर बैठने की सोच भी नहीं सकता था. आज इतना बदलाव आया है कि कम से कम ऐसा सोच रहे हैं. अगर एक बार हमारा लड़का घोड़ी पर बैठ गया तो फिर सारे दलित लड़कों के लिए रास्ता खुल जायेगा." अलख ने सबसे पहले अपनी फेसबुक पर लिखा कि, "क्या बुंदेलखंड में कोई राजनीतिक संगठन या पार्टी है जो एक दलित को घोड़ी या वहां पर चढ़ने के अधिकार दिला सके?" साथ में उसने अपने गांव का नाम और फ़ोन नंबर भी लिखा. इसे देख कर कांग्रेस के अनुसूचित जाति जनजाति मोर्चे के महोबा अध्यक्ष बृजेश सिंह ने उसे भरोसा दिलाया कि वह बारात में उसके घोड़ी पर बैठने में उसका साथ देंगे. भीम आर्मी समेत कई संगठनों और दालों ने उससे संपर्क किया है. बीजेपी विधायक ब्रजभूषण राजपूत ने उससे कहा कि वह थाने में इसकी शिकायत दर्ज कराए. इसके बाद उसने महोबकंठ थाने जा कर अपना शिकायती पत्र थानेदार को दे दिया है.

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बुलदेलखंड में 11 ज़िले हैं जिनमें सात यूपी में और छह मध्यप्रदेश में हैं. यहां 35 फीसद आबादी दलित और आदिवासियों की है. 53 फीसद पिछड़े हैं. लेकिन ज़्यादातर ज़मीनों के मालिक 12 फीसद ठाकुर और ब्राह्मण हैं. जातिवादी और सामंतवादी व्यवस्था पुराने वक़्तों से चली आ रही है. एक वक्त यह भी था कि यहां कई इलाक़ों में शादी के बाद दलित की दुल्हन को पहली रात दादू के साथ गुजारनी पड़ती थी. क़रीब 30 साल पहले तक यह था कि किसान जब क़र्ज़ नहीं चुका पाता था दो क़र्ज़ देने वाले ऊंची जाति के लोग क़र्ज़ के बदले किसान की बीवी या बेटी को गिरवी रख लेते थे. वे क़र्ज़ देने वालों के बच्चे की मां बन जाती थी.

आज भी यहां कुछ इलाक़ों में दलित ऊंची जाति वालों के घर के सामने से गुज़रते हैं तो चप्पल हाथ में ले लेते हैं. या फिर अगर गांव के रास्ते में कोई ऊंची जाति का मिल जाये तो महिलाएं पैर की चप्पल उतार कर सिर पर रख लेती हैं. बहरहाल अलख से पुलिस और कुछ नेताओं ने वादा किया है कि उसे घोड़ी पर बैठने में वे उसकी मदद करेंगे.

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