
जिला प्रशासन ने माना कि बीमा मुआवज़े में गड़बड़ी हुई है
विदिशा:
जब लगातार तीसरे साल भी जलाम सिंह मालवीय की फसल ने उन्हें निराश किया तो मध्यप्रदेश के इस किसान ने अपने बीमा से उम्मीदें बांध ली थी। जलाम की तरह शायद आपको भी जानकर हैरानी होगी कि उन्हें बीमा मुआवज़े से मिले सिर्फ 13 रुपए।
विदिशा जिले के साकल खेड़ा कालन में रहने वाले जलाम ने अपनी ढाई बीघा जमीन पर सोयाबीन की खेती के लिए लोन लिया था जिसका बीमा किया गया था। एनडीटीवी से बातचीत में जलाम ने अपनी निराशा जताते हुए कहा 'पिछले साल मुझे खेती में 50 हज़ार का नुकसान हुआ। एक सर्वे हुआ था और मुझे लगा कि नुकसान के बाद मुआवज़े में कुछ 15-20 हज़ार तो मिल ही जाएंगे। लेकिन मुझे सिर्फ 13 रुपए मिले जो ज़हर खरीदने के लिए भी काफी नहीं है।'
मुआवज़े में 3 और 5 रुपए भी मिले
पिछले साल जलाम के गांव में सभी 259 किसानों ने सोयाबीन की फसल बोई थी जो ज्यादा बारिश की वजह से बर्बाद हो गई। किसानों का दावा है कि उन्हें कुल मिलाकर इस नुकसान की वजह से बीमा कंपनियों से 68 हज़ार रुपए मिले थे यानि औसत देखा जाए तो प्रति किसान 260 रुपए दिए गए। गांववालों का कहना है कि कई तो ऐसें हैं जिन्हें 3 या 5 रुपए ही मिल पाए। साकल खेड़ा कालन खेती सहकारी संगठन के अध्यक्ष संग्राम सिंह कहते हैं - 'हम गांववालों ने तय किया है कि हम पूरे 68 हज़ार रुपए मुख्यमंत्री को लौटा देंगे। या तो उन्हें बीमा का पैसा काटना नहीं चाहिए या फिर सही सर्वे करवाना चाहिए।'
जिला प्रशासन का मानना है कि बीमा कंपनियों (ज्यादातर को सरकारी समर्थन हासिल है) ने अपना काम ठीक से नहीं किया है। अतिरिक्त कलेक्टर अंजु पवन भदौरिया मानती हैं कि बीमा कंपनियों की तरफ से अनियमितताएं तो बरती गई हैं। जैसे एक गांव के किसान को मुआवज़े में 200 रुपए मिले, वहीं उसी गांव के दूसरे किसान को 10 रुपए मुआवज़े में मिले। जब उत्पादन एक ही हुआ है तो अलग अलग मुआवज़ा कैसे मिल रहा है। इस गड़बड़ी के बाद सरकार ने बीमा मुआवज़े की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति बनाई है, साथ ही मामले को जल्द से जल्द हल करने का वादा किया है।
विदिशा जिले के साकल खेड़ा कालन में रहने वाले जलाम ने अपनी ढाई बीघा जमीन पर सोयाबीन की खेती के लिए लोन लिया था जिसका बीमा किया गया था। एनडीटीवी से बातचीत में जलाम ने अपनी निराशा जताते हुए कहा 'पिछले साल मुझे खेती में 50 हज़ार का नुकसान हुआ। एक सर्वे हुआ था और मुझे लगा कि नुकसान के बाद मुआवज़े में कुछ 15-20 हज़ार तो मिल ही जाएंगे। लेकिन मुझे सिर्फ 13 रुपए मिले जो ज़हर खरीदने के लिए भी काफी नहीं है।'
मुआवज़े में 3 और 5 रुपए भी मिले
पिछले साल जलाम के गांव में सभी 259 किसानों ने सोयाबीन की फसल बोई थी जो ज्यादा बारिश की वजह से बर्बाद हो गई। किसानों का दावा है कि उन्हें कुल मिलाकर इस नुकसान की वजह से बीमा कंपनियों से 68 हज़ार रुपए मिले थे यानि औसत देखा जाए तो प्रति किसान 260 रुपए दिए गए। गांववालों का कहना है कि कई तो ऐसें हैं जिन्हें 3 या 5 रुपए ही मिल पाए। साकल खेड़ा कालन खेती सहकारी संगठन के अध्यक्ष संग्राम सिंह कहते हैं - 'हम गांववालों ने तय किया है कि हम पूरे 68 हज़ार रुपए मुख्यमंत्री को लौटा देंगे। या तो उन्हें बीमा का पैसा काटना नहीं चाहिए या फिर सही सर्वे करवाना चाहिए।'
जिला प्रशासन का मानना है कि बीमा कंपनियों (ज्यादातर को सरकारी समर्थन हासिल है) ने अपना काम ठीक से नहीं किया है। अतिरिक्त कलेक्टर अंजु पवन भदौरिया मानती हैं कि बीमा कंपनियों की तरफ से अनियमितताएं तो बरती गई हैं। जैसे एक गांव के किसान को मुआवज़े में 200 रुपए मिले, वहीं उसी गांव के दूसरे किसान को 10 रुपए मुआवज़े में मिले। जब उत्पादन एक ही हुआ है तो अलग अलग मुआवज़ा कैसे मिल रहा है। इस गड़बड़ी के बाद सरकार ने बीमा मुआवज़े की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति बनाई है, साथ ही मामले को जल्द से जल्द हल करने का वादा किया है।
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