यह ख़बर 20 जनवरी, 2011 को प्रकाशित हुई थी

ब्लूलाइन बसों को हटाने पर हाईकोर्ट का फैसला सुरक्षित

खास बातें

  • राजधानी की सड़कों पर ब्लूलाइन बसों को वापस आने की इजाजत नहीं देने संबंधी सरकार की अर्जी पर दिल्ली हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा।
New Delhi:

राष्ट्रीय राजधानी की सड़कों पर ब्लूलाइन बसों को वापस आने की इजाजत नहीं देने संबंधी दिल्ली सरकार की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा। सरकारी वकील और निजी बसों के संचालकों की दलीलों को सुनने के बाद न्यायमूर्ति एके सिकरी और न्यायमूर्ति सुरेश कैत की खंडपीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। पीठ के समक्ष उपस्थित होते हुए सरकारी वकील नाजमी वजिरी ने कहा कि जनसुरक्षा सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है और आज की तारीख में जन-परिवहन की जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकार के पास पर्यापत बसों का बेड़ा है। वकील ने दावा किया कि पिछले साल 2,000 लो फ्लोर बसों को शामिल किए जाने से जनता को बहुत राहत मिली है और ब्लूलाइन बसों के चरणबद्ध तरीके से हटाने से दुर्घटनाओं में बेहद कमी आई है। उन्होंने कहा कि अदालत को सरकार द्वारा क्लस्टर प्रणाली लागू करने से पहले संचालकों की बस चलाने की याचिका पर अनुमति नहीं देना चाहिए। वजिरी ने कहा कि जन-परिवहन की जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकार के पास 6,500 बसों का बेड़ा है और चरणबद्ध ढंग से इसमें 4000 बसें और जोड़ी जाएंगी। ब्लूलाइन बस के संचालकों ने दलील दी कि सरकार द्वारा क्लस्टर प्रणाली लागू किए जाने तक निजी बसों को सड़कों पर दौड़ने की इजाजत दी जानी चाहिए और क्लस्टर के आवंटन में उनकी भागीदारी भी सुनिश्चित की जानी चाहिए। बार-बार दुर्घटना की खबरों के बाद हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को ब्लूलाइल बसों को हटाने का निर्देश दिया था और सरकार ने चरणबद्ध तरीके से ज्यादातर ब्लूलाइन बसों को हटा लिया है। कुछ इलाकों में इन बसों को विकल्प खोजे जाने तक चलने की इजाजत दी गई है। अक्टूबर, 2007 में सड़क दुर्घटनाओं का स्वत: संज्ञान लेते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने सरकार को ब्लूलाइन बसें हटाने और लो-फ्लोर वाली बसों को लाने का निर्देश दिया था।


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