बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता और राष्ट्रीय जनता दल सुप्रीमो लालू यादव के राजनीतिक उतराधिकारी तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने सारी अटकलों पर विराम लगाते हुए दिल्ली में शादी कर ली. इस शादी की ख़ास बात यह रही कि लालू यादव के परिवार में इससे पहले सात बेटियों और एक बेटे तेजप्रताप यादव की तरह धूमधाम और हज़ारों की संख्या में निमंत्रण देने की बजाय सीधे साधे समारोह में सब कुछ कुछ घंटो में संपन्न हो गया. लेकिन जहां अभी भी तेजस्वी यादव की पत्नी और उनके परिवार के बारे में लोगों को या तो नहीं या बहुत कम जानकारी हैं, जिसका एक बड़ा कारण तेजस्वी यादव की ये सोच है कि ये उनका निजी मामला है.
इसलिए वो सार्वजनिक रूप से अपने ससुराल पक्ष के बारे में कुछ बोलना या सार्वजनिक जानकारी देना नहीं चाहते जिससे उनको कोई दिक़्क़त हो . लेकिन इस शादी के कुछ ऐसे पहलू रहे हैं. इससे लगता है कि तेजस्वी कहीं ना कहीं बिहार की राजनीति के दो दिग्गज मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और सुशील मोदी से बहुत कुछ सीखा है.
जैसे तेजस्वी के पहले अस्सी के दशक में बिहार भाजपा के वरिष्ठ नेता और अब राज्य सभा सदस्य सुशील मोदी ने भी अपना जीवन साथी Christian समुदाय से चुना था . उस समय मोदी विधायक भी नहीं था क्योंकि वो पहली बार विधायक सन 1990 में निर्वाचित हुए. लेकिन जैसी आशंका थी, उससे उलट उन्हें राजनीति में कोई ख़ामियाज़ा नहीं उठाना पड़ा. बीजेपी नेताओं का कहना है कि पहले विधायक और बाद में उपमुख्य मंत्री रहते हुए सुशील मोदी ने अल्पसंख्यक समाज के लोगों का बिहार में हमेशा विशेष ख़्याल रखा.
इसका एक उदाहरण है कि हर वर्ष उनके द्वारा रमज़ान के महीने में दी जाने वाली इफ़्तार पार्टी . इसलिए राष्ट्रीय जनता दल के नेताओ का कहना हैं कि जैसा पूर्व सांसद और तेजस्वी के मामा साधु यादव डिजिटल मीडिया के अलग अलग वेब्सायट को बुलाबुला कर बाइट दे रहे हैं कि इस शादी की नाराज़गी तेजस्वी को झेलनी होगी लेकिन शायद इसका कोई वोट और वोटर पर कोई प्रतिकूल असर नहीं होगा . लेकिन पूरे देश में तेजस्वी की पहचान एक यादव नेता से अब कहीं अधिक एक ऐसे नेता के रूप में होगी जिसे जब अपना जीवन साथी चुनना था तो धर्म और जाति की परवाह नहीं की.
जहां तक नीतीश कुमार से सीखने की बात है, तो तेजस्वी यादव ने पहले अपने अफ़ेयर और बाद में शादी को जैसा रहस्यमय रखा, उससे लगा कि उन्होंने नीतीश कुमार से काफ़ी कुछ सीखा है. नीतीश कुमार ने पिछले पांच वर्षों के दौरान जैसे बिहार में विदेशी शराब के ख़रीद बिक्री पर पाबंदी लगाई उसका किसी को अहसास भी कुछ घंटे पूर्व तक नहीं होने दिया था . वैसे ही महागठबंधन में जब वो हर दिन लालू यादव के हस्तक्षेप से तंग आकर बीजेपी के साथ वापस यूपी के पिछले विधानसभा चुनाव के बाद जाने का मन बनाया तो किसी को कानोकान इसकी ख़बर तक नहीं लगी थी.
सब कुछ तय होने के बाद उन्होंने इस्तीफ़ा के नाटक किया और कहा कि उन्हें बीजेपी के समर्थन का कोई अंदाज़ा नहीं था. लेकिन सच्चाई यही थी कि सब कुछ एक स्क्रिप्ट के अनुसार तय था, यहां तक कि बीजेपी विधायकों की संख्या के हिसाब से उनके मुख्यमंत्री आवास पर डिनर का इंतज़ाम भी पहले से किया गया था. ये बात अलग है कि बिहार बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं को इसकी जानकारी कुछ घंटे पूर्व दी गई थी.
जैसे नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की उस राजनीतिक चाल को अधिकांश लोग भांप नहीं पाए वैसे तेजस्वी के वर्तमान पत्नी का नाम भी नीतीश कुमार अपने तमाम ख़ुफ़िया अधिकारियों या उनके दिल्ली के एक्सपर्ट जैसे पार्टी अध्यक्ष ललन सिंह, आरसीपी सिंह या संजय झा उन्हें बताने में विफल रहे.
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